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जेजे अस्पताल के डॉक्टरों की असंवेदनशीलता … मुंबई हाई कोर्ट ने लगाई फटकार …अस्पताल में गर्भवती महिला रात भर पड़ी रही, नहीं की जांच

सामना संवाददाता / मुंबई
कल्याण से यात्रा कर जे.जे. अस्पताल में इलाज के लिए आई एक २७ वर्षीय गर्भवती महिला की प्रारंभिक जांच किए बिना उसे घर भेजने पर मुंबई हाई कोर्ट ने जमकर फटकार लगाई है। मुंबई हाई कोर्ट ने जे.जे. अस्पताल के डॉक्टरों पर असंवेदनशीलता दिखाने के मामले में अस्पताल के मेडिकल बोर्ड को खरी- खोटी सुनाई है। हालांकि, डॉक्टरों ने इस मामले में बिना शर्त माफी मांगी, जिससे न्यायमूर्ति अजय गडकरी और न्यायमूर्ति नीला गोखले की पीठ ने डॉक्टरों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की। अदालत ने कहा कि आशा है कि भविष्य में मेडिकल बोर्ड अधिक संवेदनशीलता और जिम्मेदारी के साथ काम करेगा।
बता दें कि कुछ दिनों पहले पेट मे दर्द होने के बाद याचिकाकर्ता महिला जब जांच के लिए गई तो उसके गर्भ में विकृति पाई गई। जे.जे. अस्पताल के डॉक्टरों ने महिला की जांच करके यह स्पष्ट किया कि गर्भ में विकृति है और गर्भपात की आवश्यकता है, क्योंकि गर्भ को खतरा हो सकता है। लेकिन गर्भपात कराने के लिए महिला अस्पताल गई तो अस्पताल वालों ने बताया कि कानून के अनुसार २४ सप्ताह तक की गर्भवती का गर्भपात किया जा सकता है। इससे अधिक सप्ताह की गर्भवती होने पर अदालत से अनुमति लेना आवश्यक होता है। इसके बाद महिला ने उच्च न्यायालय में याचिका दायर की। न्यायालय ने जे.जे. अस्पताल के मेडिकल बोर्ड को महिला की मेडिकल जांच करने का निर्देश दिया। इसके बाद महिला ९ अक्टूबर को जांच के लिए कल्याण से जे.जे. अस्पताल पहुंची, लेकिन उस दिन उसकी जांच नहीं की गई। महिला ने कहा कि वह जांच किए बिना घर नहीं लौटेगी और उसने अस्पताल के लॉबी में रात बिताई।
न्यायालय में १० अक्टूबर को जे.जे. मेडिकल बोर्ड ने उच्च न्यायालय में १ अक्टूबर की रिपोर्ट पेश की। हालांकि, न्यायालय ने नाराजगी व्यक्त की और कहा कि मेडिकल बोर्ड की कार्रवाई के कारण २७ सप्ताह की गर्भवती महिला को अनावश्यक परेशानी का सामना करना पड़ा।

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