मुख्यपृष्ठस्तंभमेहनतकश : परिश्रम के बावजूद नहीं मिला मनचाहा मकाम

मेहनतकश : परिश्रम के बावजूद नहीं मिला मनचाहा मकाम

अनिल मिश्र
सन १९५६ में एम.ए. (इतिहास) से शिक्षा ग्रहण करनेवाले उदयभान सिंह उर्फ पंकज के परिवार के लोग खेती-बाड़ी करते थे। लेकिन पिता पढ़े-लिखे थे इसलिए उन्हें रेलवे में नौकरी मिल गई। उस समय उदयभान सिंह सात साल के थे। इसके बाद पिता का ट्रांसफर कई जगहों पर होने से उदयभान की प्राथमिक शिक्षा कई स्कूलों में हुई। स्कूल की वार्षिक पत्रिका में क्लास टीचर के कहने पर उन्होंने एक कविता लिखी जो प्रकाशित हुई। धीरे-धीरे उत्साह बढ़ा और कविताओं से कार्यकम प्रारंभ करने लगे। धीरे-धीरे फिल्मी गाने के साथ नाटक का मंचन करने लगे। आगे चलकर दोस्तों के साथ त्रिमूर्ति कला केंद्र की नींव रखी। नाटक लिखने के साथ ही उसका निर्देशन भी करने लगे। इस अभियान को आगे ले जाने के लिए जगह की जरूरत थी, तभी मोहल्ले के एक प्रशासनिक अधिकारी ने अपना एक बंद मकान केंद्र के लिए दे दिया। नाटक में सामाजिक और शैक्षणिक विषयों पर लेखन कार्य शुरू किया। उनके नाटक तथा गीत आगरा से छपनेवाले साप्ताहिक और मासिक पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए। तभी एक रोज मालूम हुआ कि फिल्मों में गीत लिखनेवाले पुरुषोत्तम पंकज साहब वहां आए हुए हैं। दो दोस्तों के साथ वो उनसे मिलने गए और उन्हें गीत सुनाया। पंकज साहब ने उर्दू के शब्दों को जोड़ने की सलाह दी। पंकज द्वारा दिया गया मंत्र उन्हें पसंद आया। उसके बाद उन्होंने अपना नाम उदयभान सिंह से उदय पंकज रख लिया, ताकि हमेशा उनकी बातें याद में बनी रहें। पिताजी के रिटायर होने के बाद पिता के कहने पर रेलवे में नौकरी के लिए एप्लाई किया। रेलवे में नौकरी मिल भी गई। नौकरी मिलने के कुछ माह पूर्व विवाहोपरांत सपत्नी मुंबई आ गए। मुंबई आने के बाद निर्माता-निर्देशक प्रभात पांडे की फिल्म ‘आज का सच’ में सीन लिखने और बतौर सहनिर्देशक फिल्म में जगह मिल गई। वैâमरा, शूटिंग, एडिटिंग आदि के साथ निर्देशन सीखने के दौरान नौकरी और परिवार के लिए वक्त नहीं मिल रहा था। भाग्यशाली थे कि पत्नी ने सदा ही प्रोत्साहित किया और उन्हें हर तरह से सहयोग दिया। ‘नजर के सामने’, ‘समाज’ और ‘जीवन के उस पार’ जैसे धारावाहिकों में लेखन और निर्देशन कार्य भी किया। ‘ऐसा भी होता है’ और ‘कर्मदाता’ फिल्म बनाई, जो रिलीज नहीं हो सकी। कोई गॉडफादर न होने के कारण काफी मेहनत के बाद भी सफल नहीं हो सके। खैर, लेखक दोस्त मजूमदार की प्रेरणा से पहली पुस्तक ‘अधूरी औरत’ लिखी। भोपाल से एक और पुस्तक ‘मन के हारे हार है, मन के जीते जीत’ प्रकाशित हुई। मोटिवेशन पेट लिखा और तीन पुस्तक ‘शांति पथ’, ‘जिंदगी एक सफर है’ और ‘सोच तो लो’ प्रकाशित हुई। रेलवे की नौकरी, लेखन, फिल्मी दुनिया में गोते खाकर भी बेटों को पढ़ा-लिखाकर कंप्यूटर इंजीनियर की पढ़ाई करवाई, जो विदेश में हैं और बेटी अपने संसार में खुश है।

अन्य समाचार