मुख्यपृष्ठनमस्ते सामनामेहनतकश : कठोर मेहनत ने बदल दिया जीवन

मेहनतकश : कठोर मेहनत ने बदल दिया जीवन

अनिल मिश्र

सफल होने के लिए मेहनत जरूरी है। इसका कोई शॉर्टकट रास्ता नहीं है। आज जो सफल हैं उनकी मेहनत और संघर्ष को बहुत कम लोग ही जान पाते हैं। इन्हीं में से एक हैं महाराष्ट्र प्रदेश के भंडारा जिले के नवेगांव तालुका मोहाडी के निवासी शांताराम तुकाराम पुराम। शांताराम पुराम बताते हैं कि वे जब तीन साल के थे तभी उनके सिर से पिता का साया उठ गया। घर में मां, दो भाई एक बहन थी। खेती थी पर बहुत कम थी। पिता के न रहने के बाद माता ही पिता धर्म निभाने लगीं। मां मेहनत कर सभी बच्चों का पालन पोषण करने लगीं। गरीबी के बीच शांताराम पुराम ने किसी तरह से चौथी तक पढ़ाई की। उसके बाद पढ़ाई छोड़कर मात्र दस वर्ष की उम्र में ही काम करने लगे। खाली समय में गांव के लोगों की भी गाय चराते और खेतों में मजदूरी भी करते। इन सब काम से जो कुछ भी आय होती उससे घर का काम चलता। थोड़े और बड़े हुए तो शांताराम पुराम तहसील के जिला भूमापन व रिकार्ड कार्यालय में ठेकेदारी प्रथा पर सहायक (हेल्पर) का काम करने लगे। मनमुताबिक काम न मिलने के कारण उन्होंने वह काम भी छोड़ दिया। उसके बाद नागपुर के आकोराडी पावर हाउस में ठेकेदारी पर काम करने लगे। यहां उन्हें पांच रुपए प्रतिदिन मिलता था। उसके बाद वे एमईसीबी कलवा विभाग में आ गए। उस समय मशीन की बजाय मानवीय शक्ति से बड़े-बड़े टावर लगाए जाते थे। टावर लगाने के लिए पहाड़ों को हथौड़े, कुदाल और बारूद से तोड़ा जाता था। पत्थर तोड़ते समय हाथ में छाले पड़ जाते थे जिससे हाथ से रोटी नहीं तोड़ी जाती थी। मुंब्रा की पहाड़ी की चोटी पर टावर लगाने के लिए एक दिन में एक बोरी सीमेंट, एक बोरी रेती दो आदमी बड़ी मुश्किल से ले जा पाते थे। बहुत से इंजीनियर आए लेकिन काम को देखकर भाग जाते थे। जंगली पशुओं, विषैले सांप आदि जानवरो से बचबचाते हुए बिजली के पोल लगाए। रात के समय इतना थक जाते थे कि दूसरे दिन काम पर जाने को हिम्मत नहीं होती थी। लेकिन घर की जिम्मेदारियों के आगे सारी तकलाफें कम पड़ जाती थी। शांताराम पुराम की कठिन मेहनत को देखते हुए बिजली विभाग के अधिकारियों ने ग्यारह साल के बाद उन्हें स्थाई अर्थात परमानेंट कर दिया। कुछ साल बाद हेल्पर से इलेक्ट्रिशियन पद पर पदोन्नति हो गई। उनका विवाह भी हो गया था। विवाह के बाद दो लड़के और एक लड़की पैदा हुर्इं। कुछ समय बाद लड़की का देहांत हो गया। शांताराम पुराम ने २४ साल बिजली विभाग में नौकरी की। कभी अंबरनाथ के मोरोली गांव में पतरे के घर में रहनेवाले शांताराम पुराम अब बदलापुर-पूर्व में एक बिल्डिंग में रहने लगे। बड़ा लड़का प्रवीण पढ़ाई कर निजी बैंक में नौकरी करने लगा तो छोटा बेटा बाला अधिक नही पढ़ सका। दसवीं तक पढ़ने के बाद वह सीएट टायर कंपनी में अस्थाई तौर पर काम कर रहा है। सेवानिवृत होने के बाद शांताराम पुराम ने अपने गांव में भी घर बना लिया है। वे बताते हैं कि उन्हें आज हजार रुपए से भी कम पेंशन मिल रही है। पत्नी और उनका स्वास्थ्य आए दिन खराब रहता है। आज आय का अधिक पैसा दवाइयों पर खर्च हो रहा है। वे कहते हैं कि अब किसी तरह से बच्चों का भविष्य भी सुधर जाए तो किसी बात की चिंता नहीं रहेगी।

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