सामना संवाददाता/ मुंबई
मुंबई मेट्रोपोलिटन रीजन डेवलपमेंट अथॉरिटी (एमएमआरडीए) ने १,१०० करोड़ रुपए की एलिवेटेड कॉरिडोर परियोजना की घोषणा की है, जिसमें मुंबई ट्रांसहार्बर सीलिंक (एमटीएचएल) और मुंबई-पुणे एक्सप्रेसवे के बीच कनेक्टिविटी को बेहतर बनाने का दावा किया गया है। इस परियोजना को २०२७ तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है, लेकिन प्रशासन के पुराने अधूरे वादों और योजनाओं का इतिहास इसे लेकर गंभीर सवाल उठाता है। क्या यह योजना भी उसी तरह अधूरी तो नहीं रह जाएगी, जैसे पहले की कई परियोजनाएं रह गई हैं?
क्या प्रशासन ने सही तैयारी की है?
प्रशासन का यह कदम एक अच्छा प्रयास हो सकता है, लेकिन अगर पहले की योजनाओं को देखें तो क्या इस बार प्रशासन ने सही तरीके से तैयारी की है? क्या यह प्रोजेक्ट भी पिछली योजनाओं की तरह समय और बजट की कमी का शिकार होगा या इसे सफलता के साथ लागू किया जाएगा? क्या प्रशासन अपनी पुरानी गलतियों से कुछ सीखा है?
अधूरी योजनाओं का प्रभाव
मुंबई में पहले से ही ट्रैफिक की समस्या और योजना से जुड़े कई अधूरे प्रोजेक्ट्स हैं। अब यह देखना बाकी है कि प्रशासन इस परियोजना को समय पर २०२७ तक और सही तरीके से पूरा कर पाता है या यह भी एक और दिखावा बनकर रह जाएगा।
पूर्व की परियोजनाओं की असफलता का इतिहास
मुंबई में मेट्रो परियोजना के अंतर्गत कई योजनाएं बनाई गई थीं, जो आज भी लंबित हैं। मुंबई में सिग्नल फ्री कॉरिडोर और वेस्टर्न एक्सप्रेस हाईवे का चौड़ीकरण जैसे प्रोजेक्ट्स भी समय पर पूरे नहीं हो पाए। प्रशासन ने जब भी मुंबईवासियों के लिए बड़ी योजनाओं का एलान किया, उन्हें समय पर पूरा करने में प्रशासन असफल रहा है। इसी तरह की पिछली विफलताओं को देखते हुए यह सवाल उठता है कि क्या एलिवेटेड कॉरिडोर की योजना भी सिर्फ कागजों तक सीमित रह जाएगी?