मुख्यपृष्ठनमस्ते सामनाभस्म करो अत्याचार

भस्म करो अत्याचार

भस्म करो अत्याचार
बुराई पर अच्छाई की जीत दर्शाते हैं पर्व-त्योहार
क्यों नहीं रोज आते हैं त्योहार?
साल भर बेचैन हो, करते हम इनका इंतजार
चंद लम्हे खुशियां के देकर हो जाते ये फरार!
इनके आने पर ही याद आए गीता का ज्ञान
जैसे कर्म करोगे वैसे फल देंगे भगवान।
साल भर प्रभु को भुला, भरते जो पापों का घड़ा
क्या रावण के पुतले जलाकर,
पाप कम होंगे वो थोड़ा?
जिस देश में रोज कहीं न कहीं
कोई निर्भया-मधुमिता मारी जाती हैं
कोई बताए कि ऐसे में केवल
नवरात्रि में देवियों को कैसे रिझाते?
कौन सा मुखौटा ओढ़कर,
आंगन में करते हैं ‘मां’ का आगमन!
देवी के हर रूप के सदके, एक दिन दशहरा मनाकर
जले कैसे ये रावण…कैसे हो बुराई का दमन?
चप्पे-चप्पे पर रावण राज है,
फिर क्यों न हर रोज हो दशहरा
और हम जलाएं बुराई रूपी रावण,
यही वक़्त का आगाज है।
आओ अंधकार दूर करें हम,
खत्म करें जड़ से हम, हमारी लक्ष्मी,
सरस्वती, दुर्गा पर जो हो रहा है अत्याचार!
होली हो या त्योहार दीपावली’
मॉ शेरावाली’ हर घर की कन्या की करना रखवाली
यही है समय का तकाजा है नैंसी और यही है
सताई जा रहीं बच्चियों की चीख-पुकार
भस्म करो अत्याचार।
-नैन्सी कौर
जहांगीर पुरा, नई दिल्ली

अन्य समाचार