मुख्यपृष्ठग्लैमर‘मैं उनका आभारी हूं!’-विनीत कुमार सिंह

‘मैं उनका आभारी हूं!’-विनीत कुमार सिंह

फिल्म ‘छावा’ में कवि कलश के किरदार में धूम मचानेवाले डॉक्टर से अभिनेता बने विनीत कुमार सिंह के लिए २०२५ की शुरुआत शानदार रही। बनारस के रहनेवाले विनीत कुमार की फिल्म ‘सुपर बॉयज ऑफ मालेगांव’ की भी वाहवाही हो रही है। ‘मुक्काबाज’, ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’, ‘गुंजन सक्सेना’ जैसी फिल्मों के जरिए दर्शकों के दिलों पर राज करनेवाले विनीत कुमार की जिंदगी ‘छावा’ की सफलता के बाद बदल गई है। पेश है, विनीत कुमार सिंह से पूजा सामंत की हुई बातचीत के प्रमुख अंश-

फिल्म ‘छावा’ की कामयाबी के बाद आपकी जिंदगी में कितना बदलाव आया?
फिल्म के निर्देशक लक्ष्मण उतेकर एक ऐसे निर्देशक हैं, जो व्यक्ति को देख समझ जाते हैं कि उनके सामने खड़ा शख्स किसी खास किरदार को निभाने में कितना सक्षम है। जब मेरी उनसे मुलाकात हुई तो उन्हें लगा कि मैं ‘कवि कलश’ का किरदार निभा सकता हूं। छत्रपति संभाजी महाराज की यह बायोपिक बॉक्स ऑफिस पर कमाल करेगी इसका मुझे पहले से इल्म था। रही बात ‘छावा’ की अपार सफलता के बाद जिंदगी के बदलने की तो दर्शकों की बेपनाह मोहब्बत पाकर मैं भावुक हो गया हूं। इतना प्यार, दुलार, आदर इससे पहले कभी नहीं पाया था। मैं बहुत अभिभूत हूं। जज्बातों को बयां करने के लिए अल्फाज नहीं हैं।

क्या ‘कवि कलश’ के किरदार के लिए आपको ऑडिशन देना पड़ा था?
‘मैडॉक फिल्म्स’ से फोन आने पर मैं कास्टिंग डायरेक्टर वैभव विशांत से मिलने गया, जहां लक्ष्मण उतेकर से भी मुलाकात हुई। एक कलाकार और एक सुलझे हुए मेकर के दरमियान जो बातचीत होती है, वैसी बातचीत हम दोनों में हुई। बातचीत के दौरान लक्ष्मण ने मुझसे कहा कि मेरे भीतर उन्हें ‘कवि कलश’ नजर आते हैं। बातचीत के कुछ दिनों बाद ही मुझे बताया गया कि यह किरदार मुझे सौंपा गया है। इसके लिए न तो मेरा फोटोशूट हुआ और न कोई ऑडिशन। मैं उनका आभारी हूं।

क्या ‘कवि कलश’ के बारे में आपको कुछ पता था?
मेरा जन्म, पढ़ाई और परवरिश बनारस की है। स्कूली किताबों में छत्रपति शिवाजी महाराज और छत्रपति संभाजी महाराज के बारे में संक्षिप्त में पढ़ा था, लेकिन जब अभिनय के सिलसिले में मैं मुंबई आया तो मुझे प्रसिद्ध निर्माता-निर्देशक महेश मांजरेकर ने काम करने का मौका दिया। महेश मांजरेकर की वजह से ही मुझे छत्रपति संभाजी राजे के इतिहास, उनके असीम पराक्रम के बारे में जानकारी मिली और मैं नतमस्तक हो गया। इसके लिए मैं महेश मांजरेकर का शुक्रगुजार हूं, जिनके कारण मुझे महाराष्ट्र का इतिहास, महापुरुषों के त्याग और बलिदान की सच्ची कहानियां पता चली।

कवि कलश के किरदार के लिए आपने कैसी तैयारी की?
कवि कलश को निभाने के लिए मैंने कवि के रूप में खुद को ढालने की तैयारियां की। हरिवंश राय बच्चन से लेकर मैंने सुमित्रानंदन पंत को गहराइयों से पढ़ा। मैंने संस्कृत पढ़ी। कवि कलश एक कवि के साथ योद्धा भी थे। मैंने तलवारबाजी, भाला चलाना, घुड़सवारी के साथ ही युद्ध का प्रशिक्षण लिया, जो जरूरी था और सबसे बड़ी बात मैंने निर्देशक को जाना-समझा कि वो कवि कलश को किस रूप में देखते और समझते हैं। मैंने स्क्रिप्ट को गहराई से फॉलो किया।

क्या कवि कलश परफॉर्म करने के भी चैलेंजेस थे?
‘छावा’ अब ऐतिहासिक और ‘कल्ट’ फिल्म बन चुकी है, यह मेरे लिए गौरव और सम्मान की बात है कि मुझे कवि कलश का किरदार निभाने का इस फिल्म ने मौका दिया। जाहिर-सी बात है हम कलाकार जिन फिल्मों में परफॉर्म करते हैं, उनमें नॉर्मल किरदार होते हैं हमारे। घुड़सवारी, तलवारबाजी जैसी युद्ध कलाओं का कोई ताल्लुक नहीं होता, जिसे इस फिल्म में करना था। कई मर्तबा मैं घोड़े से गिरा और चोटिल हुआ हूं, लेकिन मैंने शूटिंग नहीं रोकी। सेट पर फर्स्ट एड और फिजियोथेरपिस्ट की बदौलत मेरा काम चलता रहा।

‘छावा’ से जुड़ी कोई मेमोरीज?
‘छावा’ की शूटिंग महाराष्ट्र के वाई जिले में भी हुई। हमारी यूनिट जब वहां होटल में रुकी तो मुझे याद आया कि मेरी डेब्यू फिल्म ‘पिता’ की शूटिंग के लिए भी मैं वाई गांव में आया था और उस समय भी मैं इसी होटल में रुका था। होटल के मालिक ने भी मुझसे यही कहा तो २२ वर्ष पहले की यादों के सामने आते ही मैं फ्लैश बैक में चला गया। खैर, कई यादें हैं।

२२ वर्ष के करियर में ‘छावा’ और ‘सुपर बॉयज ऑफ मालेगांव’ के बाद आपको पीछे मुड़कर देखने की जरूरत नहीं रही?
वक्त से पहले और किस्मत के आगे कभी कुछ संभव नहीं होता। मैंने दर्जनों फिल्में कीं, सहायक निर्देशक बना। कई फिल्मों में कई किरदार निभाए, लेकिन अब जाकर मेरी पहचान नए सिरे से बनी। यह देखकर खुशी मिलना स्वाभाविक है। ढाई घंटे की फिल्म में लक्ष्मण उतेकर ने जितना संभव हो सका उतना कहानी को उभारने की कोशिश की, यह आसान नहीं था। जब लोग मुझे प्यार से कवि कलश कहते हैं तो मेरी आंखें नम हो जाती हैं। मेरी यह नई पहचान है।

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