मुख्यपृष्ठस्तंभनिवेश गुरु : संविधान : यात्रा या मंजिल?

निवेश गुरु : संविधान : यात्रा या मंजिल?

भरतकुमार सोलंकी
मुंबई

जब हमारा संविधान २६ जनवरी १९५० को लागू हुआ, तब इसे केवल एक दस्तावेज नहीं, बल्कि स्वतंत्र भारत की आत्मा माना गया। संविधान एक ऐसी बुनियाद थी, जिसने लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता, समानता और न्याय की अवधारणाओं को सशक्त बनाया। लेकिन क्या यह संविधान हमारे लिए एक अंतिम लक्ष्य था, या यह एक अनंत यात्रा की शुरुआत थी? इस प्रश्न का उत्तर हमारी आज की स्थिति में छिपा है। संविधान को केवल मंजिल मानने की भूल, हमें उसकी गहराई को समझने से रोकती है। यह हमें लगातार आत्ममंथन और सुधार की प्रेरणा देता है। यह सच है कि संविधान में हमारे राष्ट्र की दिशा तय करने वाले सभी मूल तत्व समाहित हैं, परंतु इसे लागू करने और समाज में उसकी भावना को जीवंत करने के लिए निरंतर प्रयास की आवश्यकता है। आज, जब हम इस यात्रा को देखते हैं, तो कई चुनौतियां सामने आती हैं।
पहली समस्या है, सामाजिक और आर्थिक असमानता। संविधान में समानता का अधिकार दिया गया है, परंतु आज भी समाज में जाति, धर्म और लिंग के आधार पर भेदभाव मौजूद है। शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग अब भी संघर्ष कर रहे हैं। दूसरी समस्या है, कानूनी और संस्थागत भ्रष्टाचार। संविधान ने हमें पारदर्शी और जवाबदेह व्यवस्था का सपना दिखाया, परंतु इसे साकार करने में बाधाएं बनी रहती हैं। तीसरी समस्या है, राजनीतिक नैतिकता का पतन। चुनावों में धनबल और बाहुबल का प्रभाव संविधान की मूल भावना को आहत करता है। इन चुनौतियों का समाधान संविधान के मार्गदर्शन में ही संभव है। सबसे पहले हमें शिक्षा और जागरूकता के माध्यम से समाज में समानता और भाईचारे की भावना को बढ़ावा देना होगा। शिक्षा के क्षेत्र में निवेश बढ़ाकर, गरीब और पिछड़े वर्गों को मजबूत किया जा सकता है। दूसरा, हमें भ्रष्टाचार के खिलाफ कठोर कानून लागू करने और संस्थाओं की जवाबदेही सुनिश्चित करने की आवश्यकता है। तकनीकी समाधान, जैसे डिजिटल प्रशासन और पारदर्शिता, इसमें मदद कर सकते हैं। तीसरा, राजनीति को साफ-सुथरा और जनसेवा के प्रति प्रतिबद्ध बनाने के लिए चुनाव सुधार आवश्यक है। राज्य वित्तपोषण मॉडल लागू करना और दागी नेताओं पर प्रतिबंध लगाना इस दिशा में सकारात्मक कदम हो सकते हैं।
संविधान की यात्रा तब तक अधूरी है जब तक हर नागरिक को उसका अधिकार और अवसर प्राप्त न हो जाए। इसे एक मंजिल के रूप में देखना गलत होगा। यह एक सतत प्रक्रिया है, जो हमें नई चुनौतियों का सामना करने और अपने समाज को बेहतर बनाने के लिए प्रेरित करती है। हमारा संविधान न केवल एक मार्गदर्शक है, बल्कि यह हमें यह भी याद दिलाता है कि इस यात्रा में हर नागरिक की भूमिका महत्वपूर्ण है। संविधान की भावना को जीवित रखना और इसे हर पीढ़ी के लिए प्रासंगिक बनाना हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है। यही वह यात्रा है, जो न केवल भारत को मजबूत बनाएगी, बल्कि उसे विश्व के लिए एक आदर्श भी बनाएगी।
(लेखक आर्थिक निवेश मामलों के विशेषज्ञ हैं)

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