मुख्यपृष्ठनमस्ते सामनाइश्क करते हैं तुमसे पर व्यापारी नहीं

इश्क करते हैं तुमसे पर व्यापारी नहीं

मिन्नते, खुशामदे, खिदमतगारी नहीं
इश्क करते हैं तुमसे पर व्यापारी नहीं

गिला, शिकवा, तोहमत या लाचारी नहीं
तुम्हारे बिना जीने में अब कोई दुश्वारी नहीं

पास आना ना आना है मर्ज़ी तुम्हारी
इस दिल में अब कोई बेकरारी नहीं

क्यूं मांगू मैं बार-बार साथ तुम्हारा
आशिक को समझो भिखारी नहीं

मेरी बर्बादी का फैसला मेरा ही था
इस फैसले में तुम्हारी कोई भागीदारी नहीं

मेरे कातिल को सज़ा हो भी तो कैसे
कत्ल करता है वो पर हाथ कटारी नहीं

अब जो तन्हाई का गम सताता है उनको
जुदाई के फैसले में मेरी कोई रायशुमारी नहीं

मेरे हालात मेरी खुद के बनाए हुए हैं
इस में तुम्हारी कोई जवाबदारी नही

बिन तुम्हारे भी कट सकता है ये सफ़र ऐ हयात
हर मोड़ पर तुमको पुकारू इतनी मुझे तलबगारी नहीं

लिखती हूं मैं जो भी होता है मेरे दिल में
हर किरदार में लिखते है कहानी तुम्हारी नहीं

फासले के फैसले भी जरूरी होते है कभी कभी
पर तेरी यादों से आज भी ख़ुदमुख़्तारी नही

प्रज्ञा पाण्डेय मनु
वापी गुजरात

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