सामना संवाददाता / मुंबई
इंडियन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक (आईएपी) ने अनू’ी मांग करते हुए कहा है कि चुनावी घोषणा पत्रों में नौनिहालों के लिए स्वतंत्र रूप से मंत्रालय ग’ित किया जाए। आईएपी ने कहा है कि नौनिहालों के शारीरिक, मानसिक और विकासात्मक कल्याण को प्राथमिकता देना देश के भविष्य के लिए महत्वपूर्ण है।
उल्लेखनीय है कि इंडियन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक करीब ५० हजार बाल रोग चिकित्सकों का प्रतिनिधित्व करता है। आईएपी के नवनिर्वाचित अध्यक्ष डॉ. वसंत खाटलकर के मुताबिक, हमारा लक्ष्य है कि आगामी विधानसभा चुनावी एजेंडे में बच्चों के मुद्दों को उजागर करना है। उन्होंने बताया है कि इस तरह की यह पहली बार कोशिश है। बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. समीर दलवई की अगुआई में शुरू की गई इस पहल में अस्तित्व, विकास, सुरक्षा और भागीदारी का अधिकार के इन चार प्रमुख सिद्धांतों पर आधारित नीतियां बनाने पर जोर दिया गया है। इसके लिए बाल रोग विशेषज्ञों और राजनीतिक दलों के बीच सहयोग की आवश्यकता पर प्रकाश भी डाला गया है। इंडियन पीडियाट्रिक में हाल ही में प्रकाशित एक लेख में डॉ. दलवई ने वाडिया अस्पताल के पूर्व चिकित्सा निदेशक वाई.के. अमदेकर के साथ कहा था कि हमने विभिन्न राजनीतिक दलों के चुनाव घोषणापत्रों की समीक्षा की है और पाया है कि बच्चों और किशोरों का बहुत कम या कोई उल्लेख नहीं किया जाता है।
डॉ. वसंत खाटलकर के मुताबिक, वर्तमान में बच्चों को प्रभावित करने वाले मुद्दे स्वास्थ्य, पोषण, संरक्षण और विकलांगता आदि मुद्दे विभिन्न मंत्रालयों में फैले हुए हैं। हालांकि, महिला व बाल विकास मंत्रालय महिलाओं और बच्चों के कल्याण की देख-रेख करता है। उन्होंने कहा है कि बच्चों के मुद्दों को अक्सर अलग-थलग करके संबोधित किया जाता है।
बच्चों और किशोरों के लिए एक अलग स्वतंत्र मंत्रालय की स्थापना उनके कल्याण को प्राथमिकता देने के लिए सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाएगी। यह समर्पित मंत्रालय स्वास्थ्य, शिक्षा और विकास से संबंधित प्रयासों को केंद्रीकृत कर सकता है। इसके साथ ही डिजिटल प्रौद्योगिकी और जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों सहित उभरती चुनौतियों से निपटने के लिए अन्य मंत्रालयों के साथ प्रभावी ढंग से समन्वय कर सकता है।