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भारतीय ज्ञान जीवन जीने की एक कला-प्रो. केके

सामना संवाददाता / मुरादाबाद

-तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी के भारतीय ज्ञान परंपरा-आईकेएस केंद्र के तत्वावधान में एनहैंसिंग इंडियन नॉलेज सिस्टम इफेक्टिवनेस इन एचईआई थ्रू करिकुलम पर ऑनलाइन नेशनल कॉन्क्लेव

साउथ एशियन यूनिवर्सिटी के प्रेसिडेंट प्रो. केके अग्रवाल ने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा मात्र विषय नहीं, बल्कि एक विचारधारा है, जो सदियों से व्यक्ति के व्यवहार में झलकती आ रही है। यह विचारधारा विज्ञान, कला और विभिन्न भाषाओं के जरिए भारतीय समाज में मौजूद रहती है। यह एक व्यवहार और जीवन जीने की कला है। भारतीय ज्ञान परंपरा जागरूकता का विषय होने के साथ-साथ समाज के विकास की भी बात करता है। हम जानते हैं कि वर्तमान समय में पर्यावरण समस्या बढ़ती जा रही है। सूखे की वजह से पानी कम होता जा रहा है। जल का समुचित प्रबंधन कैसे किया जाए, इसकी पूरी व्यवस्था भारतीय ज्ञान परंपरा में मौजूद है। प्रो. केके तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी, मुरादाबाद के भारतीय ज्ञान परंपरा-आईकेएस केंद्र के तत्वावधान में एनहैंसिंग इंडियन नॉलेज सिस्टम इफेक्टिवनेस इन एचईआई थ्रू करिकुलम पर ऑनलाइन नेशनल कॉन्क्लेव में बतौर एक्सपर्ट बोल रहे थे। ऑनलाइन कॉनक्लेव में देश के प्रख्यात विश्वविद्यालयों के माननीय कुलपतियों ने अपने-अपने सारगर्भित विचार प्रस्तुत किए। कार्यक्रम का आरम्भ सरस्वती वंदना के साथ हुआ। अंत में राष्ट्रगान के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ। संचालन आईकेएस केंद्र की समन्वयक डॉ. अलका अग्रवाल ने किया।
इससे पूर्व टीएमयू के कुलपति प्रो. वीके जैन बोले, भारतीय ज्ञान परंपरा की नेशनल कॉन्क्लेव का मुख्य उद्देश्य स्वदेशी ज्ञान, आयुर्वेद, योग जैसे महत्वपूर्ण विषयों और समकालीन ज्ञान को बढ़ावा देना है, ताकि छात्रों को समावेशी शिक्षा के साथ भारतीय सभ्यता और संस्कृति की भी जानकारी प्रदान की जा सके। राष्ट्रीय अस्मिता और पहचान को बनाए रखना हर भारतीय का कर्तव्य है। रामायण और महाभारत का उदारहण देते हुए कुलपति ने कहा कि इन दो ग्रंथों के अध्ययन से हमारे छात्र नेतृत्व और अनुशासन को सीख सकते हैं। टीएमयू आईकेएस सेंटर के प्रोफेसर चेयर प्रो. अनुपम जैन ने कहा कि पठन-पाठन सामग्री सरल भाषा में उपलब्ध हो। वर्तमान समय में लोगों के बीच गणित जैसे पाठ्यक्रम का महत्व और रूचि कम होती जा रही है, इसीलिए गणित के प्रति लोगों की रूचि को बढ़ाने के लिए पाठ्यक्रम में इसको अनिवार्य किया जाना चाहिए। ऐसे विषयों को या मुद्दों को उठाया जाना चाहिए, जिसमें भारतीय ज्ञान का अपना ही योगदान हो। भारतीय ज्ञान परम्परा जैसे महत्वपूर्ण विषय को आगे बढ़ाने के लिए एक दीर्घकालीन योजना को तैयार करना होगा तभी हम अपने उद्देश्य में कामयाब हो सकेंगे। सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए टीएमयू की डीन एकेडमिक्स प्रो. मंजुला जैन ने कहा कि हमने यूनिवर्सिटी की एक छोटी यात्रा के साथ शुरूआत की, जो आज करीब 14 कालेजों के संग अपने पथ पर अग्रसर है। वर्तमान में भारतीय ज्ञान परम्परा हमारे देश की सांस्कृतिक धरोहर है। नई शिक्षा नीति 2020 के उद्दश्यों को पूरा करने के लिए तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी में 2023 में भारतीय ज्ञान परम्परा केंद्र की स्थापना हुई, जिसका मुख्य उद्देश्य समावेशी शिक्षा को स्थापित करना है। आईकेएस केंद्र की समन्वयक डॉ. अलका अग्रवाल ने समय के महत्व पर चर्चा करते हुए कहा कि समय के उचित प्रबंध के बिना हम अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सकते हैं। एक-दूसरे के प्रति सहयोग की भावना के साथ ही भारतीय ज्ञान को आगे बढा़या जा सकता है।
