-१०० दिन में ४०,००० नए टीबी मरीज आए सामने
द्रुप्ति झा / मुंबई
टीबी हारेगा, देश जीतेगा, सरकार का यह दावा खोखला साबित हो रहा है। सरकार द्वारा चलाए जा रहे अभियानों के बावजूद टीबी मरीजों की संख्या में कोई गिरावट नहीं देखी जा रही है। यह बीमारी अब भी एक गंभीर समस्या बनी हुई है। राज्य में टीबी मरीजों का डरा देने वाला आंकड़ा सामने आया है। महाराष्ट्र में १०० दिन में टीबी के ४०,००० नए मरीज मिले हैं। डॉक्टरों ने टीबी बढ़ने का सबसे बड़ा कारण दूषित वातावरण और कुपोषण को बताया है। कहा जा रहा है कि एचआईवी से भी खतरनाक बीमारी टीबी है।
इस महीने संपन्न हुए टीबी विरोधी अभियान में महाराष्ट्र में १ करोड़ से अधिक लोगों की जांच में से ४०,४७१ नए टीबी के मामलों का पता चला। ७ दिसंबर, २०२४ को शुरू हुआ यह अभियान २४ मार्च को समाप्त हुआ। राज्य के आंकड़ों के अनुसार, स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं ने ५३ क्षेत्रों में कुल १.३७ करोड़ लोगों की जांच की। पिछले साल महाराष्ट्र में कुल २.३ लाख मामले सामने आए थे। सरकार की पोषण सहायता योजना के तहत अप्रैल २०१८ से हर टीबी मरीज को ५०० रुपए प्रतिमाह दिए जाने की योजना थी। यह सहायता इसलिए दी जाती है, क्योंकि अधिकांश टीबी मरीज कुपोषण से पीड़ित होते हैं और पोषण बेहतर होने से उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। लेकिन सरकार द्वारा इस योजना का पूरा लाभ मरीजों तक नहीं पहुंचाया जा सका।
कुर्ला में रहने वाली टीबी से पीड़ित १० साल की बच्ची के पिता राजेश साधुराम वाल्मीकि ने बताया कि बच्ची को ५ साल पहले टीबी हुआ था और वह ठीक हो गई थी, लेकिन फिर से टीबी ने उसे जकड़ लिया। ऐसा दूषित वातावरण के कारण हुआ। जहां पर हम पहले रहते थे, वहां कई लोग चपेट में आ गए इसलिए हमने क्षेत्र बदल दिया। इलाज को अच्छा रिस्पांस नहीं मिलने के कारण हम इस हालात से जूझ रहे हैं। अस्पताल के डॉक्टर ने बताया कि आजकल दूषित हवा और प्रदूषण के कारण ये सब और ज्यादा हो रहा है। टीबी मुक्त भारत अभियान का कोई प्रभाव नहीं पड़ रहा है।
कुपोषण से बढ़ रहे हैं टीबी के मरीज
कुपोषण से टीबी के मरीज बढ़ रहे हैं। कमजोर इम्यूनिटी वाले लोग इस बीमारी की चपेट में जल्दी आ जाते हैं। पल्मोनरी टीबी (फेफड़ों में संक्रमण) के अलावा एक्स्ट्रा-पल्मोनरी टीबी, जिसमें टीबी बैक्टीरिया ब्लड सर्वुâलेशन के माध्यम से शरीर के अन्य अंगों में पैâलता है। इस बीमारी को रोकने के लिए विशेषज्ञों ने कहा कि अधिक से अधिक मान्यता प्राप्त प्रयोगशालाओं को इसकी जांच में शामिल किया जाना चाहिए। निगरानी और स्क्रीनिंग को और मजबूत किया जाए। टीबी के निदान के लिए ट्रिपल-लेयर सत्यापन प्रणाली लागू होनी चाहिए। स्कूलों में जागरूकता अभियान चलाया जाए, ताकि शुरुआती चरण में ही टीबी की पहचान हो सके।