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वर्सोवा स्लम पुनर्वास को हरी झंडी …हाई कोर्ट ने अस्तबल मालिकों की याचिका की खारिज

कोर्ट ने कहा- अवैध कब्जाधारी सहानुभूति के पात्र नहीं
सामना संवाददाता / मुंबई
मुंबई के वर्सोवा में स्लम पुनर्वास योजना को मुंबई हाई कोर्ट ने मंजूरी देते हुए ६० साल से जमीन पर काबिज अस्तबल मालिकों की याचिका खारिज कर दी। मुंबई मनपा द्वारा जारी बेदखली नोटिस को चुनौती देने वाले इन अस्तबल मालिकों के खिलाफ अदालत ने कड़ी टिप्पणी की।
एक रिपोर्ट के अनुसार, न्यायालय ने स्पष्ट किया कि अवैध कब्जाधारी न तो सहानुभूति के और न ही अतिरिक्त मुआवजे के पात्र हैं। यह मामला रामदास नगर, वर्सोवा में वन स्टॉप बिजनेस सर्विसेज एलएलपी द्वारा स्लम पुनर्वास योजना से जुड़ा था। अदालत को बताया गया कि ४०० से अधिक झुग्गियों को हटाया जा चुका है, लेकिन ११ संरचनाएं (६ अस्तबल, ४ आवासीय इकाइयां, १ चारा गोदाम) अब भी हैं।
नवंबर २०२४ में मनपा ने अस्तबल मालिकों को १५ दिनों के भीतर घोड़ों को हटाने का निर्देश दिया था, लेकिन उनकी हठधर्मिता के कारण अन्य पुनर्वासित निवासियों को ७५ लाख रुपए वार्षिक किराया चुकाना पड़ रहा था। बिल्डर ने यह भी बताया कि याचिकाकर्ताओं ने स्लम पुनर्वास प्राधिकरण (एसआरए) के बेदखली आदेश को छिपाने का प्रयास किया।
न्यायालय ने माना कि बिजली बिल, टैक्स रसीदें या राशन कार्ड जैसे दस्तावेज किसी को भूमि का मालिकाना हक नहीं देते। अदालत ने कहा कि ऐसे अवैध अतिक्रमण निजी संपत्ति मालिकों के लिए बड़ी समस्या हैं।
कोर्ट ने इस देरी को योजनाबद्ध रूप से लाभ उठाने की चाल बताया और कहा कि यदि यह जारी रहा तो स्लम एक्ट की धारा १३(२) के तहत डेवलपमेंट राइट्स रद्द किए जा सकते हैं। अब इस पैâसले के बाद वर्सोवा पुनर्वास परियोजना की गति तेज होने की संभावना है।

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