टीएमयू के फाउंडर वीसी, यूजीसी के मेंबर एवम् गुरु गोविन्द सिंह इंद्रप्रस्थ यूनिवर्सिटी, दिल्ली के प्रो. आरके मित्तल ने बताया कि भारत प्राचीन काल से ही विज्ञान, कला और शिक्षा के क्षेत्र में काफी आगे था, लेकिन ब्रिटिश शासन के दौरान पूरी व्यवस्था को नष्ट करने का प्रयास किया गया, ताकि उपनिवेशी और साम्राज्यवादी विचारधारा को स्थापित किया जा सके। भारतीय ज्ञान में जैन धर्म का अपना ही महत्व है, जैसे अपिग्रह हो या अहिंसा सभी भारतीय ज्ञान परंपरा के ही भाग हैं। तैतरिय उपनिषद का उदारहण देते हुए कहा कि पंचकोश शिक्षा व्यावहारिक पद्धति पर आधारित है, जिसमें उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों के दोहन से बचने के सिद्धांत के साथ-साथ शाकाहारी पद्धति को अपनाने की बात कही गयी है। एमडीआई, मुर्शिदाबाद के डायरेक्टर प्रो. अजय कुमार जैन ने कहा कि जैन धर्म में भी भगवान राम पूजे जाते हैं। जैन धर्म का इतिहास ऋषभ देव से शुरू होता है, स्कंद पुराण में ऋषभ देव को विष्णु का आठवां अवतार कहा गया है। पदम् पुराण जैन धर्म की रामायण है, इसलिए रामायण और महाभारत का महत्व जैन धर्म में भी है। उन्होंने आत्मा के सिद्धांत और मोक्ष के साथ-साथ पुनर्जन्म के बंधन से मुक्त होने जैसे महत्व पूर्ण विषयों पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि सभी जीवों को समान रूप से इस धरती पर जीने का अधिकार है। हम सभी जीव हों या व्यक्ति एक दूसरे पर निर्भर है, इसीलिए हम सभी इस पृथ्वी पर कुछ समय के लिए अतिथि हैं। हमें भविष्य में आने वाले अतिथियों के लिए पृथ्वी को बचा कर रखना होगा।
एआईयू के भूतपूर्व चेयरपर्सन एवम वर्तमान में शिक्षा और शोध से जुड़े प्रो. संदीप सचेती ने कहा कि व्यक्ति के लिए भारतीय संस्कृति के साथ अपनी जड़ों को जानना बहुत जरुरी है, इसलिए वर्तमान समय में भारतीय ज्ञान को आधुनिक ज्ञान और वैज्ञानिक पद्धति से जोड़ना चाहिए। विज्ञान को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। वैज्ञानिक पद्धति को लागू करना चाहिए। साथ भारतीय ज्ञान के विपुल साहित्य को समझने के लिए संस्कृत भाषा में उपलब्ध स्रोतों का हिंदी और अंग्रेजी ने अनुवाद होना चाहिए। भारतीय मूल्य को बढ़ावा देने के लिए वैदिक ग्रंथों में मौजूद भारतीय गवर्मेंट मॉडल को अपनाना चाहिए। जयपुर नेशनल यूनिवर्सिटी के कुलपति प्रो. आरएल रैना ने वैदिक गणित के महत्व को स्पष्ट करते हुए कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा में वैदिक गणित से संबंधित बहुमूल्य सिद्धांत मौजूद है, जो प्रत्येक विषय को वैज्ञानिक दृष्टिकोण प्रदान कर सकते हैं। वेदों के साथ पुराणों में अध्यापन से जुड़े कई नियम और सिद्धांत मौजूद हैं। वर्तमान में इनका उपयोग करके शिक्षा पद्धति को बेहतर बनाया जा सकता है। नेशनल कानक्लेव में टीएमयू की डीन एकेडमिक प्रो. मंजुला जैन, प्रो. हरबंश दीक्षित, प्रो. विपिन जैन, प्रो. प्रवीन कुमार जैन, प्रो. एसपी सुभाषिनी, डॉ. नितीश मिश्रा डॉ. अनुराग वर्मा आदि की भी मौजूदगी रही।

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