स्याही

एक छोटी सी चाहत है मेरी
सार्थक शब्दों का एक गडमड समूह बन जाऊं,
चुन, जोड़ कर लिखो तो
एक कविता बन जाऊं।
यह कविता उस स्याही से लिखी हो
जिस कलम को उस हाथ ने
उंगलियों में थामा हो
जो मेरे अपने का हो,
उस मेरे अपने को मेरे
अपनत्व का अनुमान, अभिमान हो।
कविता के शब्द बने गीत
भले गाया जाए, न गाया जाए
बस कविता में छुपी हो पहचान मेरी।
जिसे लिख न पाई मेरी कलम
तेरी कलम की स्याही में
मै कविता बन इतराऊं।
-बेला विरदी

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