मैं सुनाने आया था कहानी अपनी,
उसकी कहानी सुन,
मैं अपनी भूल गया
कहानी, कहानी में अंतर महज इतना,
मैं कहता, “आंसू भी हैं”
वो कहती, “आंसू ही हैं”
मेरी ‘भी’ पर उसकी ‘ही’ ने
ऐसा प्रहार किया…
ऐसा वार किया कि …
अब साहस नहीं होता
कुछ अपनी सुनाने का,
अब तो आदत पड़ चुकी है
“उसकी कहानी” सुनने की
या यूं समझ लो कि अब
‘उसकी मेरी’…’मेरी उसकी’
एक ही कहानी है
हम,”दो जिस्म, एक जान” हो गए हैं
अब हमारे बीच ‘भी’ और ‘ही’ का
अंतर खत्म हो गया है।
-त्रिलोचन सिंह अरोरा