सामना संवाददाता / मुंबई
विधानसभा चुनाव के समय वोटरों को आकर्षित करने के लिए ‘ईडी’ सरकार द्वारा शुरू की गई लाडली बहन योजना का लाभ अभी भी असंख्य महिलाओं को नहीं मिला है। इस मामले में गंभीरता से हस्तक्षेप करते हुए मुंबई हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को कड़ी फटकार लगाई है। साथ ही हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को आदेश दिया कि वह ‘लाडली बहन योजना’ को प्रभावी तरीके से लागू करने के लिए भरपूर कोशिश करे।
‘लाडली बहन योजना’ के लिए ऑनलाइन आवेदन भरते समय कठिनाइयों, अंतिम दिन निकलने के बाद भी ऑनलाइन पंजीकरण बर्बाद होना, इतना ही नहीं, बल्कि योजना का हो रहे विरोध के साथ ही ४६ हजार करोड़ रुपए के प्रावधान पर वैâग द्वारा उठाई गई उंगली के चलते क्या यह योजना बंद हो जाएगी? इस तरह का सवाल करते हुए बोरीवली प्रमेय फाउंडेशन की ओर से एड. सुमेधा राव और एड. रुमाना बगदादी ने मुंबई हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर की है। इस याचिका पर गंभीरता से संज्ञान लेते हुए मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति अमित बोरकर की खंडपीठ ने सरकार को आड़े हाथों लिया। महिला व बाल विकास मंत्रालय द्वारा प्रस्तुत हलफनामे के अनुसार, सरकार ने स्वीकार किया कि योजना के कार्यान्वयन के प्रारंभिक चरण में कठिनाइयां थीं और पात्र महिलाओं को योजना के लिए आवेदन भरने में मदद करने के लिए विभिन्न विभागों में ११ यंत्रणाएं नियुक्त की गई थीं। साथ ही योजना के लिए २.५१ करोड़ आवेदन आए। इसमें से २.४३ करोड़ से ज्यादा आवेदनों को पात्र पाया गया है, जबकि ९० हजार आवेदन खारिज कर दिए गए।
पात्र महिलाओं को योजना का अधिकार
लाडली बहन योजना का लाभ कई महिलाओं को अभी तक नहीं मिला है। इसलिए योजना को प्रभावी तरीके से लागू करने के लिए विशेष कोशिश करने का आदेश कोर्ट ने सरकार को दिया है। इसी के साथ ही खंडपीठ ने याचिका पर पैâसला करते हुए स्पष्ट रूप से कहा कि हर पात्र महिला को इस योजना का लाभ मिलना ही चाहिए।
एड. सुमेधा राव और एड. रुमाना बगदादी ने मुंबई हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर की है। इस याचिका पर गंभीरता से संज्ञान लेते हुए मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति अमित बोरकर की खंडपीठ ने सरकार को आड़े हाथों लिया।