अनिल मिश्र
आज की इस बढ़ती महंगाई में एक सामान्य व्यक्ति के लिए अपने बच्चों को डॉक्टर बनाना इतनी आसान बात नहीं है। लेकिन सेंच्युरी रेयान कंपनी में वैâजुअल के पद पर काम करने के साथ ही वर्तमान जीवनशैली को बनाए रखने के लिए वैâटरिंग का भी व्यवसाय करनेवाले राहुल करोतीय अपने बेटे को डॉक्टर बनाने का सपना देख रहे हैं।
राहुल कहते हैं कि सेंचुरी रेयान ग्रासिम समूह की एक प्रतिष्ठित कंपनी है, परंतु वैâजुअल से स्थाई कब होऊंगा यह कहना कठिन है। इसलिए अपने मकसद को प्राप्त करने के लिए नौकरी के साथ ही अन्य काम करना जरूरी हो गया है। अपने ढाई वर्ष के बेटे को डॉक्टर बनाने का सपना है, जिसके लिए मैं अभी से मेहनत कर रहा हूं, ताकि वृद्धावस्था के दौरान मैं खुद का और अपने बेटे का भविष्य संवार सकूं। राहुल के पिता रतनलाल भी सेंच्युरी रेयान में काम करते थे। सेवानिवृत्त होने के बाद पिता ने म्हारल गांव में एक चाल में घर लिया। राहुल बताते हैं कि घर की आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण उन्होंने पढ़ाई छोड़कर ठेकेदारी प्रथा पर विश्राम भवन में बारात को खाद्य सामग्री सर्व करनेवाले वेटर का काम किया। सेंच्युरी रेयान के साहबों की गाड़ियों तक की वो सफाई करते थे। खैर, विश्राम भवन में वेटर का काम करते हुए राहुल ने स्वादिष्ट खाना बनाना भी सीख लिया। कोरोना से पहले म्हारल गांव में उन्होंने एक ढाबा भाड़े पर शुरू किया जो काफी अच्छा चल रहा था। लेकिन कोरोना महामारी के आ जाने से सुरक्षा को लेकर सरकार द्वारा दिए गए दिशानिर्देश के चलते ढाबे को बंद करना पड़ा। तीन साल से कंपनी में बतौर कैजुअल काम कर रहा हूं। कैजुअल में ड्यूटी कम मिलती है। ऐसी स्थिति में घर चलाने के लिए धन लक्ष्मी नामक केटरिंग का कारोबार शुरू किया। आठ साल ठेकेदारी और तीन वर्ष वैâजुअल के हो गए। २८ वर्ष की उम्र में आज भी मुझे परमानेंट होने का इंतजार है। राहुल बताते हैं कि पिता के सेवानिवृत होने के बाद उनकी मां को तकलीफ हो गई और पिता द्वारा भविष्य के लिए रखी गई जमापूंजी मां की महंगी दवाओं और उपचार में खत्म हो गई। काफी कर्ज हो जाने के बावजूद मां स्वस्थ नहीं हुर्इं और उनका देहांत हो गया। केटरिंग के साथ ही नौकरी करनेवाले राहुल आज दोहरी नाव पर सवार होकर अपने परिवार का भरण-पोषण कर रहे हैं। ढाई वर्ष के बेटे के पिता राहुल उसे डॉक्टर बनाना चाहते हैं। अपने इस सपने को साकार करने के लिए राहुल जी-जान से जुटे हुए हैं। सादा जीवन उच्च विचार को अपना आदर्श मानकर काम करनेवाले राहुल किसी भी तरह का नशा नहीं करते। जीवन की इस नाव को आगे बढ़ाने के लिए उनकी पत्नी भी घर-परिवार को संभालते हुए सिलाई मशीन चलाती हैं। उससे उन्हें जो भी आमदनी होती थी उसका उपयोग कर्ज भरने के काम आता था। आज राहुल के पिता काफी वृद्ध हो चुके हैं और एक आदर्श बेटे की तरह राहुल उनका उपचार करवाने के साथ ही उनकी सेवा भी कर रहे हैं।