देश की अहम संचालन प्रक्रिया रेल मानी जाती है जिस पर आज तक कोई सरकार उतना काम नहीं कर पाई जितना होना चाहिए। बीते वर्ष रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा था कि चार-पांच साल में हमें 1000 करोड़ यात्रियों को सफर कराने की क्षमता विकसित करनी होगी, क्योंकि जनसंख्या बढ़ रही है। इसके लिए हमें 3000 अतिरिक्त ट्रेनों की जरूरत पड़ेगी लेकिन मंत्री जी इस बयान के बाद लोग या तो गुस्से में नजर आए या फिर हंसते हुए चूंकि बीते 7 वर्षों में सरकार केवल 2132 इंजन बढ़ा पाई है। खबरों के अनुसार रेलवे ऐसा प्लान बना रहा है कि अगले लगभग पांच वर्षों में साल में वेटिंग टिकट की समस्या खत्म हो जाएगी। रेलवे आंकड़ों के अनुसार एक वर्ष में रेल कोचों की संख्या मात्र 5,000 ही बढ़ पाई है। यदि अगर इंजन और कोच बनने की यही रफ्तार रही तो चार-पांच साल में 3000 नई ट्रेनें किसी भी स्थिति में संभव नहीं। दरअसल सरकार कभी भी तथ्यात्मक बातों को भी सामने नहीं आने देती चूंकि यदि आप युध्द स्तर पर भी रेल का निर्णाण कर भी दिया जाए तो पटरी की व्यवस्था कैसे होगी चूंकि हमारी पटरी बनाने की गति रेल बनाने के हिसाब से भी बहुत धीमी है। हमारे देश में 1980-81 में कुल 75,860 किलोमीटर लंबा रेल ट्रैक था और 2016-17 में यह 94000 किलोमीटर हुआ। थोड़ा और विस्तार किया गया तो 2021-22 में 1,02,900 किलोमीटर पर पहुंचा। इस हिसाब से बीते पांच वर्षो में मात्र 9,000 किलोमीटर का विस्तार हुआ और यदि आगे भी पटरी बिछाने की स्थिति के हिसाब से भी 3,000 नई गाड़ियों के लिहाज से यह काफी नहीं होगा। सरकार काफी समय से बुलेट ट्रेन की चर्चा बहुत जोरों पर थी लेकिन बावजूद इसके इसमें भी देरी हुई।
ज्ञात हो कि 14 सितंबर 2017 में भारत और जापान के प्रधानमंत्री ने मुंबई और अमदाबाद के बीच बुलेट ट्रेन चलाने की परियोजना का शिलान्यास किया था। और इसे दिसंबर 2023 तक पूरा करना है। लेकिन, जून 2023 तक जमीन अधिग्रहण का पूरा काम भी नहीं हो पाया था। इसके अलावा 15 अगस्त 2021 को लाल किले से भाषण देते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषणा की थी आने वाले डेढ़ साल में 75 वंदे भारत ट्रेनें देश के हर कोने को आपस में जोड़ेंगी लेकिन अब तक केवल 34 वंदे भारत ट्रेनें ही संचालित हुई हैं। बहरहाल, ऐसे कई प्रोजेक्ट हैं जो अभी भी वादे के मुताबिक पूरे नहीं हो पा रहे जिससे देश की गति प्रभावित हो रही है। सरकार को जनता से जुड़े बुनियादी मुद्दों पर तो काम करना चाहिए। जिस स्तर पर हमारे देश की जनसंख्या बढ़ रही है उस स्तर पर हम समय के अपडेट व अपग्रेट होते जा रहे हैं। स्थिति पर काबू पाने के लिए या तो जनसंख्या को नियंत्रित करने के लिए कोई ठोस कदम उठाए जाये या फिर समय के साथ चीजे पूरी की जाए अन्यथा अव्यव्स्था फैलती रहेगी और आमजन को परेशानी का सामना और अधिक करना पड़ सकता है। और यदि सुरक्षा के लिहाज से भी बात करें तो भी स्थिति बेहतर नही मानी जाती। इस साधन को आम से लेकर खास प्रयोग करता है,वैसे तो इस साधन हर समय अहम माना जाता है लेकिन त्योहारों पर इसका उपयोग बढ़ जाता है चूंकि लोगों को अपने शहर व गांव जाना होता है। लेकिन तकलीफ तब होती है जब सरकार ऐसे मौके पर भी यात्रियों की सुरक्षा नही दे पाती। हर बार त्योहारों पर अधिक भीड़ होने से लोगों की जाने जाती रहती हैं और यह कभी-कभार नही हर बार होता है। दिवाली के बाद छठ पूजा के चलते पूर्वांचल और बिहार की तरफ जाने वाली ट्रेनों में यात्रियों की भीड़ बहुत अधिक थी। बीते बृहस्पतिवार को अवध असम एक्सप्रेस में पत्नी के साथ स्लीपर कोच में सवार असम जा रहे युवक को अधिक भीड़ होने के कारण सांस लेने में दिक्कत हो गई और ट्रेन के हापुड़ पहुंचने से पहले ही युवक ने दम तोड़ दिया। रेल प्रशासन व किसी से उपचार व मदद न मिलने की वजह से युवक ने अपनी जान गवा दी। मृतक की पत्नी ने बताया कि उनके पति ललित को सांस की दिक्कत थी। कोच में अधिक भीड़ बढ़ जाने के कारण उनको अधिक परेशानी होने लगी। ट्रेन के दिल्ली स्टेशन से निकलने के बाद सांस लेने में दिक्कत के साथ सीने में दर्द होना शुरू हो गया। इसके बाद दर्द बढ़ता गया जिसके कारण ललित बेहोश होकर गिर गया। इसकी सूचना रेलवे कंट्रोल रूम को दी गई लेकिन मौके पर कोई मदद नही मिली और इसके बाद हापुड़ स्टेशन पहुंचने पर जीआरपी ने ललित कुमार को उतारकर अस्पताल पहुंचा जहां चिकित्सकों ने उसे मृत घोषित कर दिया। इस घटना से एक बार फिर यह तय हो जाता है कि अव्यवस्था के चलते एक इंसान की बलि चढ़ गई। ऐसे घटनाक्रम देशभर में कई जगह होते हैं लेकिन न जाने क्यों प्रशासन जागने व समझने को तैयार नही हैं। हर बार रेल का बजट बढ़ाया जाता है और इसको अपडेट व अपग्रेड़ होने की बात कही जाती है इसके अलावा तमाम तरह की रेलों की निर्माण व संचालन जारी है लेकिन ऐसे तरक्की का क्या फायदा जिससे हर बार मौतों का तांडव होता रहे।
योगेश कुमार सोनी
वरिष्ठ पत्रकार