इंडियन मेडिकल एसोसिएशन का अलग राग
सामना संवाददाता / मुंबई
कैशलेस स्वास्थ्य बीमा सुविधा का भ्रम पाले लोगों के सामने एक तरफ कुआं तो दूसरी तरफ खाई वाली स्थिति पैदा हो गई है। बता दें कि कुछ समय पहले बीमा कंपनियों ने बिना पैनल वाले अस्पतालों में भी कैशलेस सुविधा देने की बात कही थी, लेकिन अस्पताल व डॉक्टर ने अब यह कहकर इस सुविधा को देने से मना कर रहे हैं कि स्वास्थ्य बीमा कंपनियां पैसे देने में आनाकानी कर रही हैं, ऐसे में आम लोगों के सामने समस्या उत्पन्न हो गई है। उल्लेखनीय है कि लोग अपनी सुरक्षा के लिए स्वास्थ्य बीमा करवाते हैं। यह कोई भी विलासिता या लग्जरी का सामान नहीं है, इसके बावजूद मोदी सरकार ने १८ फीसदी तक जीएसटी ठोक रखा है। ऊपर से डॉक्टर का यह नया पैंतरा आम लोगों को मुसीबत में डाल रहा है।
कंपनियों पर दमनकारी नियमों का आरोप
पुणे में आयोजित एक कार्यक्रम में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. आरवी अशोकन ने कहा कि स्वास्थ्य बीमा कंपनियों की ओर से अस्पतालों पर दमनकारी नियम और शर्तें थोपी जा रही हैं। उन्होंने कहा कि बीमा नियामक भी अस्पतालों के पक्ष में रहने की बजाय बीमा कंपनियों की ही सुन रहा है, इसलिए देशभर में अस्पताल प्रबंधन कैशलेस सुविधा देने से इनकार करने लगे हैं। उन्होंने कहा कि कैशलेस सुविधा स्वीकार करने के बाद डॉक्टरों की तरफ से चलाए जानेवाले अस्पताल का अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा। इसे लेकर हमने बीमा कंपनियों, बीमा नियामक और केंद्र सरकार के समक्ष अपना पक्ष रखा है।
कैशलेस न स्वीकार करें अस्पताल
एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. अशोकन ने कहा कि संस्था की तरफ से सभी निजी अस्पताल संचालकों से अपील की है कि वे बिल्कुल भी कैशलेस को न स्वीकार करें। इसका मुख्य कारण केंद्र सरकार और बीमा कंपनियां हैं।
देश में नहीं होनी चाहिए कोई ‘मिक्सोपैथी’
केंद्र सरकार ने मेडिकल पाठ्यक्रम में सभी प्रकार की उपचार शाखाओं को शामिल करने का प्रस्ताव दिया है। एलोपैथी डॉक्टर मिक्सोपैथी के इस प्रस्ताव के खिलाफ हैं। अशोकन ने कहा कि चीन में सभी उपचार पद्धतियों को एक साथ सिखाने का एक प्रयोग किया गया था। वहां यह प्रयोग विफल हो गया। पारंपरिक और आधुनिक उपचारों का मेल खतरनाक है। यदि आधुनिक चिकित्सा में आयुर्वेद, होम्योपैथी या यूनानी उपचार पद्धति को शामिल किया गया तो मरीजों को खतरा होगा।