मुख्यपृष्ठस्तंभनिवेश गुरु : ‘शेयर क्या है?’

निवेश गुरु : ‘शेयर क्या है?’

भरतकुमार सोलंकी
मुंबई

हम रोज शेयर बाजार की खबरें पढ़ते हैं, सुनते हैं और चर्चा करते हैं। लेकिन जब लोगों से सीधा सवाल पूछा गया कि ‘शेयर का मतलब क्या होता है?’ तो हैरानी की बात ये रही कि कोई भी इसका साफ जवाब नहीं दे सका। बार-बार पूछने और जोर देकर समझाने के बाद जब मैंने खुद समझाना शुरू किया कि शेयर मतलब होता है ‘हिस्सा’ और किसी कंपनी के शेयर खरीदने का अर्थ है, उसमें हिस्सेदार बनना, तो लोगों की आंखों में अचानक से थोड़ी समझ की रोशनी दिखी।
थोड़ा और सरल किया तो शब्द आया- ‘भागीदार।’ अब सोचिए, जब शेयर का मूल अर्थ ही आपको मालूम नहीं, तो आप उस कंपनी के भागीदार वैâसे बन सकते हैं? अब यहीं से कई जरूरी सवाल जन्म लेते हैं। जैसे- क्या कोई दुकानदारी शुरू करनेवाला व्यापारी यह सोचकर दुकान शुरू करता है कि दो-तीन साल बाद या दस-बीस साल बाद दुकान बेचकर गांव चला जाएगा? अगर नहीं, तो शेयर बाजार में निवेश करते समय हम यह सोच क्यों लेते हैं कि यह तो दो-तीन साल की बात है, फिर निकाल लेंगे? क्या हम किसी भागीदारी को ऐसे ही तोड़ देते हैं?
और मान लीजिए, अगर भागीदारी तोड़नी ही है तो किसके साथ? उस कंपनी के साथ जो लगातार मुनाफा दे रही है? या उस कंपनी के साथ जो न घाटे से बाहर निकल पा रही है, न ग्रोथ दिखा रही है?
लेकिन हमारी आदत क्या है?
जो शेयर शानदार रिटर्न दे रहे हैं, उन्हें हम बेच देते हैं और जो नुकसान में जा रहे हैं, उन्हें पकड़े रहते हैं। और फिर शिकायत करते हैं- ‘शेयर बाजार बहुत रिस्की है।’
अब सीधा सवाल- अगर आप शेयर चुनने के एक्सपर्ट नहीं हैं, तो क्यों अपने कीमती वक्त और मेहनत की पूंजी को जोखिम में डालते हैं? क्यों नहीं उन विशेषज्ञों के अनुभव का लाभ उठाते हैं, जो सालों से कंपनियों का बारीकी से विश्लेषण कर रहे हैं?
एसआईपी यानी सिस्टमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान- ये सिर्फ एक निवेश साधन नहीं, बल्कि एक अनुशासित तरीका है। यहां आपके पैसों को मैनेज करता है एक प्रोफेशनल फंड मैनेजर, जिसकी पूरी टीम दिन-रात यही तय करती है कि कौन से शेयर में निवेश किया जाए, कौन से सेक्टर से दूरी बनाई जाए।
तो क्यों न वही करें जो सही है?
अगर आपके पास वक्त नहीं, गहराई से कंपनियों की बैलेंस शीट पढ़ने का हुनर नहीं, तो अपना समय शेयर चुनने में बर्बाद करने की बजाय एसआईपी बढ़ाइए।
याद रखिए, निवेश का मतलब सिर्फ पैसे लगाना नहीं, बल्कि समझदारी से हिस्सेदारी निभाना है और सही हिस्सेदारी वही होती है, जो सोच-समझकर, भरोसे के साथ और दीर्घकालिक नजरिए से निभाई जाए।
सारांश: अगली बार जब आप शेयर खरीदें, तो खुद से पूछिए- क्या मैं इस कंपनी का हिस्सा बनना चाहूंगा? क्या मैं इसे १०-२० साल तक अपने पोर्टफोलियो में रख सकता हूं?
अगर जवाब ‘हां’ है, तो ही निवेश करें। वरना एसआईपी का रास्ता पकड़ें- जहां विशेषज्ञ आपके लिए सोचते हैं।
(लेखक आर्थिक निवेश मामलों के विशेषज्ञ हैं)

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