साउथ की फिल्मों के साथ ही हिंदी फिल्मों में अपना विशेष मुकाम बनानेवाली रश्मिका मंदाना साउथ के साथ कई बड़े बजट वाली हिंदी फिल्मों में नजर आएंगी, जिसमें छत्रपति संभाजी महाराज की बायोपिक ‘छावा’ में वो विकी कौशल के, सलमान खान के अपोजिट फिल्म ‘सिकंदर’ और ‘पुष्पा-२’ में एक बार फिर अल्लू अर्जुन के अपोजिट नजर आएंगी। पेश है, रश्मिका मंदाना से पूजा सामंत की हुई बातचीत के प्रमुख अंश-
अपने बारे में कुछ बताएंगी?
मेरा जन्म ५ अप्रैल को कर्नाटक के विराजपेट में हुआ। पिता मदन मंदाना व्यापारी तो मां सुमन मंदाना गृहिणी हैं। मेरी छोटी बहन शिमन और मुझ में पूरे १६ वर्षों का फासला है। मैं उससे बहुत ज्यादा प्यार करती हूं।
फिल्मी पार्श्वभूमि न होने के बावजूद फिल्मों में वैâसे आना हुआ?
कुर्ग के पब्लिक स्कूल से दसवीं की पढ़ाई करने के बाद मैंने मैसूर इंस्टीट्यूट में दाखिला लिया। पढ़ाई के दौरान ही मुझे मॉडलिंग के ऑफर मिलने लगे। कई प्रतिष्ठित ब्रांड्स में मेरा चेहरा नजर आने लगा और २०१४ में क्लीन एंड क्लियर ब्रांड की ‘प्रâेश फेस ऑफ इंडिया’ बनते ही मुझे फिल्मों के ऑफर्स मिलने लगे।
आपका करियर वैâसे आगे बढ़ा?
मॉडलिंग के जरिए मेरा चेहरा जाना-पहचाना बन चुका था। ४ करोड़ में बनी कन्नड़ फिल्म ‘किरिक पार्टी’ ने ५० करोड़ का बिजनेस किया। इस फिल्म के लिए मुझे बेस्ट डेब्यू फिल्म एक्ट्रेस का पुरस्कार मिला और मुझे लकी अभिनेत्री माना जाने लगा।
साउथ से हिंदी फिल्मों का सफर कैसा रहा?
साउथ की फिल्मों में मैं जब काम कर रही थी उस दौरान मैं हिंदी सीख रही थी। मुझे भाषाएं सीखने में रुचि है। वैसे भी साउथ की अभिनेत्रियों का हिंदी फिल्मों में और साउथ की फिल्मों में हिंदी फिल्म अभिनेत्रियों द्वारा काम करना कोई नई बात नहीं है। मैं इकलौती नहीं हूं जिसने हिंदी फिल्मों में अपना मुकाम बनाया।
किस तरह की परेशानियों से आपको दो-चार होना पड़ा?
कोई भी कलाकार ऐसा नहीं है, जो रिजेक्शन से न गुजरा हो। वैसे तो मुश्किलें हर क्षेत्र में आती हैं, लेकिन दिक्कतों में भी साहस और दृढ़ता का साथ मैंने नहीं छोड़ा। मुझे इस बात की खुशी है कि बिना किसी गॉडफादर के मेरा सफर आगे बढ़ता रहा।
फिल्म ‘एनिमल’ की सफलता के बाद करियर में क्या बदलाव आया?
फिल्म की सफलता का फायदा फिल्म से जुड़े हर व्यक्ति को मिलता है। एक फिल्म की सफलता कलाकार को और भी फिल्में दिलाने में मददगार साबित होती है, यह बड़ा फायदा है।
अपने करियर से आप कितनी संतुष्ट हैं?
समाधान होने और संतुष्ट होने में बड़ा फर्क है। जिस तरह से मैं फिल्में और विज्ञापन फिल्में कर रही हूं उससे मुझे समाधान जरूर मिला, लेकिन मैं संतुष्ट नहीं हूं क्योंकि मुझे आगे बढ़ना है। अच्छी फिल्मों का हिस्सा बनना है।