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क्या मानसिक रूप से कमजोर महिला मां बनने की हकदार नहीं है? …मुंबई हाई कोर्ट ने किया सवाल

२७ वर्षीय महिला का गर्भपात कराने के
लिए माता-पिता ने दायर की है याचिका

सामना संवाददाता / मुंबई
मुंबई हाई कोर्ट ने बुधवार को कहा कि क्या मानसिक रूप से कमजोर महिला मां बनने की हकदार नहीं है? कोर्ट में २७ वर्षीय महिला के माता-पिता की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई चल रही है। याचिका में पैरेंट्स ने दावा किया है कि उनकी बेटी मानसिक रूप से अस्वस्थ है और अविवाहित है। इसीलिए उन्हें २१ सप्ताह के भ्रूण के गर्भपात की अनुमति दी जाए। कोर्ट ने पिछले हफ्ते जेजे अस्पताल के मेडिकल बोर्ड को महिला की सेहत की जांच का निर्देश दिया था।
हाई कोर्ट द्वारा नियुक्त मेडिकल बोर्ड ने पाया कि महिला में केवल बौद्धिक कमी है, लेकिन वह मानसिक रूप से अस्वस्थ नहीं है। जस्टिस घुगे और राजेश पाटील की खंडपीठ ने कहा कि बुधवार को पेश की गई रिपोर्ट में केवल यह संकेत दिया गया है कि २७ वर्षीय महिला में बौद्धिक विकलांगता की सीमा रेखा है। उसका आईक्यू ७५ है और रिपोर्ट में भ्रूण में कोई विसंगति नहीं पाई गई। अदालत ने टिप्पणी करते हुए कहा कि कोई भी व्यक्ति अति बुद्धिमान नहीं हो सकता। हम सभी मनुष्य हैं और सभी की बुद्धि अलग-अलग स्तर की होती है। साथ ही अदालत ने यह भी कहा कि औसत से कम बुद्धि होने का मतलब यह नहीं है कि उसे मां बनने का अधिकार नहीं है। अगर हम कहें कि औसत से कम बुद्धि वाले लोगों को माता-पिता बनने का अधिकार नहीं है, तो यह कानून के खिलाफ होगा।
महिला के पिता ने इस आधार पर गर्भपात की अनुमति के लिए हाई कोर्ट में याचिका दायर की कि वह मानसिक रूप से अस्वस्थ है और अविवाहित है।
महिला के भ्रूण की हुई जांच
३ जनवरी को उनके वकील एसके दुबे और अतिरिक्त सरकारी वकील प्राची तातके की सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने जेजे अस्पताल के एक मेडिकल बोर्ड को उसके भ्रूण की जांच करने और अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए कहा। मेडिकल बोर्ड ने उसे गर्भावस्था जारी रखने के लिए फिट पाया, लेकिन कहा कि एमटीपी भी संभव है। ताताके ने कई पैâसलों का हवाला दिया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस भूषण गवई का एक पैâसला भी शामिल है, जिसमें कहा गया है कि महिला की सहमति महत्वपूर्ण है और गर्भ में पल रहे भ्रूण के भी अब मौलिक अधिकार हैं।

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