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महायुति राज में मनपा अस्पतालों की ग्रह दशा खराब! …कहीं है दवाओं की किल्लत, तो कहीं लंबी वेटिंग लिस्ट में मरीज

गंदगी का भी है बोलबाला लिफ्ट की भी रहती है समस्या

सामना संवाददाता / मुंबई
आर्थिक रूप से कमजोर मरीजों के लिए मनपा के चार प्रमुख अस्पताल ही एकमात्र सहारा हैं, जहां सामान्य से लेकर गंभीर बीमारियों का इलाज किया जाता है। इन अस्पतालों में केवल मुंबई ही नहीं, बल्कि देश के कोने-कोने से लोग इलाज के लिए आते हैं। हालांकि, महायुति सरकार के राज में मनपा के चारों प्रमुख अस्पतालों पर मानों ग्रह दशा खराब चल रही है। यही वजह है कि भर्ती होने से लेकर ठीक होने तक मरीजों को कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। इतना ही नहीं कहीं दवाओं की किल्लत है, तो कहीं मरीजों को जांच कराने के लिए लंबी वेटिंग लिस्ट से होकर गुजरना पड़ रहा है। सबसे चौंकानेवाली बात यह है कि अधिकांश अस्पतालों में गंदगी का बोलबाला है। इतना ही नहीं लिफ्ट की भी कई बार समस्या दिखाई देती है।
उल्लेखनीय है कि मुंबई शहर में मनपा द्वारा संचालित केईएम, सायन, नायर और कूपर प्रमुख अस्पताल हैं। इन अस्पतालों में इलाज कराने के लिए बड़ी संख्या में मरीज आते हैं। इनमें से हजारों मरीज भर्ती भी होते हैं। हालांकि केईएम, नायर और कूपर अस्पताल दवाओं की कमी की मार झेल रहे हैं। इसके अलावा केईएम अस्पताल के वार्ड तो साफ हैं, लेकिन परिसर में कचरा और बेकार उपकरण पड़े हुए हैं। कुछ जगहों पर बड़े-बड़े मेडिकल उपकरणों के टुकड़े पड़े हैं, तो कहीं पुरानी खाटें और जंग लगी कुर्सियां दिखाई देती हैं। बाथरूम भी गंदे रहते हैं। वहीं नायर अस्पताल में दो नई इमारतों का निर्माण चल रहा है। यहां भी कई स्थानों पर गंदगी नजर आ जाती है।

मरीजों ने बयां की पीड़ा
केईएम अस्पताल में अपनी पत्नी के इलाज के लिए आए सर्वेश तिवारी ने बताया कि मेरी पत्नी को त्वचा की समस्या है। यहां के डॉक्टर बहुत अनुभवी हैं। वे कई दवाएं लिखते तो हैं, लेकिन वे दवाएं अस्पताल में नहीं मिलती हैं। १४ साल के बेटे का इलाज करा रही नफीसा खान ने कहा कि मेरे बेटे को मिर्गी की समस्या है, लेकिन इसकी दवा अस्पताल में नहीं मिली इसलिए उन्हें हमें बाहर से खरीदने को कहा गया। नायर अस्पताल के मरीज रामबचन कनौजिया ने बताया कि मुझे दिल, किडनी, डायबिटीज और ब्लड प्रेशर की समस्या है। इन रोगों के लिए चिकित्सकों ने १२ तरह की दवाएं तो लिख दीं, लेकिन इनमें से पांच दवाएं अस्पताल में नहीं मिलती हैं। इस वजह से इन दवाओं पर हर महीने हजारों रुपए खर्च होते हैं।

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