सामना संवाददाता / नई दिल्ली
वर्ष २०१४ के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने महंगाई को मुद्दा बनाया था। पूरे देश में प्रचारित किया था कि बहुत हुई महंगाई की मार, अबकी बार मोदी सरकार। मोदी सरकार सत्ता में आ भी गई, लेकिन महंगाई कम होने की बजाय साल दर साल बढ़ते ही जा रही है। महंगाई ने लोंगो का जीना हराम कर दिया है, लेकिन अब महंगाई के बारे में कोई भाजपा नेता आवाज नहीं उठाता है।
खाने-पीने की वस्तुओं की कीमतों में लगातार उछाल के चलते खुदरा महंगाई में जोरदार उछाल आने की आशंका है। विशेषज्ञों ने इसके छह फीसदी से ऊपर रहने का अनुमान जताया है, जो इसका १४ माह का उच्चस्तर होगा। इसकी बड़ी वजह खाद्य वस्तुओं खासकर सब्जियों और खाद्य तेलों की कीमतों का आसमान पर पहुंचना है। खाद्य कीमतों में वृद्धि के कारण खुदरा महंगाई सितंबर में भी बढ़कर नौ महीने के उच्च स्तर ५.४९ फीसदी पर पहुंच गई थी, जो पूर्वानुमान से बहुत ज्यादा थी, जबकि अगस्त में यह ३.६५ फीसदी रही थी। इस दौरान खाद्य वस्तुओं की महंगाई दर भी अगस्त के ५.६६ फीसदी से बढ़कर सितंबर में ९.२४ फीसदी के स्तर पर पहुंच गई थी। सबसे अधिक सब्जियों की महंगाई दर में उछाल आया था और यह ३६ फीसदी पर पहुंच गई थी, जबकि अगस्त में यह १०.७१ फीसदी पर रही थी। रिपोर्ट के मुताबिक, प्याज की कीमतें सालाना आधार पर ४६ फीसदी बढ़ी हैं। आलू की कीमतों में ५१ फीसदी की तेजी दर्ज की गई है।
खाद्य तेलों की कीमतों में भी तेजी
इसके अलावा केंद्र सरकार ने खाद्य तेलों पर आयात शुल्क में २० प्रतिशत की बढ़ोतरी की है, जिससे महंगाई में इजाफा हुआ। खाद्य तेलों की महंगाई दर अगस्त में शून्य से नीचे (-०.८६ प्रतिशत) थी, जो सितंबर में तेज उछाल के साथ २.४७ फीसदी पर पहुंच गई। उधर हिंदुस्तान यूनिलीवर, गोदरेज कंज्यूमर, डाबर, टाटा कंज्यूमर, पारले प्रोडक्ट्स, विप्रो कंज्यूमर, मैरिको, नेस्ले और अडानी विल्मर सहित देश की प्रमुख एफएमसीजी कंपनियों ने उत्पादन वृद्धि और कस्टम ड्यूटी की भरपाई के लिए वस्तुओं की कीमतें बढ़ाना शुरू कर दिया है। कंपनियों के इस पैâसले से नए साल में चाय पाउडर, तेल, साबुन से लेकर क्रीम तक की कीमत ५ से २० फीसदी तक बढ़ने की संभावना है। पिछले १२ महीनों में कीमतों में यह सबसे बड़ी बढ़ोतरी होगी। इस साल सितंबर में खाद्य तेल के आयात पर शुल्क २२ फीसदी और पूरे साल के लिए ४० फीसदी बढ़ गया। पिछले साल यानी २०२३ में चीनी, गेहूं का आटा और कॉफी जैसी कई वस्तुओं की उत्पादन लागत बढ़ गई। एक साल बाद कीमतें बढ़ाई जाएंगी। हमें उम्मीद है कि इससे उत्पादों की मांग पर कोई असर नहीं पड़ेगा। पारले अपने सभी उत्पादों की पैकेजिंग को बढ़ी हुई कीमतों के साथ प्रिंट करने के लिए तैयार है।
ग्रामीण क्षेत्रों में बढ़ती मांग के कारण अक्टूबर में देश के एफएमसीजी उद्योग में सालाना आधार पर ४.३ प्रतिशत की वृद्धि हुई, जबकि कमजोर बिक्री के कारण नवंबर में बिक्री में ४.८ प्रतिशत की गिरावट आई, जिससे साबुन और चाय की कीमतें भी बढ़ गर्इं।
टीएमसी सांसद सयानी घोष ने महंगाई को लेकर कहा है कि पहले आम आदमी पॉकेट में पैसे लेकर बाजार जाता था और थैली भरकर सामान लाता था, लेकिन आज लोग थैली में पैसे लेकर बाजार जाते हैं और जेब में आलू-प्याज लेकर आते हैं। उन्होंने कहा कि आज आलू १८० फीसदी, टमाटर २४७ प्रतिशत, लहसुन १२८ प्रतिशत और तेल-नमक-आटे-मैदे की कीमत १८ प्रतिशत बढ़ गई हैं।