अशोक तिवारी
मुंबई मेहनत-मजदूरी कर अपने सपनों को साकार करनेवालों का शहर है। इस शहर के हर मजदूर वर्ग की अपनी एक अलग ही कहानी है। हर किसी की कहानी में दर्द, मिठास और ट्रेजेडी है। कर्नाटक राज्य के बीदर डिस्ट्रिक्ट के हुमनाबाद तालुका के रहनेवाले अब्दुल सत्तार सैयद की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। अब्दुल सत्तार के पिता अब्दुल रज्जाक सैयद वर्ष १९७२ में परिवार के खर्चे को चलाने के लिए कर्नाटक से मुंबई शहर आ गए। पढ़े-लिखे न होने की वजह से अब्दुल रज्जाक को मुंबई शहर में मजदूरी का काम मिला। मुंबई शहर के विभिन्न कारखानों एवं कंस्ट्रक्शन की साइट पर अब्दुल रज्जाक मजदूरी का काम कर अपने परिवार का खर्च चलाते थे। अब्दुल रज्जाक का परिवार काफी बड़ा था। उनके परिवार में पांच बेटे तथा तीन बेटियां थीं। घर में गरीबी का आलम इतना ज्यादा था कि अब्दुल रज्जाक अपने बच्चों को उच्च शिक्षा नहीं दिला सके। सभी बच्चे सरकारी स्कूल से प्राथमिक शिक्षा ही प्राप्त कर सके। अब्दुल रज्जाक सैयद के बड़े बेटे अब्दुल सत्तार सैयद ने मात्र पांचवीं तक की पढ़ाई की। घर की माली स्थिति खराब थी इसलिए परिवार को आर्थिक मदद देने के लिए अब्दुल सत्तार सैयद ने ऑटोरिक्शा चलाना शुरू कर दिया। मुंबई की सड़कों पर १० वर्षों तक उन्होंने अनवरत ऑटोरिक्शा चलाया। इस बीच अब्दुल सत्तार सैयद का विवाह हो गया। विवाहोपरांत वो तीन बेटियों और बेटे के पिता बने। ऑटो चलाकर अब्दुल सत्तार सैयद ने अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलवाई। कुछ दिनों में पैसा जमाकर वो रियल स्टेट के बिजनेस में उतर गए। हाथ में कुछ पैसे आए तो अब्दुल सत्तार सैयद को समाज सेवा का शौक चढ़ा और उन्होंने वंचित बहुजन आघाड़ी नामक पार्टी ज्वॉइन कर ली। पार्टी के माध्यम से वो क्षेत्र में गरीबों के लिए जनसेवा का काम करने लगे। कोविड के दौरान अब्दुल सत्तार सैयद ने अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर झोपड़पट्टियों में काफी जनहित के कार्य किए। अब्दुल सत्तार सैयद की बड़ी लड़की पढ़-लिखकर विदेश में शिफ्ट हो गई, जबकि दूसरी दोनों लड़कियां कॉलेज में पढ़ाई कर रही हैं। अब्दुल सत्तार सैयद का बेटा अभी दसवीं कक्षा का छात्र है। अब्दुल सत्तार सैयद का सपना है कि वह अपने बेटे को उच्च शिक्षा दिलाएंगे, ताकि वह अच्छी पोस्ट पर कार्यरत हो सके। अब्दुल सत्तार सैयद का मानना है कि मेहनत करके इंसान अपने भाग्य को बदल सकता है। जब भी जिंदगी में गरीबी का आलम आए तो इंसान को घबराना नहीं चाहिए, बल्कि उसको दूर करने के लिए कठिन परिश्रम करना चाहिए। जो व्यक्ति गरीबी के आगे हार नहीं मानता उसके जीवन में एक ऐसा वक्त आता है जब गरीबी उससे हार मान लेती है। अब्दुल सत्तार सैयद का मानना है कि मुंबई शहर में ऑटोरिक्शा और टैक्सी चलाकर मेहनत करनेवाले लोगों के लिए सरकार को एक कुशल और अच्छी नीति बनानी चाहिए तथा उनका शोषण पुलिस विभाग द्वारा जो किया जाता है उस पर तुरंत लगाम लगाई जानी चाहिए।