सैयद सलमान मुंबई
अब्दुल को तो बस टायर का पंचर बनाना है और यही करते रहना चाहिए। अक्सर घुमा-फिरा कर लगभग इन्हीं से मिलते-जुलते जुमलों के जरिए मुसलमानों का यही कहकर मजाक उड़ाया जाता है। कौन उड़ाता है मजाक? यह बड़ा मासूम सवाल होगा, क्योंकि पता सभी को है कि कौन लोग हैं जो मुसलमानों को दोयम दर्जे का न सिर्फ नागरिक बनाए रखना चाहते हैं, बल्कि अपनी नीयत और नीति को खुले आम स्वीकार करते हैं। वर्तमान केंद्रीय मंत्रिमंडल इसका सबसे बड़ा सबूत है, जिसमें एक भी मुस्लिम प्रतिनिधि नहीं है यानी यह देश की आजादी के बाद का पहला मंत्रिमंडल है, जिसमें किसी मुसलमान को मंत्री न बनाकर यह साफ संदेश दे दिया गया है कि मुसलमान अब अपमान के साथ जीने की आदत डाल लें। हालांकि, अब्दुल पंचर वाले की नई पीढ़ी अब इन बातों का जवाब अपनी शिक्षा के माध्यम से देने को तैयार है। प्रतिभाशाली मुस्लिम विद्यार्थी अब अपनी पहचान बनाने में जुट गए हैं। अब्दुल पंचरवाले के बच्चे अब प्रतियोगी परीक्षाएं पास कर रहे हैं। इसी साल ५१ मुस्लिम छात्रों ने यूपीएससी परीक्षा पास की है। इस वर्ष के नीट परीक्षा परिणाम में ६७ अभ्यर्थियों को राष्ट्रीय स्तर पर प्रथम रैंक प्राप्त हुआ है, जिनमें ४ लड़कियों और ३ लड़कों सहित ७ मुस्लिम छात्र भी शामिल हैं। रोचक तथ्य यह है कि इनमें से ‘आपला महाराष्ट्र’ की छात्रा आमना आरिफ कड़ीवाला की प्राथमिक शिक्षा उर्दू माध्यम में हुई है यानी मुस्लिम लड़कियां भी सफलता के झंडे गाड़ रही हैं और भाषा भी आड़े नहीं आ रही है।
जहां तक बात पंचरवाले की है तो पंचरवालों के बेटा-बेटी पूरी कौम को पंचरवाले के नाम पर मजाक बनानेवालों और अभद्र टिप्पणी करनेवालों को अपनी शिक्षा से जवाब दे रहे हैं। उदाहरण के लिए झारखंड के जिला साहिबगंज स्थित बोरियो प्रखंड के मंशूर टोला निवासी मोहम्मद इश्तियाक ने इस वर्ष ऑल इंडिया मेडिकल प्रवेश परीक्षा, नीट में सफलता हासिल की है। उसके पिता जमशेद अली बोरियो बाजार में सचमुच टायर पंचर बनाने का काम करते हैं। ठीक एक वर्ष पहले २०२३ में महाराष्ट्र के जालना में एक पंचर की दुकान पर काम करनेवाले अनवर खान की बेटी मिस्बाह ने नीट-यूजी परीक्षा पास की थी यानी इश्तियाक और मिस्बाह के पिता परिवार का भरण-पोषण करने के लिए पंचर बनाने का काम करते हैं। अब्दुल पंक्चर ठीक करता था, लेकिन अब अब्दुल के बच्चे पंक्चर ठीक करने के बजाय डॉक्टर बनकर समाज की सेवा करेंगे। डॉक्टर को भगवान का दूसरा रूप कहा जाता है, अब वे भगवान का दूसरा रूप बनेंगे।
प्रकृति का नियम है, जितना दबाओगे उतना उभरकर आएगा। पिछले कुछ वर्षों में मुस्लिम समाज को जिस तरह से एक मखसूस तबके ने खुले आम धर्म के नाम पर मानसिक, मॉब लिंचिंग और पिटाई के जरिए शारीरिक और उनका आर्थिक बहिष्कार करने की घोषणा कर आर्थिक रूप से प्रताड़ित किया है, वैसा कभी देखने को नहीं मिला। यह तो देश के भीतर सामाजिक समरसता और बिरादरान-ए-वतन की सहिष्णुता की जड़ें इतने गहरे तक समाई हुई हैं कि नफरती तत्व पूरी तरह कामयाब नहीं हो पा रहे हैं। इस बात को समझना हो तो मिस्बाह की सफलता का उदाहरण काफी है। मिस्बाह के गुरु अंकुश ने अपनी कोचिंग क्लास में लगातार लगभग तीन साल तक नीट के लिए उसकी मुफ्त तैयारी करवाई। उसकी प्रतिभा को धर्म के चश्मे से नहीं देखा। ऐसे अंकुश ही इस समाज के असली हीरो हैं।
इश्तियाक और मिस्बाह जैसे लाखों प्रतिभाशाली मुस्लिम बच्चे सच्ची मेहनत और लगन के जरिए अपने ख्वाबों को पूरा करना चाहते हैं। देश की वर्तमान राजनीतिक व्यवस्था से अब उन्हें उम्मीद नहीं है। वर्तमान मंत्रिमंडल की रचना, देश में आदरणीय अभिभावक पद पर बैठे प्रधानमंत्री का चुनाव जीतने के लिए प्रचार सभाओं में खुले आम मुस्लिम समाज को कोसना, उन्हें अपमानित करना, उनका मखौल उड़ाना, व्यवस्था ऐसी बना देना कि मुसलमानों पर जुल्म-ओ-ज्यादती पर कोई बात करे तो उसे देशद्रोही घोषित करना जैसे अनेक कारण हैं, जिसके आधार पर मुस्लिम समाज निराश और हताश है, लेकिन नई पीढ़ी जानती है कि नया कल ऐसा नहीं होगा। भविष्य में नफरत की दीवारें ऐसी नहीं रहेंगी, क्योंकि यह झूठ, फरेब, घृणा और तिरस्कार के ईंट और गारे से बनी हैं। मोहब्बत की आंधी जरूर आएगी और इस दीवार को नेस्तनाबूद कर देगी। यह वक्त ठहर कर रचनात्मक करने का है। युवा पीढ़ी शिक्षा पर ध्यान दे रही है। आईएएस, आईपीएस, डॉक्टर, इंजीनियर बन रही है। वह राष्ट्र की मुख्यधारा से कट नहीं रही, बल्कि और भी शिद्दत से उसमें समाहित हो रही है। अब्दुल की नई पीढ़ी अब पंचर वाले के नाम पर अपमान सहने के बजाय, खुले गगन में अपने सपनों को ऊंची उड़ान देने में लग गई है।
(लेखक मुंबई विश्वविद्यालय, गरवारे संस्थान के हिंदी पत्रकारिता विभाग में समन्वयक हैं। देश के प्रमुख प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं।)