मुख्यपृष्ठस्तंभमध्यांतर : मध्य प्रदेश में राहुल गांधी ने चला आदिवासियों पर दांव

मध्यांतर : मध्य प्रदेश में राहुल गांधी ने चला आदिवासियों पर दांव

प्रमोद भार्गव
शिवपुरी (मध्य प्रदेश)

कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने मध्य प्रदेश में चुनाव प्रचार की शुरूआत करते ही आदिवासियों को लुभाने का बड़ा दांव चला है। आदिवासी बहुल संसदीय क्षेत्र शडहोल और मंडला के साथ सिवनी के धनोरा में राहुल गांधी ने कहा है कि जिस क्षेत्र में आदिवासियों की आबादी ५० फीसदी से अधिक है, वहां छठी अनुसूची लागू करेंगे। यानी शासन कलेक्टर का नहीं, एक स्थानीय समिति का होगा, जिसमें आदिवासी दलित, पिछड़ा और सामान्य वर्ग के लोग होंगे। राहुल ने भाजपा पर हमला बोलते हुए कहा कि भाजपा झूठ बोल रही है कि यदि छठी अनुसूची को लागू किया गया तो आदिवासियों के अलावा अन्य समाजों के लोगों को नुकसान होगा, जबकि यह गलत है।
राहुल ने भाजपा के दिए जख्म कुरेदते हुए कहा कि भाजपा के लोग मध्य प्रदेश के सीधी में एक आदिवासी पर पेशाब करते हैं और फिर खुद उसका वीडियो वायरल कर अपनी हेकड़ी दिखाते हैं। यह बीजेपी की विचारधारा है, जिसका गरीब और आदिवासी के उत्थान से कोई वास्ता नहीं है। भाजपा द्वारा आदिवासियों को वनवासी कहने पर सवाल खड़ा करते हुए राहुल ने कहा, हम आदिवासी शब्द से आदिवासियों को पुकारते हैं, जिसका अर्थ है, धरती के असली मालिक। जबकि संघ और भाजपा वनवासी शब्द को प्रयोग में लाते हैं, जिनका मकसद जल, जंगल और जमीन से आदिवासियों का अधिकार खत्म करना है। वनवासी शब्द आदिवासियों के इतिहास को मिटाने वाला शब्द है। बीजेपी आदिवासियों की जमीनें लेकर उद्योगपतियों को दे रही है। जो आदिवासी शिक्षा और रोजगार की मांग करते हैं, उन्हें जेल में डाल दिया जाता है। देश चलाने वाले ९० भारतीय प्रशासनिक सेवा अधिकारियों में से सिर्फ एक आदिवासी है।
मध्य प्रदेश की कुल आबादी में अनुसूचित जनजाति के लोगों की संख्या २१.१ प्रतिशत है। इन जनजातियों में सहरिया, बेगा, भील अत्यंत पिछड़ी जनजातियों में शुमार हैं। ये जातियां प्रदेश के समस्त भू-भाग में पैâली हुई हैं। प्रदेश की कुल २३० विधानसभा सीटों में से ४७ सीटें अनुसूचित जनजाति अर्थात आदिवासियों के लिए आरक्षित हैं। २०१८ के विधानसभा चुनाव में ४७ में से २८ सीटों पर कांग्रेस विजयी रही थी। लोकसभा की छह सीटें सीधे-सीधे आदिवासी बहुल क्षेत्रों में आती हैं। अतएव राहुल गांधी का छठी अनुसूची को लागू करने का कार्ड चल गया तो कांग्रेस पांच सीटें प्रदेश में जीत सकती है। वैसे भी आदिवासी समाज कांग्रेस का पुराना वोट-बैंक रहा है। लेकिन शिवराज सिंह चौहान के १८ साल मुख्यमंत्री रहते हुए यह वोट-बैंक कांग्रेस से छिटककर भाजपा की झोली में चला गया। अर्थात इस समुदाय की वापसी में छठी अनुसूची जैसे उपाय महत्वपूर्ण हैं।
कांगे्रस के कांतिलाल भूरिया आदिवासी वोट-बैंक के बूते ही आठवीं बार रतलाम-झाबुआ लोकसभा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। वे यहां से पांच बार सांसद रह भी चुके हैं। दो बार केंद्रीय मंत्री रहने के साथ प्रदेश सरकार में तीन बार मंत्री रहे हैं। मध्य प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भी भूरिया रहे हैं। साफ है, छठी अनुसूची लागू करने का यह दांव भूरिया के लिए तो लाभदायी साबित होगा ही, आदिवासी बहुल सभी लोकसभा सीटों पर यह दांव भारी पड़ेगा। इसीलिए भूरिया कह भी रहे हैं कि कांग्रेस २९ में से २० सीटें जीत रही है। हालांकि, लंबे समय मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार और खुद भूरिया के सांसद और मंत्री रहने के बावजूद आदिवासी बुनियादी समस्याओं से जूझ रहे हैं। १८ साल शिवराज मुख्यमंत्री रहे, लेकिन तमाम योजनाएं लागू करने के बावजूद आदिवासियों की समस्याओं का निराकरण नहीं कर पाए।
