सभ्यता की ओर…!भारत मेरा देश है
किंतु मुझे
मेरे देश से ज्यादा
अपने धर्म से प्यार है
मेरा धर्म…..है
किंतु, मुझे अपने धर्म से ज्यादा
अपनी जाति से लगाव है
मेरी जाति…है
किंतु
अपनी जाति से ज्यादा
मुझे अपने गोत्र पर गर्व है
मेरा गोत्र…है
किंतु
मुझे अपने गोत्र से ज्यादा
अपने पूर्वजों का अभिमान है
कहते हैं
मेरे पूर्वज बंदर थे
मुझे मनुष्यों से अधिक
बंदरों की फिक्र है
मैं एक बार फिर
लौटना चाहता हूं
उन जंगलों की ओर
जहां मेरे निर्वस्त्र पूर्वज
सभ्य बनने का
प्रयत्न कर रहे थे
मुझे भी सभ्य बनना है
मुझे भी जंगल में जाना है
किंतु
समस्या यह है
कि धरती पर
क्या इतने जंगल
बचे हैं जो हम सभी को
एक एक पेड़ उपलब्ध करा सकें!
-हूबनाथ