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खुराफातों की फसल!

पुराने संदूक से निकला मुड़ा-तुड़ा
बदरंग कागज का एक पुर्जा
तेरे हाथों में है, टुकड़े-टुकड़े करने से पहले
पढ़ लिया होता एकबार।
यह तुम्हें मिला पहला
प्रेम पत्र था, शायद
मैंने लोगों की नजरों से छुपाकर
मुश्किल से तुम तक पहुंचाया था,
एकांत में पढ़ कर तुमने मुट्ठी में दबा लिया था
एक ऐसा ही कागज का टुकड़ा
मुझ तक तुमने भी सरकाया था।
दोनों ने चुन-चुनकर प्रीत के शब्द
अपने पत्र में लिखे थे।
प्रेम दर्शाते यह शब्द केवल सुने थे हमने
फिर भी अपनी प्रीत को जताने के लिए लिख दिए थे।
शब्द मात्र शब्द ही थे जिनकी
गहराई और कठिनाई से अनभिज्ञ थे ,
आज विचार रहा हूं
बिन सोचे जो लिखा था
वह कितना भावनाओं
से रचा पगा था,
स्वार्थ, मौकापरस्ती से अछूता था।
आसमान तब मुट्ठी में समाया लगता था
वासंती ऋतु राज छाया हुआ था।
तुम्हारे हाथों से चिंदा-चिंदा कागज नहीं होगा
बिखर जाएगी उस प्रेम की नजरों की लड़ी
जो गोमुख से निकलती पावन सरिता का जल थी
अहम, संशय की गंदगी नहीं थी।
अल्हड़ पन का प्रेम मन से अंकुरित होता है
बाकी तो खुराफातों फसल है।
-बेला विरदी

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