मुख्यपृष्ठस्तंभइनसाइड स्टोरी : बिन पानी सब सून...मुंबई पर मंडरा रहा है जल संकट

इनसाइड स्टोरी : बिन पानी सब सून…मुंबई पर मंडरा रहा है जल संकट

-समय रहते नहीं सुधरे तो बंगलुरु से भी बदतर हो जाएंगे हालात

एसपी यादव, मुंबई

भारत की सिलिकॉन वैली कहे जाने वाली कर्नाटक की राजधानी बंगलुरु जलसंकट से जूझ रही है। नौबत यहां तक आ गई है कि बंगलुरु वॉटर सप्लाई एंड सीवेज बोर्ड (बीडब्लयूएसएसबी) ने कार की धुलाई, बगीचे के पौधों को पानी देने जैसी गतिविधियों पर भी रोक लगा दी है। आदेश का उल्लंघन करने पर पांच हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया जाएगा। बंगलुरु में हालात इतने विकट हैं कि एक टैंकर पानी ६-७ हजार रुपए में मिल रहा है। लोग नहाने को तरस गए हैं। पीने का पानी भी महंगे दामों पर बिक रहा है। बंगलुरु के इस जलसंकट के लिए इस साल हुई कम बारिश को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है, लेकिन एक सच यह भी है कि बंगलुरु में बेतहाशा ऊंची-ऊंची इमारतें बसाई गर्इं। इनमें ज्यादातर इमारतों में कार्यालय हैं, जहां लगातार पानी की जरूरत होती है। ऐसे में यहां जलसंकट गहरा गया है। यही हालात मुंबई में भी पैदा हो सकते हैं।
डब्ल्यूडब्ल्यूएफ ने दी चेतावनी
वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ) की नई रिपोर्ट में आगाह किया गया है कि मुंबई, पुणे, बंगलुरु, चेन्नई और दिल्ली जैसे भारत के ३० शहरों में २०५० तक भयंकर जलसंकट की स्थिति पैदा हो सकती है। रिपोर्ट में चेताया गया है कि समय रहते वैज्ञानिक तरीके से जल प्रबंधन पर जोर नहीं दिया गया तो इन शहरों, खासकर मुंबई में लोगों को भयंकर जलसंकट से जूझना पड़ेगा।
ऊंची इमारतें भविष्य में बड़े जलसंकट का कारण
वनशक्ति एनजीओ से जुड़े पर्यावरण विशेषज्ञ डी स्टालिन का कहना है कि यह मुंबई का सौभाग्य है कि यहां सालाना ४,५०० मिमी से ज्यादा बारिश हो जाती है, लेकिन समय के साथ यहां जलसंकट गहरा सकता है। फिलहाल, बीएमसी मुंबईकरों को प्रतिदिन ३,९५० एमएलडी पानी सप्लाई करती है, जबकि ४,२०० एमएलडी पानी सप्लाई किए जाने की जरूरत है। मौजूदा समय में भी पानी की सप्लाई लगभग २५० एमएलडी कम है। शहर में लगातार ऊंची-ऊंची इमारतें बन रही हैं, जबकि उस अनुपात में पानी की सप्लाई के प्रबंध नहीं किए जा रहे हैं, जिससे आनेवाले समय में जलसंकट गहरा सकता है। स्टालिन का कहना है कि पानी के लिए गहरे बोरवेल खोदना प्रभावी उपाय नहीं है, क्योंकि यह भूजल स्तर को प्रभावित करता है।
मुंबई में लगातार बढ़ती जा रही है पानी की मांग
आब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के अध्ययन में सामने आया है कि मुंबई में पानी की मांग लगातार बढ़ती जा रही है। २०१४ से मुंबई में पेयजल की सप्लाई में १६.१७ प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। २०१४ में ३,४०० एमएलडी की जगह ३,७५० एमएलडी पानी की सप्लाई होने लगी। २०१८ में ३,८५० एमएलडी पानी की सप्लाई होने लगी। २०२३ में यह आंकड़ा ३,९५० एमएलडी पर पहुंच गया है। अनुमान है कि अगले दो दशक में मुंबई में पानी की मांग दोगुनी हो जाएगी। २०३१ तक मुंबई के लिए कम से कम ५,३२० एमएलडी पानी की सप्लाई जरूरी हो जाएगी, जो मौजूदा सप्लाई से ३४.६ प्रतिशत ज्यादा होगी। अनुमान है कि २०४१ तक पानी की सप्लाई में ६२.६ प्रतिशत की वृद्धि की जरूरत होगी यानी कम से कम ६,४२४ एमएलडी पानी की सप्लाई करनी होगी।
जल प्रबंधन पर ध्यान नहीं दिया जा रहा
टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज के प्रोफेसर और जल संसाधन विशेषज्ञ प्रोफेसर कमल कुमार मुरारी का कहना है कि यदि अर्ध-शहरी क्षेत्रों और शहरों में विकास के बुनियादी ढांचे में केवल इमारतों, सड़कों और पुलों के निर्माण पर विचार किया जाता है, लेकिन पानी की बढ़ती जरूरतों के बारे में नहीं सोचा जाता है तो यह एक विकट समस्या है।
जलसंकट के लिए नेता भी जिम्मेदार
आयरन ईगल वी ग्रुप से जुड़े पनवेल के सामाजिक कार्यकर्ता विष्णु गवली का कहना है कि वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ) की रिपोर्ट से अचंभित होने की जरूरत नहीं है, क्योंकि हमारे राजनीतिज्ञ वोटों की फसल बटोरने के लिए लंबे-लंबे हाइवे, बड़े-बड़े लंबे पुल, समुद्री पुल, रेलमार्ग, सड़कों के लिए सुरंगें बनाने जैसी ढांचागत परियोजनाओं पर ज्यादा जोर देते हैं। इसके लिए जंगलों की कटाई की जाती है। पर्यावरण से छेड़छाड़ की जाती है। अब नई मुंबई एयरपोर्ट के पास नई टाउनशिप ‘महामुंबई’ बसाई जा रही है, लेकिन कोई भी ध्यान नहीं दे रहा है कि यहां बसनेवाले लाखों लोगों के लिए पानी की व्यवस्था वैâसे की जाएगी। गवली ने इसे लेकर बंबई उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका भी दायर की है।
शहर की प्यास बुझाने में सूखा गांवों का गला
ग्रामीण महाराष्ट्र में विशेषकर कातकरी आदिवासियों के उत्थान के लिए काम करनेवाली अंकुर फाउंडेशन की सामाजिक कार्यकर्ता वैशाली पाटील का कहना है कि कोकण और अन्य पहाड़ी क्षेत्रों में अवैध खनन जंगलों को नष्ट कर रहा है। इसके साथ ही प्राकृतिक जलस्रोत भी नष्ट हो रहे हैं। पहाड़ी क्षेत्रों में बांध बनाकर दो-तीन सौ किलोमीटर दूर बसे शहर में पानी भेजा जा रहा है, जबकि गांव के लोग पानी के लिए तरस रहे हैं। लातूर के जलपुरुष के रूप में विख्यात सामाजिक कार्यकर्ता महादेव गोमरे का कहना है कि यदि डब्ल्यूडब्ल्यूएफ की रिपोर्ट सच होती है तो मुंबई की आलीशान इमारतों में रहनेवाले लोगों को पलायन करना होगा, क्योंकि बिना पानी जीवन बिताना असंभव है।

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