आदिवासी क्षेत्रों में सबसे बड़ी समस्या रोजगार और कुपोषण है। कुपोषण दूर करने के लिए अनेक प्रयास भाजपा की पूर्व शिवराज सरकार द्वारा किए गए, बावजूद ताजा रिपोर्टों के अनुसार ९ हजार ७३५ जो आंगनवाड़ी केंद्र और पोषण कॉर्नर चल रहे हैं, उनमें प्रदेशभर में १० लाख ३२ हजार १६६ बच्चे कुपोषित हैं। सरकार ने कुपोषण दूर करने के लिए एक नई योजना ‘पोषण मटका कार्यक्रम’ शुरू किया था, जिसे अपेक्षित सफलता नहीं मिली। दरअसल, इस योजना के लिए जनता से दान में सामग्री लेने की अपेक्षा की गई थी। किंतु महिला बाल विकास विभाग के तमाम प्रयासों के बावजूद जनता ने मटके में अनाज भरने में कोई रुचि नहीं दिखाई। सामग्री जुटाने के लिए आंगनवाड़ी कार्यकर्ता और पर्यवेक्षकों को पोषण मटका हेतु सामग्री जुटाने के लिए जनसमुदाय को प्रेरित करने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। किंतु भीख के लिए इस कार्य को करने में एक तो कार्यकर्ता और पर्यवेक्षक द्वार-द्वार जाने में शर्म महसूस करते रहे। दूसरे उनमें इतनी वाक्पटुता भी नहीं है कि वे जन-समुदाय को प्रभावित कर चंदा ले लें। इस योजना के संदर्भ में यह विडंबना भी देखने में आई थी कि इक्का-दुक्का ग्रामीणों से जो दान मिला, वह भी कुपोषितों का आहार नहीं बन पाया। इसे लेकर विभाग के अधिकारियों ने ही नाराजगी जताई है।
इस योजना के तहत बच्चों के लिए लड्डू-मठरी, नमकीन, मुरमुरे, बिस्किट, भुने चने और गुड़ जुटाने होते हैं, ताकि बच्चे अपनी इच्छा के अनुुसार मनपसंद आहार मटके से उठाकर खा लें। उन्हें रोका-टोका भी न जाए। किंतु एक माह के भीतर ही इस योजना ने दम तोड़ दिया। भारत सरकार ने २०३० तक देश को कुपोषण से मुक्त करने का लक्ष्य रखा है। मध्य प्रदेश ने भी ‘राज्य पोषण प्रबंधन’ रणनीति २०२२ जारी की है। पोषण मटका इसी रणनीति का हिस्सा है। जयस के संरक्षक डॉ. हीरालाल अलावा का कहना है कि पूरे प्रदेश के आदिवासी बहुल क्षेत्रों में कुपोषण बड़ा मुद्दा है। योजनाएं कगजी हैं। इसलिए चुनाव में कुपोषण को एक बड़े मुद्दे के रूप में जनता के सामने लाया जाएगा।
राहुल गांधी ने शहडोल में आदिवासी पर भापजा कार्यकर्ता द्वारा पेशाब करने के ठंडे पड़ चुके मुद्दे को भी तूल दिया। विधानसभा चुनाव से पहले यह कांड एक बड़ा मुद्दा बनकर देश की मीडिया में छा गया था। इसलिए इस मुद्दे को राहुल ने लोकसभा चुनाव में उठाया है। निसंदेह यह घटना मानवता को शर्मसार करने वाली थी। कानून एक इबारत भर है, लेकिन इंसानियत सभ्यता की एक ऐसी भाव-भूमि है, जो किसी भी परिस्थिति में एक इंसान को दूसरे इंसान पर पेशाब करने का अधिकार नहीं देती। तथापि प्रवेश शुक्ला ने निकृष्ट घटना को अंजाम दिया। निश्चित ही यह उच्छृंखलता अक्षम्य अपराध है। शराब के नशे के साथ सत्ता का नशा और उच्च जाति के अहंकार से जुड़े विकार भी इस घटना के कारकों में शामिल रहे हैं। अतएव न केवल वह आदिवासी पर पेशाब करता है, बल्कि दबंगई का प्रदर्शन करते हुए अपने मित्र से मोबाइल-वीडियो भी बनवाता है। यही वीडियो घटना का ऐसा प्रमाण बन गया, जिसने प्रवेश शुक्ला समेत उसके साथियों को जेल में डलवा दिया था। गोया, राहुल गांधी ने आदिवासियों को छठीं अनुसूची लागू करने का जो दांव चला है, उससे कांगेस को लाभ की उम्मीद बढ़ गई है।
(लेखक, वरिष्ठ साहित्यकार और पत्रकार हैं।)

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