भूत-पिशाच बटोरी दिगंबर खेले मसाने में होली
हिमांशु राज
सुबह से भक्तजन दुनिया की दुर्लभ चिता भस्म से खेली जाने वाली होली की तैयारी में लग गए थे। जहां दुख व अपनों से बिछड़ने का संताप देखा जाता था, वहां आज के दिन शहनाई की मंगल ध्वनि बजती है। हर शिवगण अपने-अपने लिए उपयुक्त स्थान खोजकर इस दिव्य व अलौकिक दृश्य को अपनी अंतरआत्मा में उतारकर शिवोहम् होने को अधीर हुए जाता है। संपूर्ण विश्व में काशी का मणिकर्णिका घाट ही एक ऐसा महाश्मशान है, जहां दुख नहीं उत्सव होते हैं। ये वो मंगल स्थान है, जहां लोग देह त्यागने आते हैं फिर भी जिसकी किस्मत में होती है, वही यहां देह त्याग पाता है।
जब समय आया बाबा के मध्याह्न स्नान का, उस समय मणिकर्णिका तीर्थ पर तो भक्तों का उत्साह देखते ही बन रहा था। हजारों की संख्या में भक्तों का जनसैलाब मणिकर्णिका घाट पर पहुंच रहा था। यह कहा जाता है कि बाबा विश्वनाथ दोपहर में मध्याह्न स्नान करने मणिकर्णिका तीर्थ पर आते हैं तत्पश्चात सभी तीर्थ स्नान करके यहां से पुण्य लेकर अपने स्थान जाते हैं और वहां स्नान करने वालों को वे पुण्य बांटते हैं।
अंत में बाबा स्नान के बाद अपने प्रियगणों के साथ मणिकर्णिका महाश्मशान पर आकर चिता भस्म से होली खेलते हैं। वर्षों की यह परंपरा अनादिकाल से यहां भव्य रूप से मनाई जाती रही है। इस परंपरा को पुनर्जीवित किया बाबा महाश्मशान नाथ मंदिर के व्यवस्थापक काशीपुत्र गुलशन कपूर ने, जो पिछले २४ वर्षों से इस परंपरा को भव्य रूप देकर जनसहयोग व मीडिया कर्मियों के विशेष सहयोग से दुनिया के कोने-कोने तक पहुंचा रहे हैं।
गुलशन कपूर ने इस कार्यक्रम के बारे में बताते हुए कहा कि काशी में यह मान्यता है कि रंगभरी एकादशी के दिन बाबा विश्वनाथ माता पार्वती का गौना (विदाई) कराकर अपने धाम काशी लाते हैं जिसे उत्सव के रूप में काशीवाशी मनाते हैं और रंग का त्योहार होली का प्रारम्भ माना जाता है। इस उत्सव में सभी शामिल होते हैं जैसे देवी, देवता, यक्ष, गंधर्व, मनुष्य और जो शामिल नहीं होते हैं, वे हैं बाबा के प्रियगण भूत, प्रेत, पिशाच, किन्नर, दृश्य, अदृश्य, शक्तियां जिन्हें बाबा ने स्वयं आम जनमानस के बीच जाने से रोक रखा है। लेकिन बाबा तो बाबा हैं, वे वैâसे अपनों की खुशियों पर ध्यान नहीं देते। अंत में सबका बेड़ा पार लगाने वाले शिवशंकर उन सभी के साथ चिता भस्म की होली खेलने श्मशान आते हैं और आज से ही सम्पूर्ण विश्व को प्रसन्नता, हर्ष-उल्लास देने वाले त्योहार होली का आरम्भ होता है, जिसमें दुश्मन भी गले मिल जाते हैं।
चूंकि इस पारंपरिक उत्सव को काशी के मणिकर्णिका घाट पर जलती चिताओं के बीच मनाया जाता है, उसे देखने दुनिया भर से लोग काशी आते हैं। आज इस आयोजन में गुलशन कपूर ने बाबा महाश्मशान नाथ और माता मशान काली ( शिव शक्ति ) का मध्याह्न आरती कर बाबा को जया, विजया, मिष्ठान व सोमरस का भोग लगाया। बाबा व माता को चिता भस्म व नीला गुलाल चढ़ाया। जैसा कि द्वारका जी का संदेश था, होली योगेश्वर श्रीकृष्ण-राधा का भी प्रिय त्योहार है, हर का उत्सव बिना हरि के वैâसे संभव? इस कारण इस वर्ष हर और हरि दोनों के लिए भस्म के साथ नीला गुलाल, माता मशान काली को लाल गुलाल चढ़ाकर होली प्रारंभ की गई। पूरा मंदिर प्रांगण और शवदाह स्थल भस्म से भर गया था। इस उत्सव में इस वर्ष विशेष रूप से जगद्गुरु सतुवा बाबा संतोष दास महाराज, अघोर पीठाधीश्वर कपाली बाबा महाराज, गुलशन कपूर, (मंदिर व्यवस्थापक), चैनू प्रसाद गुप्ता (अध्यक्ष), विजय शंकर पांडेय, अंकित झीगरन, राजू पाठक, बिहारीलाल गुप्ता, सोनू कपूर, संजय गुप्ता, मनोज शर्मा, दीपक तिवारी, विवेक चौरसिया, अजय गुप्ता, करण जायसवाल, सुबोध वर्मा सहित हजारों भक्त शामिल हुए।