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प्रलंबित मामले को सदन में कैसे उठाया? … सालियन मामले में शिवसेना का सरकार से सवाल

– प्वाइंट ऑफ इनफॉर्मेशन का दिया हवाला
सामना संवाददाता / मुंबई
पिछले पांच सालों से दिशा सालियन केस कोर्ट में चल रहा है। यह केस आज भी न्यायालय में प्रलंबित है। हालांकि, हम सदन में इस तरह के किसी मुद्दे को लेकर पूछते हैं तो हमसे कहा जाता है कि मामला न्यायालय में विचाराधीन है। जिस घटना की जानकारी किसी को नहीं होती, उसे सदन के संज्ञान में लाने और सदन को सावधान करने के लिए पॉइंट ऑफ इनफॉर्मेशन उठाया जाता है। यह मामला न्यायालय में प्रलंबित होने और इसकी जानकारी सभी को होने पर भी प्वाइंट आफ इनफॉर्मेशन के तहत कैसे उठाया गया। इस तरह का सवाल सीधे सभापति से शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) के सदस्य अनिल परब ने किया।
उन्होंने यह भी कहा कि इस मामले में जो भी फैसला लेना होगा, उसे कोर्ट लेगा। इस बीच जोरदार हंगामा के चलते विधान परिषद सदन की कार्यवाही तीन बार स्थगित करनी पड़ी। विधान परिषद में सदस्य मनीषा कायंदे ने दिशा सालियन मामले में मुंबई उच्च न्यायालय में दायर की गई याचिका की जानकारी पॉइंट ऑफ इनफॉर्मेशन के माध्यम से सदन को दी। इस पर प्रवीण दरेकर, चित्रा वाघ, उमा खापरे ने राज्य सरकार से नए सिरे से सीबीआई जांच करने और एसआईटी जांच का निष्कर्ष सार्वजनिक करने की मांग की।
दोहरापन हुआ उजागर
दिशा सालियन मामले में सीबीआई जांच में आदित्य ठाकरे को क्लीनचिट दी गई। यह क्लीनचिट मिलने के बाद मनीषा कायंदे ने ही ट्वीट कर आदित्य ठाकरे को बधाई दी थी। यह ट्वीट अनिल परब ने पढ़कर सुनाया और इस मामले में कायंदे के दोहरेपन को सदन के सामने उजागर किया।

विपक्षी नेताओं का फूटा गुस्सा
विधान परिषद के नेता प्रतिपक्ष अंबादास दानवे ने कहा कि कार्यसूची के दिनभर के कार्यक्रम तय होने के बावजूद पॉइंट ऑफ इनफॉर्मेशन पर बोलते समय चार-चार लोगों को बोलने का मौका कैसे दिया जा सकता है? राज्य सरकार ने इस मामले में एसआईटी गठित की है। जितनी जांच करनी हो, करो, लेकिन हर कोई इसे राजनीतिक मुद्दा बनाकर चार-चार लोगों को बोलने दे, यह सही नहीं है। इस पर मंत्री गिरीश महाजन ने दानवे को रोकने की कोशिश की। इस पर दानवे ने कहा कि नेता प्रतिपक्ष के बोलते समय बीच में बोलना और उन्हें रोकने की कोशिश करना सही नहीं है। आप सुनने को तैयार ही नहीं हैं। सब कुछ आपका ही सही है, यदि आपको ऐसा कहना है तो आप ही सदन चलाओ, हम बाहर जाकर बैठते हैं। इस तरह का गुस्सा अंबादास दानवे ने व्यक्त किया।

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