मुख्यपृष्ठस्तंभमेहनतकश : मेहनत के बलबूते पर संवारा परिवार की जिंदगी!

मेहनतकश : मेहनत के बलबूते पर संवारा परिवार की जिंदगी!

अशोक तिवारी
प्रत्येक इंसान के जीवन में संघर्ष कितना महत्वपूर्ण होता है, ये वही बता सकता है, जिसने जिंदगी में कठिन संघर्ष किया हो और संघर्ष के बाद कुछ कामयाबी हासिल की है। बिहार के दरभंगा जिले के एक छोटे से गांव से मुंबई शहर में रोजी-रोटी की तलाश में आए इकबाल अंजुम शेख की कहानी भी संघर्षों से भरी हुई है। इकबाल अंजुम शेख बताते हैं कि उनके पिता जहीर अहमद दरभंगा जिले के जाले तालुका के देवरा बंदोली गांव के रहने वाले थे। इकबाल अंजुम के परिवार में तीन भाई और दो बहनें थीं। परिवार में इकबाल अंजुम सबसे बड़े थे। जब इकबाल अंजुम की उम्र मात्र १० वर्ष थी, तभी उनके जीवन में एक भयानक हादसा हुआ। इकबाल अंजुम के पिता जहीर अहमद ने उनकी मां और भाई-बहनों को छोड़कर दूसरी शादी कर ली। इसके बाद इकबाल अंजुम के परिवार पर मुसीबत का पहाड़ टूट पड़ा। ऐसे में उनके मामा ने उन्हें सहारा दिया। इकबाल अंजुम की मां छोटी-मोटी नौकरी कर अपने बच्चों का भरण-पोषण करने लगीं। जैसे-तैसे मामा और मां के सहयोग से इकबाल अंजुम ने बारहवीं तक की शिक्षा बिहार से प्राप्त की। उसके बाद डीएमएलटी की डिग्री प्राप्त की। परिवार का खर्च चलाने के लिए वर्ष २००२ में इकबाल अंजुम दरभंगा जिले से मुंबई शहर आ गए। मुंबई में उन्होंने एक पैथोलॉजी लैबोरेट्री में तीन वर्षों तक असिस्टेंट के पद पर काम किया। बचपन से ही सामाजिक प्रताड़ना के शिकार हुए इकबाल अंजुम के दिल में समाजसेवा करने की प्रबल इच्छा थी। उसी इच्छा की वजह से वर्ष २००५ में उन्होंने लालू प्रसाद यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल ज्वॉइन किया। वर्ष २००७ में राष्ट्रीय जनता दल ने उन्हें नागपाड़ा के कमाठीपुरा से नगर निगम का चुनाव भी लड़ाया, जिसमें वो हार गए। लेकिन राजनीति में आने के बाद इकबाल अंजुम के सामाजिक कार्यों का दायरा बढ़ता चला गया। इसके बाद वो रियल स्टेट के धंधे में भी आ गए। आर्थिक आमदनी कुछ बढ़ी तो इकबाल अंजुम अपनी मां को बिहार से मुंबई शहर लेकर आ गए और अपनी मां की सेवा कर उनका कर्ज उतारने का प्रयास करने लगे। वर्ष २०१० में इकबाल अंजुम का विवाह हो गया, जिसके बाद उन्हें दो लड़के और दो लड़कियां पैदा हुर्इं। इकबाल अंजुम बताते हैं कि वर्ष २००९ में जब बिहार में भयानक बाढ़ आई तो उन्होंने मुंबई की सड़कों पर भीख मांगकर चंदा इकट्ठा किया था और बिहार सरकार को मदद के तौर पर भेजा था। मुंबई शहर में जब कोरोना की लहर थी, तब इकबाल अंजुम ने अपनी पूरी टीम के साथ दक्षिण मुंबई और मुंब्रा इलाके में जनता की भलाई के लिए अनेक वैंâप लगार्ए। इकबाल अंजुम के चारों बच्चे आज अच्छी शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। उनका सपना है कि वह अपने बच्चों को उच्च शिक्षित कराकर वह मुकाम दिलाएंगे, ताकि उन्हें खुद की तरह दूसरों के सामने हाथ न फैलाना पड़े। इकबाल अंजुम मुंबई शहर की कई गैर सामाजिक संगठनों से जुड़े हुए हैं, जिनके माध्यम से वो झोपड़पट्टियों में मेडिकल कैंप इत्यादि का आयोजन करते रहते हैं।

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