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मैंने उन्हें निराश नहीं किया! — छाया कदम

दो-तीन महीने पहले किरण राव निर्देशित फिल्म `लेडीज स्पेशल’ जब रिलीज हुई तो सभी ने इस फिल्म की प्रशंसा की। इस फिल्म के सभी किरदार भारतीय दर्शकों को बेहद अपने से लगे, रिलेटेबल महसूस हुए। मुख्य नायिका `फूल कुमारी’ (नीतांशी गोयल) के अलावा सभी कलाकारों ने भी अपनी छाप छोड़ी। फिल्म में रेल्वे स्थानक पर चाय और नमकीन बेचनेवाली मंजू माई बनी अभिनेत्री छाया कदम ने काफी तालियां बटोरी, दर्शकों की आंखें नम की। उनकी चर्चित पुरस्कार प्राप्त फिल्म `ऑल वी इमैजिन एज लाइट’ ने कान्स इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में बाजी मारी। कान्स के रेड कार्पेट पर अभिनेत्री छाया कदम, निर्देशिका पायल कपाड़िया और टीम मेंबर ने जो डांस किया, वो तक वायरल हुआ। छाया कदम को जो सफलता मिली है, उसके पीछे कई वर्षों की तपस्या है। अभिनेत्री ने पूजा सामंत बातचीत में अपने कान्स फिल्म फेस्टिवल के साथ अपने अभिनय सफर के अनुभवों को साझा किया। प्रस्तुत हैं बातचीत के प्रमुख अंश…

२ फिल्में रिलीज हुईं, कान्स फिल्म फेस्टिवल में `ऑल वी इमैजिन एज लाइट’ ने बाजी मारी। कैसा महसूस कर रही हैं?
कई सालों की मेहनत, जद्दोजहद अब जाकर रंग ला रही है। मैं बहुत खुश हूं। पहले मेरा रास्ता बेहद मुश्किलों भरा था। वर्ष २०२४ मेरे लिए वाकई सौगात लेकर आया है। जिन प्रोजेक्ट्स के साथ मैं जुड़ी, उन सभी को पहचान मिली हैै। आगे बढ़ने के लिए मैंने ऐसे कई रोल किए, जिसमें मेरा महज एक शॉट वाला काम था। मुझे विश्वास है कि अब बड़े किरदार मिल सकते हैं।

कान्स फेस्टिवल का अनुभव कैसा रहा?
बाधाएं कदम-कदम पर थीं। मैं पहली बार अकेली विदेश गई थी। मेरे पास फॉरेन एक्सचेंज नहीं था। मेरी फिल्म से जुड़ी यूनिट अलग-अलग जगह पैâली हुई थी। किसी से संपर्क करने के लिए फोन भी नहीं चल रहा था। एक जगह हम सभी साथ मिले, लेकिन इवेंट खत्म होने पर इधर-उधर बिखर गए। वैसे इस कान्स फेस्टिवल से मेरा कॉन्फिडेंस बढ़ गया है। अब मैं दुनिया के किसी भी कोने में इत्मीनान से अकेली जा सकती हूं।

सामान्य परिवार से होते हुए भी अभिनय का जूनून कैसे हुआ?
मैं एक मिडिल क्लास परिवार से हूं। विले पार्ले के साठे कॉलेज से मैंने टेक्सटाइल डिजाइनिंग की डिग्री लेने के साथ महाराष्ट्र स्टेट लेवल पर कबड्डी भी खेला करती थी। हमेशा से क्रिएटिव -सांस्कृतिक कार्यक्रमों में मेरी रुचि थी। मैं कॉलेज के फेस्टिवल में हिस्सा लेती थी। उसको देखकर महाराष्ट्र राज्य स्टेज अभिनय के गुरु वामन केंद्रे ने उनके चर्चित प्रायोगिक नाटक `झुलवा’ में मुझे मौका दिया और इस नाटक के बाद मेरा लगातार संघर्ष जारी रहा। २०१२ में `आईना का बाईना’ रिलीज हुई और फिर फिल्म मेकर नागराज मंजुले ने अपनी दो फिल्मों २०१३ में `पैंâड्री’ और २०१६ में `सैराट’ में मुझे मौका दिया। हालांकि इन सभी रिलीज फिल्मों में मेरी छोटी भूमिकाएं थीं, लेकिन मेरे काम को सराहा गया। सैराट के लिए पुरस्कार घोषित हुआ जो नहीं मिला, लेकिन `न्यूड’ फिल्म ने मुझे महाराष्ट्र राज्य सरकार का सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री का पुरस्कार दिलाया।

