मुख्यपृष्ठस्तंभगपशप : `बेटियों की इज्जत, सरकार की फुर्सत!'

गपशप : `बेटियों की इज्जत, सरकार की फुर्सत!’

राजन पारकर

महाराष्ट्र की पावन धरती पर जब एक बेटी की आबरू पर हाथ डालने का दुस्साहस होता है तो सरकार आंखें मूंद लेती है। जब सत्ता की कुर्सी डोलने लगती है तो वही सरकार जागकर भाषणों की फुलझड़ियां छोड़ने लगती है। अब देखिए, केंद्रीय मंत्री रक्षा खडसे की बेटी के साथ मुक्ताईनगर की यात्रा में जो अनर्थ हुआ, वह किसी से छुपा नहीं। सात दरिंदों पर केस हुआ, तीन पकड़े गए, मगर बाकी अब तक फरार हैं।
अब सवाल यह उठता है कि ये बचे-खुचे गुनहगार कौन से अदृश्य लोक में गायब हो गए? या फिर उनके सिर पर किसी ‘आका’ का वरदहस्त है, जो उन्हें पुलिस के पंजे से घूम रहा है?
राष्ट्रवादी महिला आघाड़ी की अध्यक्ष रोहिणी खडसे इस मसले पर तमतमा उठी हैं। उन्होंने सरकार को जमकर लताड़ लगाई, `अरे! किसके बल पर ये अपराधी खुलेआम घूम रहे हैं? कौन सा रहस्यमयी ‘आका’ है, जो इन्हें फरार रहने का आशीर्वाद दे रहा है?’
वैसे यह प्रश्न सिर्फ रोहिणी खडसे का नहीं, बल्कि पूरे महाराष्ट्र का है। राज्य में कानून का राज है या ‘आकाओं’ का? अपराधियों पर कानून की लाठी पड़ रही है या उनके सिर पर सत्ता का हाथ रखा गया है?
सवाल यह भी उठता है कि महाराष्ट्र की माताओं-बहनों की सुरक्षा को लेकर सरकार इतनी लापरवाह क्यों है? जब चुनाव आते हैं तो ‘लाडली बहन’ के नाम पर वादों की झड़ी लगा दी जाती है। जब उन्हीं बहनों की आबरू खतरे में पड़ती है तो सरकार के कानों पर जूं तक नहीं रेंगती।
आज स्थिति यह है कि अपराधी कानून से नहीं डरते, बल्कि कानून अपराधियों से डरने लगा है। पुलिस अपराधियों की तलाश में नहीं, बल्कि जनता को आश्वासन देने में व्यस्त है। `जल्द ही पकड़ लेंगे’-ये शब्द इतने घिस चुके हैं कि अब दीवारों पर लिख दिए जाएं तो भी कोई नहीं पढ़ेगा।
महिलाओं के लिए सुरक्षा कानूनों को मजबूत करने की बात तो हर सरकार करती है, मगर असल में मजबूत तो अपराधी हो रहे हैं। वे जानते हैं कि सत्ता की छतरी तले वे महफूज हैं।
तो क्या सरकार को अब भी होली के गुलाल से फुर्सत मिलेगी? या फिर ‘लाडली बहन’ की सुरक्षा बस चुनावी नारा बनकर रह जाएगी? सवाल गंभीर है, जवाब का इंतजार है।

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