सैयद सलमान मुंबई
भारत सरकार जिम्मेदार!
भाजपा शासित केंद्र सरकार का ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास’ का नारा महज खोखला दावा है। एक अंतर्राष्ट्रीय रिपोर्ट इस बात का खुलासा करती है। रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में अल्पसंख्यकों, विशेष रूप से मुसलमानों को लक्षित करनेवाले नफरत भरे भाषणों में तेजी से वृद्धि देखी गई है। ‘रिसर्च ग्रुप इंडिया हेट लैब’ की इस रिपोर्ट के अनुसार, पिछले एक साल में इस तरह के भाषणों में ७४ प्रतिशत की वृद्धि हुई है। रिपोर्ट के अनुसार, लोकसभा चुनाव वाले वर्ष यानी २०२४ में देश भर में अल्पसंख्यकों के खिलाफ नफरत भरे भाषणों में वृद्धि हुई है। पिछले एक साल में अल्पसंख्यकों को लक्षित करनेवाले नफरत भरे भाषणों के १,१६५ मामले दर्ज किए गए हैं, जिनमें से ८० प्रतिशत मामले भाजपा शासित राज्यों में हुए हैं।
इंडिया हेट लैब की रिपोर्ट से संकेत मिलता है कि २०२३ के पहले छह महीनों की तुलना में बाद के छह महीनों में मुस्लिम विरोधी नफरत भरे भाषणों में ६२ प्रतिशत की वृद्धि हुई है। समूह के शोध में २०२३ के दौरान भारत में मुसलमानों को लक्षित करनेवाले नफरत भरे भाषणों के ६६८ मामले सामने आए हैं। इनमें से २५५ वर्ष के पहले भाग में हुए, जबकि ४१३ दूसरे भाग में दर्ज किए गए। कमाल की बात यह है कि इनमें से ७५ प्रतिशत यानी ४९८ मामले भाजपा शासित राज्यों में हुए। मुसलमानों के खिलाफ नफरत भरे भाषणों की सबसे अधिक घटनाएं महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में दर्ज की गर्इं। इंडिया हेट लैब नफरत भरे भाषण की संयुक्त राष्ट्र की नियमावली और परिभाषा के आधार पर रिपोर्ट तैयार करता है, जिसमें धर्म, जातीयता, राष्ट्रीयता, नस्ल या लिंग के आधार पर किसी व्यक्ति या समूह के प्रति पक्षपातपूर्ण या भेदभावपूर्ण भाषा शामिल है। यह संगठन कट्टरपंथी समूहों की ऑनलाइन गतिविधियों पर नजर रखता है, सोशल मीडिया से नफरत भरे भाषण के सत्यापित वीडियो एकत्र करता है और भारतीय मीडिया द्वारा रिपोर्ट की गई घटनाओं को संकलित करता है। विशेष बात यह है कि कई अखबारों और सोशल मीडिया पर यह रिपोर्ट ऐसे समय में आई है, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जल्द ही अमेरिका के दौरे पर जानेवाले हैं और उनकी राष्ट्रपति ट्रंप से भी मुलाकात होने वाली है। ‘ह्यूमन राइट्स वॉच’ और ‘एमनेस्टी इंटरनेशनल’ समेत कुछ मानवाधिकार समूहों ने कई मौकों पर भारत में अल्पसंख्यकों के साथ दुर्व्यवहार के लिए भारत सरकार को जिम्मेदार ठहराया है।
खुद प्रधानमंत्री शामिल
ऐसा नहीं है कि तिरस्कार का यह दंश मुसलमान ही झेल रहे हैं। नफरत भरे भाषणों के कारण मुसलमानों, ईसाइयों और अन्य अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न की घटना आम हो गई है। भाजपा के नेताओं ने लगातार तीसरी बार सत्ता में आने के लिए अपने चुनाव अभियान के दौरान हाशिए पर पड़े समूहों के खिलाफ अक्सर भेदभावपूर्ण और शत्रुता और हिंसा भड़काने वाले बयान दिए। ह्यूमन राइट्स वॉच के अनुसार, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कम से कम ११० भाषणों में मुसलमानों के प्रति पूर्वाग्रह और नफरत से भरी टिप्पणियां की गर्इं, जिसका मकसद राजनीतिक विपक्ष को कमजोर करना और बहुसंख्यक हिंदू समुदाय में डर पैदा करना था। प्रधानमंत्री मोदी ने मुसलमानों के लिए घुसपैठिया, कपड़ों से पहचानों जैसे संबोधनों का उपयोग किया, जिस पर कई अंतरराष्ट्रीय मीडिया संगठनों ने रिपोर्ट छापी और उनके बयानों की आलोचना की। आश्चर्यजनक रूप से हिंदू बहुल देश में अल्पसंख्यकों का भय दिखाने के प्रयास में प्रधानमंत्री खुद शामिल होते हैं, जबकि वह किसी पार्टी के नहीं बल्कि पूरे देश के प्रधानमंत्री हैं। सबकी सुरक्षा की गारंटी उनकी जिम्मेदारी है, लेकिन उनकी और उनके वैâबिनेट के कई अन्य नेताओं की भाषा में शालीनता का अभाव साफ नजर आता है। यह स्थिति बेहद चिंताजनक है, क्योंकि इस से उनके समर्थकों के गलत कामों को देशभक्ति के नाम पर सराहना मिलती है। उनका आदर-सत्कार होता है।
हौसला दिखाए सरकार और भाजपा
एक बात तो निश्चित तौर पर समझी जा सकती है कि मुसलमानों के खिलाफ नफरत भरे भाषणों और बयानों का सामाजिक सौहार्द पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। ऐसे मामले धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक सद्भाव जैसे मूल्यों के खिलाफ होते हैं। अगर सरकार और भाजपा के मन में खोट नहीं है तो मुसलमानों के खिलाफ भाषणों के कारण मुसलमानों के साथ होनेवाले भेदभाव को रोकने के लिए उसे ठोस कदम उठाने का हौसला दिखाना चाहिए। भेदभाव और घृणा पैâलाने जैसे अपराधों के लिए कड़े प्रतिबंधों को लागू करने के साथ-साथ भेदभाव विरोधी कानूनों को उचित रूप से लागू करना सरकार की जिम्मेदारी है। खुद प्रधानमंत्री को इस्लाम या इस्लाम का पालन करनेवाले लोगों के प्रति तर्कहीन भय, घृणा या भेदभाव का मुकाबला करना चाहिए, जिससे देश की दूसरी सबसे बड़ी आबादी खुद को असुरक्षित महसूस न करे। इसका मतलब यह नहीं कि मुसलमानों को कुछ भी करने की छूट मिलनी चाहिए। गलती करने पर कानून की सख्ती उन पर भी होनी चाहिए, लेकिन बेवजह उनके प्रति नफरत की राजनीति अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर देश के कर्णधारों के लिए शर्मिंदगी का कारण बनती रहेगी।
(लेखक मुंबई विश्वविद्यालय, गरवारे संस्थान के हिंदी पत्रकारिता विभाग में समन्वयक हैं। देश के प्रमुख प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं।)