दर-दर भटकने लगे हैं अध्यापक
अभिभावकों को दिखा रहे लालच
सामना संवाददाता / मुंबई
कॉन्वेंट और अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में बढ़ती प्रतिस्पर्धा के कारण जिला परिषद, नगर परिषद और मनपा स्कूलों सहित निजी हिंदी व मराठी माध्यम के स्कूलों में छात्रों की संख्या दिनों-दिन घटती जा रही है। इससे इन माध्यमों के स्कूलों पर बंद होने का संकट मंडराने लगा है। ऐसे में इसे लेकर संबंधित निजी स्कूलों के संचालकों ने फरमान जारी किया है। इसमें कहा गया है कि यदि नौकरी बचानी है तो उनके अरमान को पूरा करते हुए छात्रों को लाएं। इस फरमान से डरे शिक्षक अब नए छात्रों की तलाश में दर-दर भटक रहे हैं। साथ ही अभिभावकों को स्कूल में दाखिला दिलाने के नाम पर स्कूल बैग, किताबें, यूनिफॉर्म, जूते और तरह-तरह के लालच दिखाए जा रहे हैं।
उल्लेखनीय है कि छात्र और अभिभावक अंग्रेजी व कॉन्वेंट स्कूलों की पढ़ाई को पसंद कर रहे हैं। अभिभावकों की धारणा है कि अंग्रेजी माध्यम के कॉन्वेंट स्कूलों में अच्छी शिक्षा मिलती है। ऐसे में सभी माता-पिता चाहते हैं कि उनके बच्चे को अच्छी शिक्षा मिले। इसके लिए माता-पिता अंग्रेजी मीडिया के कॉन्वेंट में प्रवेश पाने के लिए जद्दोजहद करते हैं। दूसरी ओर जिला परिषद, नगर परिषद और मनपा स्कूलों के साथ-साथ निजी हिंदी, मराठी माध्यम के स्कूलों को छात्रों का मिलना मुश्किल हो गया है, इसका असर शिक्षकों की नौकरी पर भी पड़ा है। इन स्कूलों के संचालकों द्वारा हर साल शिक्षकों को निर्देश दिया जाता है कि यदि आप अपनी नौकरी बचाए रखना चाहते हैं, तो छात्रों को खोजें और उन्हें अपने स्कूलों में दाखिला दिलाएं इसलिए अधिकांश स्कूलों के शिक्षक सुबह-शाम शहर और ग्रामीण इलाकों की बस्तियों के साथ कॅर्ड में छात्र-छात्राओं की तलाश करते नजर आते हैं।
शिक्षक अब अभिभावकों को यह समझाते हुए दिखाई दे रहे हैं कि हमारा स्कूल अच्छा है। साथ ही उन्हें तरह-तरह की सुविधाएं और अन्य तरह के लालच दिखाए जा रहे हैं।
ग्रामीण क्षेत्रों से शहर आनेवाले छात्रों को बस और ऑटो सेवा उपलब्ध कराई जा रही है। इसके साथ ही कुछ संस्थानों ने तो छात्रों का एक साल तक पूरा शैक्षणिक खर्च उठाने की भी तैयारी दिखाई है। जानकारी के मुताबिक, अधिकांश संस्थान इन शिक्षकों से एक महीने का वेतन अपने पास रखते हैं और फिर इस वेतन को छात्र अभियानों पर खर्च करते हैं।
स्वयं के खर्च पर पांचवीं में दाखिला
जिला परिषद, नगर परिषद और मनपा स्कूलों में छात्रों की संख्या दिन-ब-दिन कम होती जा रही है। यदि शिक्षक अपनी कक्षा संख्या और नौकरियां बरकरार रखना चाहते हैं तो उन्हें छात्रों को ढूंढ़ना होगा। कुछ शिक्षक सीधे संबंधित स्कूल के प्रिंसिपल से संपर्क कर अपने खर्च पर छात्रों के जन्म प्रमाण पत्र और मार्कशीट प्राप्त कर रहे हैं और छात्रों को कक्षा ५ में प्रवेश दे रहे हैं। यहां तक कि कुछ अंग्रेजी माध्यम के कॉन्वेंट के शिक्षकों को भी छात्र खोज अभियान चलाना पड़ रहा है।