मुख्यपृष्ठस्तंभमध्यांतर : इंदौर में चल गया नोटा का सोटा!

मध्यांतर : इंदौर में चल गया नोटा का सोटा!

प्रमोद भार्गव
शिवपुरी (मध्य प्रदेश)
हालांकि, मध्य प्रदेश में पिछले तीन चरणों की तुलना में मतदान अच्छा हुआ है। लेकिन प्रदेश के सबसे बड़े और व्यावसायिक महानगर इंदौर में मतदान का प्रतिशत कम रहा। यहां ६०.५३ प्रतिशत वोट पड़ा है। जो २०१९ की तुलना में ८.७८ प्रतिशत कम हैं, २०१९ में यहां ६९.३१ प्रतिशत वोट पड़ा था। आदिवासी बहुल लोकसभा सीट खरगोन में सबसे ज्यादा ७५.७९ मत प़ड़े। इसी तरह आदिवासी बहुल रतलाम में ७२.८६ और धार में ७१.५० प्रतिशत मत पड़े। यह प्रदेश में हुए आठ लोकसभा सीटों पर मतदान में सबसे ज्यादा मत प्रतिशत है। जबकि शहरी मतदाताओं ने ग्रामीणों की तुलना में कम मतदान किया। बहुचर्चित रही सीट इंदौर में कम मतदान इसलिए हुआ, क्योंकि वहां से कांग्रेस प्रत्याशी अक्षय कांति बम अंतिम समय में अपना नामांकन पत्र वापस लेकर भाजपा में शाfिमल हो गए थे। इसलिए यहां अनुमान लगाया जा रहा है कि मतदाताओं ने नोटा पर भी खूब वोट डाले हैं। चुनाव प्रचार के दौरान नोटा विवाद भी खूब छाया रहा था। एकतरफा चुनाव हो जाने के कारण भाजपा ने जहां अपने पक्ष में मतदान के लिए प्रचार किया, वहीं कांग्रेस ने मुकाबले में कोई प्रत्याशी नहीं रह जाने के कारण नोटा के पक्ष में मतदान करने का अभियान अंतिम चरण तक जारी रखा। यही नहीं कांग्रेस नेता केके मिश्रा ने मतदान के बाद सोशल मीडिया पर पोस्ट डाली कि उन्होंने नोटा को मत दिया है।
इस बार इंदौर में जगह-जगह कुछ अलग ही नजारा देखने में आ रहा था। कांग्रेस ने नगर की प्रत्येक बस्ती में टेबल लगाकर नोटा को वोट देने का खूब प्रचार किया। पालदा इलाके में एक ऐसा वीडियो वायरल हुआ, जिसमें मतदाता नोटा को बटन दबाता दिख रहा है। कांग्रेसियों ने २५ लाख मतदाताओं वाली इंदौर सीट पर नोटा को ही कांग्रेस का प्रत्याशी मानने की मुहिम चला रखी थी। अक्षय कांति बम द्वारा आखिरी दिन नाम वापसी के बाद कांग्रेस ने अपना प्रचार अभियान ‘वोट फॉर नोटा‘ कर दिया था। यही नहीं कांग्रेस ने नोटा के पक्ष में मतदान करने की एक रैली भी आहूत की थी। इस अभियान को जन-जन तक पहुंचाने के लिए दो लाख से अधिक बैनर-पोस्टर इंदौर के चप्पे-चप्पे में चस्पां कर दिए गए थे। पूर्व लोकसभा सदस्य और इंदौर से आठ बार भाजपा की सांसद रहीं सुमित्रा महाजन खुला बयान दे चुकी हैं कि उन्हें कई भाजपाई और बुद्धिजीवियों ने फोन पर कहा है कि इस तरह से इंदौर में चुनाव के ठीक पहले हुए प्रत्याशी अक्षय कांति के दल-बदल से वे खुश नहीं हैं, अतएव नोटा को वोट देंगे। इसी दौरान संघ प्रमुख मोहन भागवत के बयान का भी एक वीडियो वायरल हुआ, जिसमें वे नोटा के बजाय, जो उत्तम उम्मीदवार हैं, उसे चुनने की सलाह दे रहे हैं। यानी उन तक यह संदेश पहुंचा कि इस दल-बदल से इंदौर की जनता खुश नहीं है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी ने भाजपा पर तल्ख टिप्पणी करते हुए विश्वास जताया, ‘देश के सबसे स्वच्छ शहर में भाजपा की प्रदूषित राजनीति का जवाब इंदौर की जनता नोटा पर बटन दबाकर देगी। इंदौर हमेशा रिकॉर्ड बनाता है, अतएव इस बार भी इंदौर की जनता राजनीतिक शुचिता के लिए नोटा को वोट देकर देशभर में नोटा को मिले सर्वाधिक मतों का रिकॉर्ड बनाएगी।’ पटवारी की इस टिप्पणी का उत्तर देते हुए प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा ने कहा था, ‘जनता अपना अमूल्य मत खराब नहीं करेगी। उनका खुद का सिक्का खोटा निकला है, कांग्रेस पार्टी खजुराहो और इंदौर समेत कई सीटों पर अपना प्रत्याशी तक खड़ा नहीं कर पाई, वह अब नोटा का बटन दबाने की बात कह रही है। इसे कौन सुनेगा?
