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सरकारी रेवड़ियों ने तोड़ी महात्मा ज्योतिबा फुले बीमा योजना की कमर … शिंदे-फडणवीस के लाडले प्रलोभनों में बिगड़ा गरीबों का स्वास्थ्य! …बीमा दावों को इंश्योरेंस कंपनी ने नहीं दी मंजूरी, बनाया बहाना

सामना संवाददाता / मुंबई
‘घाती’ सरकार द्वारा आम और गरीब लोगों के लिए शुरू की गई महात्मा ज्योतिबा फुले जन आरोग्य बीमा योजना सरकारी रेवड़ियों की भेट चढ़ गई है। मुख्यमंत्री शिंदे और देवेंद्र फडणवीस के लाड़ले सपनों के कारण अब आम लोगों का स्वास्थ्य बिगड़ने वाला है। बताया जाता है कि ‘घाती’ सरकार द्वारा विधानसभा चुनाव नजदीक आता देख लोगों को लुभाने के लिए लाडली बहन, लखपति दीदी, सीएम युथ स्कीम जैसी योजनाएं शुरू की गई। इन योजनाओं में अन्य योजनाओं के फंड ट्रांसफर किए जाने से फंड की समस्या आ रही है, लेकिन सरकार ने अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ते हुए इंश्योरेंस कंपनी से करार रद्द कर दिया है।

खतरे में राज्य के २.३८ करोड़ परिवारों की सेहत!
हेल्थ इंश्योरेंस कंपनी से समझौता करार किया खत्म

महात्मा ज्योतिबा फुले जन आयोग बीमा योजना के लिए सरकार ने एक निजी कंपनी से तीन हजार करोड़ रुपए का समझौता किया था, लेकिन राज्य में सत्तारूढ़ महायुति सरकार ने इस बीमा अनुबंध को ही खत्म कर दिया है। इससे गरीबों और आम लोगों का स्वास्थ्य खतरे में पड़ गया है। दूसरी तरफ इसका खुलासा होने के बाद चिकित्सा क्षेत्र से जुड़े जानकारों का मानना है कि सरकारी रेवड़ियों ने इस योजना की कमर तोड़ दी है। कुल मिलाकर राज्य में मौजूदा शिंदे-फडणवीस के लाडले सपनों में गरीबों का स्वास्थ्य पूरी तरह से पिस गया है।
उल्लेखनीय है कि राज्य सरकार ने आम जनता के लिए महात्मा ज्योतिबा फुले जन आरोग्य बीमा योजना शुरू की है। पहले यह बीमा योजना डेढ़ लाख रुपए तक कवर करती थी। एकनाथ शिंदे के मुख्यमंत्री बनने के बाद बीमा राशि बढ़ाकर पांच लाख रुपए कर दी गई। इसके लिए राज्य सरकार ने चेन्नई की यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी से समझौता भी किया था, लेकिन राज्य सरकार ने संतोषजनक प्रदर्शन नहीं करने का हवाला देते हुए इस कंपनी से अनुबंध खत्म कर दिया है। बता दें कि इस बीमा योजना के लिए केंद्र सरकार से ६० प्रतिशत और राज्य सरकार से ४० प्रतिशत फंड अपेक्षित था, लेकिन राज्य सरकार ने बीमा राशि का भुगतान किए बिना ही एक निजी कंपनी को ठेका दे दिया। राज्य सरकार पहले सरकारी संस्थानों के माध्यम से आम आदमी को बीमा सेवाएं मुहैया कराती थी, लेकिन इस बीमा की सीमा बढ़ने के बाद सरकार बिना किसी बीमा कंपनी के इस योजना को वैâसे लागू करेगी? इस बारे में कोई स्पष्टता नहीं थी।
कंपनी के साथ अनुबंध पर हस्ताक्षर करने के बाद पहले वर्ष में कंपनी को लाभ हुआ। दूसरे वर्ष में कंपनी को न तो लाभ और न ही हानि हुई, लेकिन पिछले दो साल में कंपनी को घाटा हुआ था। इसलिए कहा जा रहा है कि कंपनी संतोषजनक काम नहीं कर रही है। बता दें कि राज्य में २.३८ करोड़ परिवार हैं। सरकार ने प्रत्येक परिवार के लिए १,३०० रुपए का बीमा प्रीमियम तय किया था। इसके लिए सरकार की ओर से कंपनी को ३ हजार करोड़ रुपए दिए जाने थे। इस योजना की सीमा डेढ़ लाख से बढ़ाकर पांच लाख कर दी गई थी।
सरकार ने नहीं दिया है कोई प्रिमियम
यूनाइटेड इंडिया हेल्थ इंश्योरेंस कंपनी प्रत्येक परिवार को १.५ लाख रुपए का बीमा देनेवाली थी। शेष राशि का भुगतान राज्य सरकार को करना था। कंपनी ने कहा है कि फिलहाल सरकार ने अभी तक कोई प्रीमियम नहीं दिया है इसलिए अब सरकार ने बिना कोई कारण बताए ठेका खत्म करने का पैâसला किया है। कंपनी इस मामले में राज्य सरकार के खिलाफ कोई कानूनी कार्रवाई नहीं करेगी, क्योंकि यह स्पष्ट किया गया था कि राज्य सरकार द्वारा ठेका दिए जाने से पहले सरकार किसी भी समय ठेका रद्द कर सकती है। राज्य सरकार ने पिछले चार वर्षों में राज्य में प्रति परिवार ७९७ के हिसाब से कंपनी को १,९०० करोड़ रुपए दिए थे।

महात्मा ज्योतिबा फुले जन आरोग्य योजना के मुख्य कार्यकारी अधिकारी रमेश चव्हाण ने कहा कि पिछले कुछ महीनों में कई बीमा दावों को कंपनी ने मंजूरी नहीं दी। उन्होंने कहा कि कई अस्पतालों की शिकायतें उनके पास आई हैं। इसका रास्ता निकालने के लिए सरकार ने कंपनी के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ बैठक भी की। चव्हाण ने कहा कि मामला सुलझ नहीं पाने के कारण यह फैसला लिया गया।

महात्मा फुले जन आरोग्य योजना के मुख्य कार्यकारी अधिकारी रमेश चव्हाण ने कहा कि कंपनी ने संतोषजनक प्रदर्शन नहीं किया, इसलिए अनुबंध समाप्त कर दिया गया। सरकार ने इस कंपनी के साथ जून में एक करार किया था। उस समय कंपनी को गारंटी के रूप में बैंक को ९३ करोड़ रुपए का भुगतान करने की उम्मीद थी। कंपनी की ओर से इस पैसे का भुगतान नहीं किया गया है।

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