माता-पिता को अपना भगवान माननेवाले पप्पू यादव आज किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। ‘पंडितजी बताई न बियाह कब होई-२’ से अपना फिल्मी करियर शुरू करनेवाले पप्पू सामाजिक कार्यों में भी बढ़-चढ़कर भाग लेते हैं। फिल्म ‘बोल राधा बोल’ के लिए बेस्ट विलेन का अवॉर्ड जीतनेवाले पप्पू की हालिया रिलीज फिल्म ‘डंस’ को दर्शकों का भरपूर प्रतिसाद मिल रहा है। पेश है, पप्पू यादव से यू.एस. मिश्रा की हुई बातचीत के प्रमुख अंश-
फिल्म ‘डंस’ का ऑफर आपको कैसे मिला?
फिल्म के डायरेक्टर धीरज ठाकुर के साथ मैं पहले भी काम कर चुका हूं। मेरी एक्टिंग से प्रभावित होने के कारण ही उन्होंने मुझे विलेन का रोल ऑफर किया, जिसे मैंने सहर्ष स्वीकार कर लिया।
अपने किरदार के बारे में कुछ बताएंगे?
समाज को संदेश देनेवाली यह फिल्म उन तस्करों पर आधारित है, जो सांपों का विष बेचते हैं। अलग जोन वाली इस फिल्म को दर्शकों का भरपूर प्रतिसाद मिल रहा है। इस फिल्म की तुलना लोग ‘पुष्पा’ से कर रहे हैं और यह मेरा सौभाग्य है कि मैं इस फिल्म का हिस्सा हूं।
क्या आप पॉजिटिव किरदार नहीं निभाना चाहते?
ऐसा नहीं है कि मुझे पॉजिटिव रोल करने या हीरो बनने की चाहत नहीं होती, लेकिन बतौर विलेन जनता मुझे देखना पसंद करती है और माई-बाप जनता जो चाहती है, मैं वही कर रहा हूं। अगर उन्होंने चाहा तो पॉजिटिव रोल भी करूंगा।
सुना है, इंडस्ट्री में आपका कोई गॉडफादर नहीं था?
सच कहूं तो लोग चल के आते हैं, मैं यहां तक रेंगकर आया हूं। फिल्म इंडस्ट्री में मेरा कोई गॉडफादर नहीं था। मैंने खुद कुआं खोदा और पानी पीया है और आज लोगों को पिला रहा हूं। शुरुआत में जिन लोगों की औकात नहीं थी, उनके ताने सुनने के साथ न जाने कितने ही ऑफिसों के चक्कर काटे हैं। मेरे गुरु ने मुझसे कहा कि आपको अपना शंख खुद ही बजाना पड़ेगा और मैंने अपना शंख खुद बजाया है। इसे मैं जनता का आशीर्वाद ही कहूंगा कि आज मैं इस मुकाम पर हूं।
अपने साथी कलाकारों के साथ काम करने का अनुभव कैसा रहा?
मेरा अनुभव बहुत बेहतरीन रहा। खेसारी लाल न केवल बेहतरीन अभिनेता हैं, बल्कि बहुत ही कॉपरेटिव इंसान हैं। पूरी टीम के साथ ही डायरेक्टर धीरज ठाकुर का मुझे बहुत सपोर्ट मिला।
आपको सबसे ज्यादा सहयोग किससे मिला?
करियर की शुरुआत में मुझे रविकिशन का काफी सपोर्ट मिला। इसके बाद दिनेशलाल ‘निरहुआ’ और खेसारीलाल का बेहद सपोर्ट मिला। रविकिशन के राजनीति में बेहद सक्रिय होने के कारण दिनेशलाल ‘निरहुआ’ और खेसारीलाल का आशीर्वाद मुझे हमेशा मिलता रहता है।
हाल ही में रविकिशन का दर्द छलका था कि भोजपुरी इंडस्ट्री में लोग स्टोरी पर काम करने की बजाय आपस में लड़ते-झगड़ते हैं?
भोजपुरी इंडस्ट्री में रविकिशन का बहुत बड़ा योगदान है। उन्होंने इस इंडस्ट्री को एक नई दिशा दिखाई और आज लोग उसे आगे बढ़ा रहे हैं। आज के बदलते दौर में फिल्मों को देखने का माध्यम बढ़ चुका है और लोग यहां-वहां फिल्में देख लेते हैं, यह भी एक बहुत बड़ा पैâक्टर है लोगों के थिएटर न जाने का। मेहनत सभी कर रहे हैं, लेकिन इसे संयोग कहें या कुछ एकाध फिल्में बन जाती हैं ‘डंश’ के जैसी। रविकिशन भी अपनी जगह सही हैं और मैं यही कहूंगा कि जब सभी मिलकर मेहनत करेंगे तो चीजें जरूर अच्छी होंगी।
अगर आपको साउथ के साथ बॉलीवुड फिल्मों का ऑफर मिले तो?
अगर मौका मिला तो जरूर करना चाहूंगा, लेकिन मेरा सोचना है कि स्वर्ग का चपरासी बनने से अच्छा है नरक का राजा बने रहना।
क्या वजह है आज दर्शक ‘छावा’ जैसी फिल्म को देखना पसंद कर रहे हैं?
फिल्में समाज का आईना होती हैं। हम उसी को दिखाते हैं जो समाज में घटता है। जो जितनी बेहतरीन फिल्म बनाएगा उसे उतना ही बेनिफिट मिलेगा। फिल्म ‘छावा’ के डायरेक्टर लक्ष्मण उतेकर ने अपने डायरेक्शन में कलाकारों से इतनी बेहतरीन एक्टिंग करवाई कि आज फिल्म को दर्शकों का जबरदस्त रिस्पॉन्स मिल रहा है। डायरेक्टर का जबरदस्त होना बेहद जरूरी है क्योंकि एक्टर तो पानी की तरह होता है, उसे डायरेक्टर जहां और जैसा ढालना चाहे, वो ढल जाएगा।
कोई ऐसा किरदार जिसे निभाने की चाहत हो?
चाहे वो पद हो या कद हो, चीजें हासिल हो जाने के बाद वो कम ही लगती हैं और इंसान की इच्छाएं तो अनंत हैं। खैर, पहले फिल्मों में एकाध सीन मिलता था। अब पूरी फिल्म मिलने लगी और मेन विलेन का रोल मिलने लगा इसलिए मेरी यही दिली ख्वाहिश है कि दर्शक पर्दे पर मुझे देखने के बाद मुझसे घृणा करें और यही मेरी सफलता है।
जीवन का कोई कटु पल जिसे आप नहीं भूल पाते?
जब इंसान आगे बढ़ता है तो अपने ही लोग पीठ पीछे बुराई करने लगते हैं और मेरे साथ ऐसा अनगिनत बार हो चुका है।
अगर राजनीति में जाने का मौका मिले तो?
फिल्मों के जरिए मैं लोगों का मनोरंजन करता हूं। अगर ईश्वर और जनता चाहेगी तो जनता के दरबार में जरूर जाऊंगा। अपने और जनता के दम पर मैं यहां तक पहुंचा हूं और अगर जनता चाहेगी कि मैं राजनीति में जाऊं तो जरूर जाऊंगा।