-सरकार के दावे में कितनी है गहराई?
सामना संवाददाता/ मुंबई
महाराष्ट्र सरकार समुद्री पर्यटन को बढ़ावा देने के नाम पर भारतीय नौसेना से सेवामुक्त युद्धपोत आईएनएस गुलदार को सिंधुदुर्ग के निवाती तट पर उतारने जा रही है। यह भारत का पहला कृत्रिम प्रवाल चट्टान (आर्टिफिशियल रीफ) प्रोजेक्ट बताया जा रहा है, लेकिन सवाल उठ रहा है कि क्या यह सच में एक अच्छी योजना है या सिर्फ पैसे की बर्बादी?
सरकार ने इस परियोजना के लिए २० करोड़ रुपए का बजट रखा है, लेकिन अब तक यह नहीं बताया गया कि इससे कितनी कमाई होगी और कितने लोगों को रोजगार मिलेगा। पहले से ही मालवण (सिंधुदुर्ग) स्कूबा डाइविंग के लिए प्रसिद्ध है, तो नया प्रोजेक्ट कितना जरूरी है? इससे मौजूदा पर्यटन को फायदा होगा या नुकसान, इसकी भी कोई स्पष्ट जानकारी नहीं है। आईएनएस गुलदार को समुद्री जीवन के लिए कृत्रिम आवास बनाने का दावा किया जा रहा है, लेकिन इसके लिए महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड एमपीसीबी और महाराष्ट्र तटीय क्षेत्र प्रबंधन प्राधिकरण की मंजूरी अभी तक नहीं मिली है। सवाल यह है कि जब पर्यावरणीय स्वीकृति बाकी है, तो इसे उतारने की जल्दी क्यों है? सरकार का दावा है कि इससे रोजगार और स्कूबा डाइविंग को बढ़ावा मिलेगा, लेकिन इसमें कितने लोगों को नौकरी मिलेगी, यह स्पष्ट नहीं किया गया है। फ्लोरिडा जैसे देशों में स्कूबा टूरिज्म से हर साल करोड़ों की कमाई होती है।