राज ईश्वरी
कोलकाता के मेडिकल कॉलेज में हुए नृशंस रेप- मर्डर केस के मामले में अदालती कार्रवाई शुरू हो चुकी है! इस मुद्दे पर अगर मेडिकल कॉलेज स्टूडेंट्स ने जोरदार आवाज नहीं उठाई होती तो शायद है यह मामला भी देश के अन्य कहीं रेप/मर्डर कांड की तरह किसी पुलिस स्टेशन के थाने में फाइलों में दम तोड़ रहा होता!
दिल्ली में २०१२ के निर्भया कांड सारे देश को झकझोर कर रख दिया था। सारे देश में रेप के खिलाफ आक्रोश उमड़ पड़ा था। याद कीजिए नाराज युवा वर्ग किस तरह इंसाफ की लड़ाई में प्रâंट पर आ गया था। विजय चौक से लेकर इंडिया गेट तक उद्वेलित आक्रोशित हिंदुस्तानी निर्भया इंसाफ दिलाने के लिए एकजुट हो गया था। उस लड़ाई में तत्कालीन सरकार ने भी अपनी ईमानदारी से भूमिका निभाई थी। पक्ष-विपक्ष का मामला कहीं मुद्दा नहीं बना। रिटायर्ड जज जेएस वर्मा समिति की सिफारिश पर २०१३ में यौन उत्पीड़न और बाल यौन अपराध के खिलाफ कड़े कानून बने और साथ ही फास्ट ट्रैक अदालतों का कभी गठन हुआ।
कोलकाता के मेडिकल कॉलेज में हुए नृशंस रेप- मर्डर केस के मामले में केंद्र सरकार की भूमिका इस मामले को चुनाव में भुनाने तक ही सीमित रही। कोलकाता रेप मर्डर केस के बाद सेक्सुअल हैरेसमेंट, सेक्सुअल एब्यूज और रेप की खबरें लगातार आने लगींr। महाराष्ट्र, बदलापुर के एक स्कूल में ४ साल की दो बच्चियों के साथ एक स्कूलकर्मी द्वारा दुष्कर्म के मामले में जनाक्रोश इतना बढ़ा कि राजनीतिक माइलेज लेने के लिए आरोपी का तथाकथित एनकाउंटर कर दिया गया। ये कुछ वारदातें हैं जो जनाक्रोश के चलते सुर्खियां बनीं। लेकिन दूर दराज गांवों-कस्बों में, झुग्गी-झोपड़ियोंं में और कई मामलों में मुख्य शहरों में भी बलात्कार और यौन हिंसा से जुड़ी खबरें कभी सामने नहीं आतीं! या तो पीड़ितों के पास कोई जरिया नहीं होता कि वह पुलिस थाने तक पहुंचें, पुलिस थाने तक पहुंचने के बाद भी मामले को दबा दिया जाता है या रफा-दफा करने की कोशिश की जाती है या फिर इज्जत की बात बनाकर इन मामलों को दबा दिया जाता है! बिलकिस बानो केस और कठुआ रेप कांड को जिस तरह से राजनीतिक, सामाजिक और तथाकथित धार्मिक जमा पहनाकर सच्चाई से मुंह मोड़ने की कोशिश की गई वह लज्जास्पद और अमानवीय है! ऐसे कई मामले हैं जहां पर मानवता शर्मसार होती रही है और राजनीति के पापड़ सेंके जाते रहे हैं।
बजरिए नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार, देश में २०२२ में महिलाओं के खिलाफ अपराध के कुल ४,४५,२५६ मामले दर्ज किए गए। उनमें करीब ३२,००० बलात्कार के मामले थे, जो २०२० में करीब २८,००० थे। आंकड़े बताते हैं कि इनमें इजाफा हुआ है। एसोसिएशन ऑफ डेमाक्रेटिक रिफॉर्म की रिपोर्ट बताती है कि देश में १५१ मौजूदा सांसदों और विधायकों के चुनावी हलफनामों में महिलाओं के खिलाफ अपराध की जानकारी है, क्या इसे अनदेखा किया जा सकता है!
निर्भया कांड के बाद २०१३-१४ में महिला सुरक्षा के लिए निर्भया फंड बनाया गया। फंड की स्थापना सार्वजनिक स्थानों पर महिलाओं की सुरक्षा में सुधार लाने के लिए विशेष रूप से तैयार की गई परियोजनाओं के लिए की गई थी। केंद्र सरकार के मुताबिक, इस योजना के तहत आवंटित २,२६४ करोड़ रुपये में से लगभग ८९ फीसदी धनराशि का इस्तेमाल नहीं हो पाया!
महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराधों के आंकड़े क्या बताते हैं? यही कि आज का समाज कितना असंवेदनशील, अमानवीय और उदासीन हो गया है! यह बात सिर्फ हिंदुस्थान की नहीं बल्कि सारी दुनिया और मानव सभ्यता की है! आधी आबादी का यह सच डरावना ही नहीं है बल्कि बेहद डरावना है!