इंदौर लोकसभा सीट पर दोनों प्रमुख दलों ने ही पोस्टर वॉर युद्धस्तर पर लड़ा था। कांग्रेस प्रत्याशी अक्षय कांति के चुनाव मैदान से हटने और भाजपा के साथ जाने के बाद कांग्रेस ने नोटा के समर्थन में ऑटोरिक्शोेंं के पीछे पोस्टर चिपकाए। चूंकि ऑटोरिक्शा सवारियों के साथ पूरे महानगर में चक्कर काटते हैं इसलिए नोटा का प्रचार भी खूब हो गया। भाजपा को जब इस प्रचार की महिमा और असर का आभास हुआ तो वह इस पोस्टर चिपकाने के विरोध में उतर आई। भाजपा ने तय किया कि रिक्शों से पोस्टर हटाने के साथ नोटा का विरोध करने और कमल के फूल को वोट देने की मांग करने वाले पोस्टर चिपकाए जाएं। इस हेतु रणनीति बनाते हुए नगर के ८,००० ऑटोरिक्शा से पोस्टर हटाने और नए पोस्टर चिपकाने का सिलसिला युद्धस्तर पर शुरू हो गया। इस अभियान की जिम्मेदारी भाजपा के ऐसे जमीनी कार्यकर्ताओं को सौंपी गई, जो पोस्टर हटाने के साथ पोस्टर चिपकाने का भी काम करें। देखते ही देखते कई पोस्टर हटा दिए गए, लेकिन सभी रिक्शों से पोस्टर हटाना संभव नहीं हुआ। क्योंकि अनेक ऑटोरिक्शा चालक नोटा के पक्ष में पैरवी करते नजर आए। मतदान के दिन एक शिकायत ऐसी भी जिला निर्वाचन अधिकारी को मिली, जिसमें विधानसभा-४ के मतदान केंद्र क्रमांक ४३ की पीठासीन अधिकारी शबनम खान द्वारा नोटा के पक्ष में लोगों को मतदान करने के लिए कहा गया। हालांकि, जांच के बाद यह खबर फर्जी पाई गई। यह शिकायत भाजपा के पोलिंग एजेंट सुंदर यादव के नाम से की गई थी। किंतु शिकायतकर्ता ने आवेदन पर किए गए हस्ताक्षर को नकली बताया और कहा कि उसने इस तरह की कोई शिकायत नहीं की है।
हालांकि, निर्वाचन आयोग के आंकड़ों पर विचार करें तो २०१४ और २०१९ के लोकसभा चुनाव में मध्य प्रदेश में नोटा के लिए सबसे ज्यादा मत रतलाम सीट पर मिले थे। २०१५ में यहां हुए उपचुनाव में नोटा को २४,४२६ वोट मिले थे। २०१४ में इंदौर सीट पर नोटा को ५,९४४ और २०१९ में ५,०४५ मत मिले थे। पूरे मध्य प्रदेश में २०१४ में नोटा को ३,९१,७७१ और २०१९ में ३,४०,९८४ मत मिले थे। जो २९ लोकसभा सीट वाले मध्य प्रदेश में बहुत ज्यादा मायने नहीं रखते हैं। नोटा का मतलब है ‘नन
ऑफ द अबव’ यानी उपरोक्त उम्मीदवारों में से कोई नहीं। २०१३ में सर्वोच्च न्यायालय ने ईवीएम में नोटा का विकल्प देने का आदेश दिया था। इसके मुताबिक यदि मतदाता को चुनाव लड़ रहे उम्मीदवारों में से कोई पसंद नहीं है तो वह ईवीएम में नोटा का बटन दबा सकता है। लेकिन न्यायालय के इस पैâसले में इस तथ्य का कोई रेखांकन नहीं है कि नोटा को यदि सर्वाधिक मत मिलते हैं तो वास्तविक चुनाव परिणाम पर इसका क्या असर पड़ेगा? फिलहाल नोटा को वोट चाहे जितने मिल जाएं, उसका परिणाम पर कोई असर नहीं पड़ता है।
(लेखक, वरिष्ठ साहित्यकार और पत्रकार हैं।)

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