स्टेट अवॉर्ड किसी भी कलाकार का करियर आगे बढ़ाने में कितने कारगर साबित होते हैं?
स्टेट अवॉर्ड या राष्ट्रीय अवॉर्ड पाना हर कलाकार का सर्वोच्च सम्मान होता है। इन पुरस्कारों से कलाकार पूरे देश में जाने-पहचाने जाते हैं, लेकिन ये जरूरी नहीं कि करियर रफ्तार पकड़े। स्टेट अवॉर्ड पाकर भी मेरा करियर रेंग रहा था, लेकिन पहचान बनती जा रही थी। मराठी फिल्मों के साथ मुझे `बुधिया’, `अंधाधुन’ जैसी हिंदी फिल्में मिल पाईं।

आखिर किस फिल्म से आपकी किस्मत ने करवट ली?
दोबारा नागनाथ मंजुले निर्देशित फिल्म `झुंड’ में मेरे काम को सराहा गया। इस फिल्म में महानायक अमिताभ बच्चन केंद्रीय भूमिका में थे। किरदार की लंबाई ज्यादा नहीं थी, लेकिन अमिताभ जैसी शख्सियत की पत्नी का किरदार था तो सभी का ध्यान जाना स्वाभाविक था। आगे भी मैंने संजय लीला भंसाली निर्देशित फिल्म `गंगूबाई काठियावाड़ी’ के लिए ऑडिशन दी और मेरा सिलेक्शन हुआ। मेरे किरदार का नाम था `रश्मिबाई’ में मैं भंसाली जैसे मेकर के साथ काम करके मुझे खुशी हुई। उन्होंने कहा था कि छाया आपने मुझे निराश नहीं किया।

चरित्र कलाकारों के प्रति बॉलीवुड नजरिया कुछ अच्छा नहीं होता, ऐसा सुनने में आया? आपके साथ कैसा ट्रीट किया गया?
मैं अपनी कला से आनंद-खुशियां ढूंढ़ती हूं। मेरा किरदार मुझे कितना आत्मिक सुख देता है, यह मायने रखता है। अगर मैंने मराठी, हिंदी फिल्मों में छोटे-मोटे जो किरदार मिले, वो किरदार नहीं किए होते तो आज यहां नहीं होती। मेरे लिए हमेशा से मेरे किरदार बेहद मायने रखते हैं। निर्देशक, लेखक, प्रोडक्शन हाउस इन सभी के बारे में सोचना मेरे लिए ज्यादा जरूरी नहीं होता है। मैं ये कभी नहीं चाहूंगी कि किसी किरदार में दर्शकों को छाया कदम नजर आए, उन्हें वो किरदार बखूबी नजर आए, जिसे मैंने ऑनस्क्रीन निभाया है। क्या फर्क पड़ता है कि चरित्र कलाकारों को स्टार्स की तरह सम्मान नहीं मिलता। मैं बस अपने किरदार को एन्जॉय करती हूं।

आपने पहने ड्रेस पर आपके नथ पहनने से आप ट्रोल भी हुई?
समाज में नकारात्मक प्रतिक्रिया देनेवाले अलग होते है, कड़वी बातें कहना एक मानसिकता बन चुकी है। हालांकि, मैंने अपने स्टाइलिस्ट से कहा भी, आपकी बनाई ड्रेस मैंने पहनी साथ में मेरी मां की याद स्वरूप नथ भी पहनी, मेरा यह लुक मुझे मां के साथ होने का अहसास दे गया। मेरी मां का हाल फिलहाल में देहांत हुआ और मां की यह तीव्र इच्छा थी कि उनकी बेटी (छाया) को वो सफलता हासिल हो, जिसकी वो हकदार है। जैसा मैं कह चुकी हूं कि हम मध्यम वर्गीय परिवार से हैं, हमारा कोई गॉडफादर और न कोई रिश्तेदार इस व्यवसाय में है। इसलिए खुद के लिए रास्ते बनाना यकीनन आसान नहीं था। मां की नथ पहनकर अंतर्राष्ट्रीय मंच पर अपने देश का नेतृत्व करना मेरे लिए सम्मान की बात थी। लेकिन ट्रोल करने वालों से प्रशंसा करने वाले काफी थे।

 

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