सामना संवाददाता / मुंबई
मुंबई में लगभग २२ से २५ लाख उत्तर भारतीय निवास करते हैं, जो हर चुनाव में राजनीतिक पार्टियों के लिए महत्वपूर्ण वोट बैंक साबित होते हैं। लेकिन इस बार विधानसभा चुनावों के दौरान बड़ी संख्या में उत्तर भारतीय अपने गांवों में फंसे हुए हैं। कारण है वापसी के लिए कंफर्म टिकट का अभाव। दिवाली और छठ पूजा मनाने गांव गए लोग लौटना तो चाहते हैं, लेकिन ट्रेनों में भीड़ और वेटिंग टिकट की समस्या उनके रास्ते में रोड़ा बन रही है।
लोकसभा चुनाव में भी यही ट्रेंड
लोकसभा चुनावों के दौरान भी उत्तर भारतीय परिवारों ने गांव जाने का रुख किया था। उस समय स्कूल-कॉलेजों और गर्मी की छुट्टियां जारी थीं, जिसकी वजह से बड़ी संख्या में लोग अपने पैतृक गांव या विदेश यात्रा पर चले गए थे। इस बार भी वही कड़ी दोहराई जा रही है, लेकिन अंतर यह है कि इस बार छठ और दिवाली जैसे पारंपरिक त्योहारों के लिए गए लोग कंफर्म टिकट की समस्या के चलते समय पर मुंबई लौटने में असमर्थ हैं। रेलवे के आंकड़ों के मुताबिक, १ अक्टूबर से २ नवंबर के बीच मुंबई सेक्शन से ६१ लाख २७ हजार ९६० यात्री उत्तर भारत गए हैं। इनमें से ४ लाख ४६ हजार ९३६ यात्री आरक्षित टिकट पर गए, जबकि ५६ लाख ६२ हजार २४ यात्री अनारक्षित टिकट पर। ऐसे में अगर इन यात्रियों को वापस लाना है, तो रेलवे को और अधिक अनारक्षित विशेष ट्रेनें चलानी होंगी।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि उत्तर भारत के गांवों में गए ये लोग मुंबई और महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में एक बड़ा वोट बैंक हैं। अगर ये समय पर मुंबई नहीं पहुंचे, तो राजनीतिक दलों को बड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता है।
रेलवे की तैयारी पर सवाल
रेलवे ने त्योहारों के दौरान यात्रियों की सुविधा के लिए हजारों स्पेशल ट्रेनें चलाई हैं, लेकिन इसके बावजूद यात्रियों को बेहाल होकर यात्रा करनी पड़ रही है। वेटिंग टिकट पर यात्रा करना भी अब असंभव सा हो गया है।