मुख्यपृष्ठनमस्ते सामनामेहनतकश : मेहनत के दम पर बदली किस्मत

मेहनतकश : मेहनत के दम पर बदली किस्मत

सगीर अंसारी

कहते हैं कड़ी मेहनत और लोगों की सेवा करने की जिद हो तो कोई भी बड़े से बड़ा काम सफल हो जाता है। किसी की सेवा करने के लिए जेब में पैसे हों या न हों लेकिन दिल में उदारता अवश्य होनी चाहिए। बस…फिर क्या, काम अपने-आप होता चला जाता है। दुनिया में कुछ ऐसे भी लोग हैं, जो जिंदगी में कितने भी उतार-चढ़ाव आएं, लेकिन वे हार न मानते हुए अपनी मेहनत के दम पर अपनी किस्मत को बदल ही लेते हैं। ऐसे ही एक नवयुवक मोहम्मद समीउल्लाह अंसारी हैं, जिन्होंने तकलीफों के बावजूद अपनी तरक्की की। एक साधारण युवक समीउल्लाह के पिता मोहम्मद नजीर बिहार से रोजी-रोटी की तलाश में मुंबई आए थे। उनके पिता ने यहीं मदनपुरा क्षेत्र में बुनकर का काम किया। अपना कारोबार गंवाने के बाद उन्होंने एक बार फिर किस्मत आजमाई। कई वर्षों तक मेहनत के बाद उन्होंने मुंबई में अपना कारोबार शुरू किया। अपने लोगों के बीच रहकर उन्होंने उनकी समस्याओं को सुनकर उन्हें दूर करने की कोशिश की और यहां शिक्षा के हालात को देखते हुए गोवंडी के उमर खड़ी में एक मदरसा व मस्जिद की बुनियाद डाली। कुछ वर्षों बाद उन्होंने तत्कालीन शिक्षा मंत्री प्रो.जावेद खान की मदद से मदरसे को हाई स्कूल में तब्दील किया और राजनीति का सफर भी शुरू किया। इसी दौरान समीउल्लाह अंसारी ने कम उम्र में अपने पिता के नक्शे कदम पर चलते हुए समाजसेवा शुरू की। साथ ही गारमेंट बिजनेस में अपने काम की शुरुआत की। कड़ी मेहनत व लगन से काम करनेवाले समीउल्लाह समय मिलने पर समाजसेवा भी करते हैं।
लोगों की समस्याओं को अधिकारियों व नेताओं तक पहुंचाना व लोगों की समस्याओं का हल निकालना उनका दस्तूर बना हुआ है। इनके इस समाजसेवा के जज्बे को देखते हुए वर्ष २००७ में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ने उन्हें बैगनवाड़ी वॉर्ड क्र. १३६ से मनपा चुनाव का टिकट दिया, चूंकि यह वॉर्ड महिला आरक्षित थी, इसलिए समीउल्लाह ने अपनी बहन को चुनाव मैदान में उतारा। लेकिन बदकिस्मती से कुछ ही वोटों से वह चुनाव हार गईं। चुनाव हारने का पछतावा न करते हुए उन्होंने समाजसेवा के अपने संघर्ष को जारी रखा और खासकर बिहारवासी, जो एक बड़ी आबादी के साथ गोवंडी क्षेत्र में रहते हैं। आज भी वे उनकी बेसिक समस्याओं के लिए लड़ते आ रहे हैं। कोरोना काल के दौरान, जब गरीब तबके के लोग दो वक्त के खाने के लिए तरस रहे थे, उस समय क्षेत्र में लोगों की मदद के साथ-साथ वे अपनी जान की परवाह किए बगैर मरीजों को अस्पतालों तक ले जाकर उनका इलाज करवाया। इसके अलावा अप्रवासी मजदूरों को खाना पहुंचाना, गरीब परिवारों को राशन देना व उनको उनके गांव तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई और आज भी क्षेत्र में चाहे पानी की समस्या हो या बच्चों की शिक्षा का सवाल हो या फिर गंभीर बीमारयों की समस्या वे मरीजों की मदद के लिए हमेशा आगे रहते हैं। उन्होंने क्षेत्र में ब्लड डोनेशन कैंप के साथ-साथ दूसरे कई कामों को अंजाम दिया है। यही वजह है कि आज क्षेत्र में समीउल्लाह अंसारी पहचान के मोहताज नहीं हैं।

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