अनिल मिश्र
एक सामान्य परिवार में जन्मे और मानिंद घर के होने के बावजूद अपने परिवार को बेहतरीन स्तर पर ले जाने के लिए प्रमोद मिश्रा ने क्या कुछ नहीं किया। प्रमोद मिश्रा बताते हैं कि परिवार को आर्थिक रूप से सुदृढ़ बनाने के लिए उन्होंने वॉचमैनी करने के साथ ही सब्जी बेचने तक का काम किया। प्रमोद मिश्रा की ही कठोर तपस्या के बल पर आज उनके घर में तीन लोग सरकारी नौकरी में हैं।
दो लड़के और एक लड़की के पिता प्रमोद मिश्रा ने बताया कि उनके पिता स्व. हृदयनारायण मिश्रा सेंचुरी रेयान कंपनी में काम करते थे। अपनी कमाई से पिता घर और परिवार की बेहतरीन देखभाल कर रहे थे। लेकिन कमर दर्द के चलते मेडिकल में कंपनी ने उन्हें काम से निकाल दिया। दसवीं फेल प्रमोद मिश्रा १९७८ से पांच वर्षों तक सेंचुरी रेयान कंपनी, शहाड में बतौर बदली काम कर रहे थे। इसी बीच कंपनी में तालेबंदी हो गई और वो गांव आ गए। गांव आने के बाद जब तालेबंदी हट गई तो कंपनी ने अंडर टेकिंग लेकर कामगारों को नौकरी पर रखा। बीमारी के कारण अंडरटेकिंग समझौते पर हस्ताक्षर नहीं कर सके, जिसके कारण नौकरी से हाथ धो बैठे। पिता व खुद का रोजगार छिन जाने से परिवार पर संकट के बादल छा गए। संकट को मात देकर प्रमोद मिश्रा ने बिना घबराए फिर से सेंचुरी में काम करने के लिए प्रयास किया, परंतु उन्हें काम नहीं मिल सका। निजी मकान और अंबरनाथ स्थित चक्की पिता द्वारा बेच दिए जाने के कारण भाड़े पर मकान लेकर रात को उल्हासनगर में प्रमोद को चौकीदारी तक करनी पड़ी। इतना ही नहीं, प्रमोद कल्याण स्थित एक बिल्डिंग में चौकीदारी करने के साथ ही सब्जी बेचते थे और लिफ्ट भी चलाते थे। काफी मशक्कत करने के बाद प्रमोद सूरत चले गए, जहां उनके भाई-भतीजे भी आ गए। कपड़े की डाइंग करते हुए प्रमोद मिश्रा सुबह वाचमैनी करते। छोटी नौकरी कर सूरत में भाइयों को नौकरी दिलाने के साथ ही प्रमोद मिश्रा ने उन्हें ऑटोरिक्शा चालक का प्रशिक्षण दिलवाया। उन दिनों प्रमोद नींबू वाली एक दबंग महिला के रूम में भाड़े पर रहते थे। पुलिस ने अकारण पकड़कर उन्हें जेल में डाल दिया। संघर्ष के दिनों में दस-दस दिनों तक भूख से परेशान रहने के कारण उन्हें ढाबे पर खाना पड़ा। पंद्रह दिनों तक उन्होंने सूखी रोटी खाकर अपना पेट भरा। प्रमोद की मेहनत उस समय रंग लाई जब उनके छोटे बेटे धर्मेंद्र ने एमएससी किया और आज वो शिक्षक है। बड़ा बेटा महेंद्र आज कंप्यूटर रिपेयरिंग का काम कर रहे हैं। प्रमोद मिश्रा आज उत्तर प्रदेश स्थित अपने पैतृक गांव गनापुर, जिला जौनपुर आ गए हैं। गांव में खेती करने के साथ ही पूजा-पाठ में व्यस्त रहते हैं। प्रमोद मिश्रा बताते हैं कि अब उनके परिवार ने विकास की तरफ रुख बदला है। गांव में एक सुंदर मकान बनवाया गया है। उनके परिवार का एक सदस्य पुलिस और बहू पोस्ट ऑफिस में काम करती है। एक भतीजा जौनपुर में प्रशिक्षण ले रहा है। परिवार के काफी लोग रोजगार में व कुछ लोग प्रशिक्षण ले रहे हैं। अपनी मेहनत के बलबूते परिवार को एक नई दिशा देनेवाले प्रमोद मिश्रा के दिन बहुर गए हैं।