सामना संवाददाता / मुंबई
मुंबई के टाटा मेमोरियल अस्पताल समेत देश के विभिन्न अस्पतालों द्वारा किए गए अध्ययनों में सामने आए आंकड़ों से पता चला है कि तंबाकू का सेवन करनेवालों की संख्या तेजी से बढ़ी है। इस कारण वैंâसर के मामलों में भी बढ़ोतरी हुई है। इस वजह से महाराष्ट्र की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली पर काफी बोझ पड़ रहा है। ऐसे में स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने वकालत की है कि शिक्षा संस्थानों के पास तंबाकू उत्पादों की बिक्री पर सख्त प्रतिबंध लगाने की जरूरत है। इसके साथ ही वैंâसर के इलाज को लेकर उन्होंने कहा है कि इस जानलेवा बीमारी का यदि समय पर पता चल जाता है तो इलाज संभव है।
उल्लेखनीय है कि अध्ययनों में कहा गया है कि महाराष्ट्र की २७ प्रतिशत आबादी तंबाकू सेवन के प्रतिकूल असर से प्रभावित है। चिकित्सा विशेषज्ञों का यह मानना है कि तंबाकू जनित वैंâसर के लक्षणों के बारे में जागरूकता की कमी और कम उम्र में तंबाकू उत्पादों के संपर्क में आना इसका मुख्य कारण है। टाटा मेमोरियल अस्पताल के सर्जिकल ऑन्कोलॉजी विभाग में थोरेसिक सर्विसेज की प्रोफेसर डॉ. सविता जिवनानी ने कहा कि जो लोग २१ साल की उम्र से पहले धूम्रपान करना शुरू करते हैं, उनके तंबाकू के आदी होने और जीवन भर धूम्रपान जारी रखने की संभावना अधिक होती है। इससे स्पष्ट है कि स्कूल और कॉलेज परिसरों के पास तंबाकू उत्पादों की बिक्री पर तुरंत प्रतिबंध लगानेवाले नियमों को कठोर बनाने की जरूरत है।
टाटा में मिले ४,४०० फेफड़े और
अन्न नलिका कैंसर के मरीज
डॉ. सविता ने कहा कि साल २०२३ में टाटा मेमोरियल अस्पताल में थोरेसिक डिजीज मैनेजमेंट ग्रुप ने फेफड़ों के वैंâसर से पीड़ित २,६०० रोगियों और अन्नप्रणाली के कैंसर से पीड़ित १८०० रोगियों का पंजीकरण किया। हालांकि इनमें से केवल १४० फेफड़ों के कैंसर और १८० अन्नप्रणाली कैंसर के रोगियों का ही ऑपरेशन किया जा सका, क्योंकि उनमें से बाकी या तो उन्नत अवस्था में थे या सर्जरी के लिए उपयुक्त नहीं थे। उन्होंने यह भी कहा कि कई बार फेफड़े के वैंâसर पकड़ में नहीं आते। इन कैंसरों का जल्दी पता लगने से जीवित रहने की दर ८० से ८५ प्रतिशत तक बढ़ जाती है, लेकिन यदि इसका पता उन्नत अवस्था में लगता है तो इससे उपचार और इलाज के लिए बड़ी चुनौती पैदा हो सकती है।