— डाॅ. रवींद्र कुमार
आजकल एक नारा बहुत जोर-शोर से चल रेला है। बटेंगे तो कटेंगे। इस नारे के अलग-अलग हल्कों में अलग-अलग अर्थ निकाले जा रहे हैं। अब वो नारा ही क्या जिसके मतलब अलग-अलग हों। इसमें खतरा है। लीडर ने जिस आशय को लेकर नारे का आविष्कार किया है वह नारा उसी काम आना चाहिए। अब पाजामे का नारा बोलो, नाड़ा बोलो, पाजामा थामने के काम आता है अब कोई उससे कोई और काम लेने लग पड़े या फिर फांसी लगाने की कोशिश करने लगे तो ये तो नारे का ‘मिसयूज’ ही कहलाएगा। बटेंगे तो कटेंगे के साथ वही हुआ। वो कहते हैं न ‘जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखि तैसी’।
मुझे सच बताऊँ तो यह टैग लाइन बहुत भाई है -काटेंगे तो बांटेंगे। भाई साब ! आप बर्थडे का केक लाये, जब तक वह कटेगा नहीं तो बंटेगा कैसे ? आप चिकन लाये या फिर किसी समारोह में आपने बकरा-दावत की सोची, तो वो जब तक कटेगा नहीं तो पकेगा कैसे ? जब पकेगा नहीं तो बंटेगा कैसे। अतः बांटने के वास्ते काटना ज़रूरी है। जेबकट जब तक आपकी जेब नहीं काटेगा, डकैत जब तक दीवार नहीं काटेगा, किवाड़ नहीं काटेगा, चोर जब तक तिजोरी नहीं काटेगा तो अपने गिरोह में बांटेगा कैसे। अतः यह बात गांठ बांध लें कि बांटने के लिए काटना निहायत ज़रूरी है।
हलवाई भी अपनी थाल भरी मिठाई में से बर्फी काटता है। तब न बांटता बोले तो बेचता है, किसी को एक किलो, किसी को दो किलो, किसी को आधा किलो। मिठाई पर चांदी का बर्क भी काटने के बाद ही लग पाता है। रास्ते कटते हैं, कभी हम काटते हैं कभी कोई हमारा काटता है जब काटते हैं तब न आप अपनी मंज़िल तक पहुँच पाते हैं। ज़िंदगी में कभी कोई रास्ता सीधा कहीं नहीं जाता है रास्ते कटते-कटाते हैं तब आप कहीं पहुँच पाते हैं। काटता है तब न आप तक इसके लाभ पहुँच पाता है चाहे चुनाव का टिकट हो, चेकबुक से चेक हो या यात्रा की टिकट।
नेता लोग हिन्दू-मुसलमान करते हैं तब न इलेक्शन जीत पाते हैं। यानि वो भी पहले काटते हैं फिर सत्ता की मलाई अपने परिवार में बांटते हैं उनसे बच जाये तो पार्टी के और निर्वाचन क्षेत्र के कुछ चुने हुए लोगों में परसाद बंटता है। जहां हिन्दू-मुसलमान में नहीं काट पाते वहाँ वे नॉर्थ-साउथ करते हैं या फिर ठाकुर-बनिया करते हैं या फिर सवर्ण-दलित करते हैं। उसी आधार पर टिकट वितरण किया जाता है। यूं कहने को वे सदैव कहते हैं कि वे इस भेदभावकारी, विभाजनकारी पॉलिटिक्स के सख्त खिलाफ हैं। यही सत्ता के ताले की चाभी है। सो हुज़ूर कटेगा तभी न बंटेगा ना कि बंटेगा तब कटेगा।