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डिजिटल अरेस्ट का बढ़ता जाल … ४ महीनों में भारतीयों ने गंवाए रु. १२० करोड़!

डिजिटल अरेस्ट लगातार सुर्खियों में बना हुआ है। बीते दिन २७ अक्टूबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अपने ‘मन की बात’ कार्यक्रम में इसका जिक्र किया। साथ ही डिजिटल सुरक्षा के तीन चरण, `रुको-सोचो-एक्शन लो’ की भी जानकारी दी। अब जानकारी सामने आई है कि डिजिटल अरेस्ट से धोखाधड़ी के चलते बीते ४ महीनों में भारतीयों को १२०.३० करोड़ रुपए की चपत लगी है। गृह मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, हाल के समय में डिजिटल अरेस्ट डिजिटली धोखाधड़ी का नया एक प्रचलित तरीका बन गया है। गृह मंत्रालय `भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र (घ्४ण्)’ के जरिए केंद्रीय स्तर पर साइबर क्राइम की निगरानी करता है। इसके मुताबिक, डिजिटल फ्राॅड करने वाले ज्यादातर लोग दक्षिण पूर्वी एशियाई के तीन देशों में रहते हैं। ये देश हैं- म्यांमार, लाओस और कंबोडिया। साइबर ठगी के लगभग ४६ फीसदी मामले इन्हीं तीन देशों से दर्ज हुए। पाया गया कि भारतीयों ने डिजिटल अरेस्ट में १२०.३० करोड़ रुपए, ट्रेडिंग स्कैम में १,४२०.४८ करोड़ रुपए इनवेस्टमेंट स्कैम में २२२.५८ करोड़ रुपए और डेटिंग स्कैम में १३.२३ करोड़ रुपए गंवाए।
एक रिपोर्ट के अनुसार, जनवरी से अप्रैल तक के आंकड़ों का विश्लेषण किया गया। इस दौरान साइबर ठगी के पीड़ितों को लगभग १,७७६ करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है। राष्ट्रीय साइबर क्राइम पोर्टल के आंकड़ों के अनुसार, १ जनवरी से ३० अप्रैल के बीच ७.४ लाख शिकायतें दर्ज की गर्इं। वहीं साल २०२३ में कुल १५.५६ लाख शिकायतें मिली थीं। उससे पहले साल २०२२ में ९.६६ लाख शिकायतें दर्ज की गईं और २०२१ में ५.१४ लाख शिकायतें दर्ज हुईं।

क्या है डिजिटल अरेस्ट
ये एक नई तरह की धोखाधड़ी है। इसमें वीडियो कॉल पर पीड़ित से संपर्क किया जाता है, फिर उन्हें धमकाकर या लालच देकर लंबे समय तक वैâमरे के सामने रखा जाता है। बताया जाता है कि इसमें आमतौर पर रिटायर्ड या काम कर रहे पेशेवरों को निशाना बनाया जाता है, क्योंकि उनके बचत खातों में अच्छी-खासी रकम होती है और वे तकनीकी रूप से उतने अपडेटेड नहीं होते हैं।

 

 

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