घुसपैठ

अपना जीवन जिएं धड़ल्ले से
जब भी बोले , आत्म विश्वास से भर
संभव तभी है जब, तुम
होंगे खड़े सत्य के धरातल पर।
कदमों के नीचे से
धरती खींचने वाले हैं बहुतेरे
मौका परस्तों को बस मौका चाहिए
हम अपनी निर्बलता से स्वयं अवसर
गैरों के हाथों थमा देते।
घुसपैठ केवल सरहद, राजनीति पर नहीं होती
मंच पर माइक छीन कर भी होती।
आपके शब्दों पर अपने भाषण में
मुहावरों का मुलम्मा चढ़ा देगा कोई।
रचना सृजन आपका
शीर्षक बदल देता कोई।
खेत खलिहानों की घुसपैठ में
चलते डंडे, सिर फुटाैवल होती।
धर्म, संस्कृति में यह घुसपैठ वर्मी जैसे चट कर जाती।
बदल नाम ठेले पर शुद्ध
भोजन को थूक लगाई जाती।
पहचान, नाम छुपा शादी रचती
तब विश्वास में घुसपैठ होती,जब
अपना धर्म कबूल कराया जाता।
अपने आचरण , विश्वास को अडिग बनाओ
अपने पैरों नीचे की ज़मीं से चिपक जाओ।
निर्बलता तुम्हें कभी न घेरे
दो अपनी सीमाओं पर हरदम पहरे
तभी रोक पाओगे घुसपैठ के मौके।

बेला विरदी।

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