मुख्यपृष्ठखबरेंनिवेश गुरु : जीवन बीमा शरीर का नहीं आमदनी का होता है!

निवेश गुरु : जीवन बीमा शरीर का नहीं आमदनी का होता है!

भरतकुमार सोलंकी

जीवन और जीवन बीमा व्यक्ति के शरीर का नहीं, बल्कि उसकी अपनी आमदनी यानी इनकम का होता है। जीवन बीमा देने वाली कंपनी व्यक्ति की आमदनी का आंकलन करने के बाद ही उसे बीमा देती है। साधु-संत, फकीरों के पास आमदनी का प्रमाणित दस्तावेज नहीं होता है, इसलिए उन्हें कोई भी कंपनी जीवन बीमा नहीं देती है। पारिवारिक व्यक्ति के लिए जीवन बीमा खरीदते वक्त व्यक्ति को अपनी वार्षिक आमदनी और उस आमदनी का स्रोत बताना जरूरी होता है। उस व्यक्ति की आमदनी के आधार पर ही उस व्यक्ति की बीमा राशि तय होती है। जीवन-मृत्यु के बाद भी परिवार के उच्च स्तरीय सुंदर जीवन यापन के लिए ही जीवन बीमा होता है। इनकम दस्तावेज के आधार पर अकस्मात दुर्घटना मृत्यु होने पर थर्ड पार्टी इंश्योरेंस का क्लेम किया जा सकता है।
संपूर्ण सृष्टि पर मनुष्य एक ऐसा जीव है, जिसे अपने जीवन के लिए लंबे समय तक दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता है। उसे अपनी रोजी-रोटी भोजन के लिए खड़ा होने में पांच-पच्चीस वर्ष से भी अधिक समय लग जाता है। मनुष्य के अलावा शेष अन्य प्राणियों की बात करे तो उनमें सैकड़ों ऐसे जीव हैं, जो जन्म लेते ही अपने भोजन की जुगाड़ में स्वयं ही निकल जाते हैं।
मनुष्य के जीवन में अवसर जन्म से उपलब्ध नहीं होते हैं। जन्म के बाद अवसर मिलता है कि हम जीवन का निर्माण करें, लेकिन जो लोग जन्म को ही काफी समझ लेते हैं, उनका जीवन व्यर्थ हो जाता है। जन्म के बाद जिस जीवन को हम वास्तविक जीवन मान लेते हैं, वह धीरे-धीरे मरते जाने के सिवाय और कुछ भी नहीं है। जो ठीक-ठीक जानते हैं, वे उसे धीमी मृत्यु ही कहेंगे। जन्म के बाद हमें स्मरण होना चाहिए कि हम प्रतिदिन धीरे-धीरे मरते जाते हैं। मृत्यु अचानक नहीं आती है, वह एक लंबा विकास है। जन्म के बाद अगर कोई व्यक्ति सत्तर वर्ष जीता है, तो सत्तरवें वर्ष पर अचानक मृत्यु नहीं आ जाती है। मृत्यु रोज-रोज बढ़ती जाती है और सत्तरवें वर्ष पर पूरी हो जाती है। रोज एक दिन जिसको हम जी लेते हैं, वह हमारी उम्र से समाप्त हो जाता है। जो व्यक्ति किसी सत्य की खोज में नहीं लगता है वो व्यक्ति करीब-करीब अवसर को व्यर्थ खो देता है। उसके हाथ से समय व्यर्थ हो जाता है और जो समय चला जाता है, वह लौटता नहीं है। क्या करें, उसे वापस लाने का कोई उपाय ही नहीं है।
धर्म का संबंध इस बात से है कि हम अपने भीतर मरने वाले तत्व को जानते हैं- हमारा शरीर है मर जाएगा, लेकिन क्या शरीर ही सब-कुछ है? या हमारे भीतर आत्मा जैसी कोई चीज भी है, जो कि नहीं मरेगी? इसे कौन बताएगा, जब तक कि हम खुद अपने भीतर खोजने नहीं जाएंगे। शरीर का उपयोग स्वयं के अलावा दूसरों के जीवन का एक साधन है।
(लेखक आर्थिक निवेश मामलों के विशेषज्ञ हैं)

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