सामना संवाददाता / नई दिल्ली
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और बीजेपी के फायर ब्रांड नेता सीएम योगी आदित्यनाथ का बुलडोजर इंसाफ आए दिन सुर्खियों में रहता है। कुछ लोग इसे सही ठहराते हैं तो कुछ लोग इसे गैर-कानूनी मानते हैं। पिछले हफ्ते एक अखबार के पहले पेज पर एक छोटी लड़की की तस्वीर छपी थी। वह अपने स्कूल की किताबों को हाथ में पकड़े थी, ताकि बुलडोजर से उन्हें बचा सके, जो उसके घर को तोड़ रहा था। इस तस्वीर ने सुप्रीम कोर्ट का ध्यान खींचा। कोर्ट ने पिछले हफ्ते पैâसला दिया कि लोगों के घरों को इस तरह तोड़ना ‘अमानवीय और गैरकानूनी’ है। कोर्ट ने कहा कि आश्रय का अधिकार भारत के संविधान के अनुच्छेद २१ का अहम हिस्सा है।
सुप्रीम कोर्ट ने पहले भी ‘बुलडोजर न्याय’ के खिलाफ पैâसला दिया था, लेकिन इस बार उसने प्रयागराज नगर निगम को आदेश दिया कि जिन लोगों के घर तोड़े गए, उन्हें १० लाख रुपए का मुआवजा दिया जाए। जब प्रयागराज जाकर उन लोगों से बात की, जिनके घर बिना नोटिस के तोड़े गए। तो एक प्रोफेसर ने बताया कि जब उनका घर तोड़ा गया, तब वह बाहर थे। उनकी १,००० से ज्यादा किताबों की लाइब्रेरी नष्ट हो गई।
मजबूरी में ही कोर्ट जाता है आदमी
वरिष्ठ पत्रकार तवलीन सिंह कहती हैं कि आम आदमी कोर्ट तभी जाता है, जब मजबूरी में हो। वकीलों की फीस और सालों तक चलने वाले केस के कारण लोग हताश हो जाते हैं। इसीलिए सोशल मीडिया पर लोग बुलडोजर से घर तोड़ने को सही मानते हैं। प्रयागराज में जिनके घर तोड़े गए, योगी आदित्यनाथ का मानना था कि वह जमीन एक गैंगस्टर की थी। लेकिन ‘बुलडोजर बाबा’ को समझाना मुश्किल है कि गैंगस्टर को भी कोर्ट में सुनवाई का हक है।
न्यायपालिका पर लौटा भरोसा
सुप्रीम कोर्ट के इस पैâसले से न्यायपालिका पर कुछ भरोसा लौटा है। यह भरोसा तब कम हुआ था, जब जस्टिस यशवंत वर्मा के घर से आधे जले ५०० रुपए के नोटों का ढेर मिला था। एक वकील ने कहा कि असली समस्या निचली अदालतों में है, जहां आम आदमी को न्याय मिलना मुश्किल है। मुंबई में सड़क पर रहने वालों की मदद करने के अनुभव से पता चला कि निचली अदालतों के गंदे गलियारे और महंगे वकील आम लोगों के लिए परेशानी का सबब हैं।